एक सुनहरी शाम

इस धुंध में भी एक चेहरे की
मधुर मुस्कान बाकी है।
यादों के पुरिंदे में अब तक
एक सुनहरी शाम बाकी है।
बीत गया हर लम्हा
खत्म हो गया ये साल
लेकिन अभी भी कुछ यादें बाकी है।

एक साथी सफर का
अब तक याद है मुझे।
उस अजनबी रिश्ते का
अब तक अहसास है मुझे।
खुशियाँ इतनी मिली कि
झोली मेरी मुस्कुराहटों से भर गई।‍
जिंदगी में सब कुछ मिला मुझे
पर तेरी कमी खल गई।

इस साथी को 'अलविदा' कहना
खुशियों से जुदा होना था,
अपनों से खफा होना था।
परंतु वो रहेगा कायम हमेशा
मेरे होठों की मुस्कान में,
इन आँखों की तलाश में,
मेरी लेखनी के शब्दों में .....

- गायत्री शर्मा

यह कविता मेरे द्वारा अपने वेबदुनिया वाले ब्लॉग पर 2 जनवरी 2009 को प्रकाशित की गई थी।

Comments

Sanjay Grover said…
गायत्री जी, एक तो आपके ब्लाग का नाम बड़ा प्यारा है। अर्थ में भी और उच्चारण में भी। कविता में आपने निजी दुख को शब्द दिए हैं। आपकी भावनाएं कविता में अच्छे ढंग से अभिव्यक्त हुई हैं। देश में सकारात्मक परिवर्तन लाने का आपका उत्साह भी अच्छा लगा।
Rohit Singh said…
गायत्री.....नाम में ही पवित्रता है......देश को बदलने का पता नहीं पर हां सुधार लाने में कई स्तर पर कामयाबी पा सकती हैं आप....काफी प्यारा नाम है आपके ब्लॉग का भी। ईमानदार कोशिशे ही हमेशा रंग लाती हैं।
कविता में दिल की बात कही है काफी अच्छा लिखा था 2009 में।
अब?
अगली कविता का इंतजार कर रहें हैं...

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