मैं स्टेच्यू तो नहीं ...


- गायत्री शर्मा

चौराहों पर खड़े नेताओं की मूर्तियाँ एक ओर जहाँ राहगीरों का ध्यान भटकाती है। वहीं दूसरी ओर दुर्घटनाओं का कारण भी बनती है। एक तो ये नेता लोग जीतेजी किसी का भला नहीं करते हैं और मरने के बाद भी ये हमारा बुरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। मंच,माइक,माया,पोस्टर और स्टेच्यू से इनका प्रेम तो जगजाहिर है। जब तक ये इस जीवित रहते हैं। तब तक ये हमें अखबारों,पोस्टरों व सार्वजनिक मंचों पर माइक से ज्ञान बाँटते नजर आते हैं और जब ये भगवान को प्यारे हो जाते हैं। तब दूसरों के स्टेच्यू पर फूल चढ़ाने वाले इन नेताओं के स्टेच्यू पर भी फूल चढ़ाने की बारी आ जाती है। इनके मरने के बाद इन्हीं की शोक सभा में 10 नए नेता उभरकर सामने आते हैं,जो टेस्टिंग के तौर पर नेता के मौत के गम में डूबी जनता को एक बढि़या सा शोक संदेश भावों के साथ पढ़कर सुनाते हैं।

हमारे दिवंगत नेता की आत्मा की शांति के लिए चौराहों पर भव्य साजसज्जा वाले मंच सजते हैं। जिसमें बिजली की खुलेआम चोरी करके आकर्षक विद्युत सज्जा की जाती है,जी भर के खाया और पिया जाता है और इस तरह एक दिवंगत नेता को श्रृद्धांजलि देने के बहाने मस्त शोक सभा कम और पब्लिसिटी पार्टी का अधिक आयोजन किया जाता है।

अब आप ही सोचिए ऐसे में बेचारे नेताजी की आत्मा तो धरती पर ही भटकेगी ना?मंच और पोस्टर देखकर उनका मन भ‍ी फिर से उसी कुर्सी पर आसन जमाने को करता होगा ना? ऊपर से आग में घी डालने के  लिए इन बेचारे दिवंगत राजनेता के हमशकल पत्थर के बाँके-टेढ़े पुतले को चौराहों पर ट्रॉफिक कंट्रोल करने को सजा दिया जाता है। यह सब इन्हीं पत्थर बने नेताओं की गालियों का असर है कि भ्रष्टाचार इस देश की राजनीति से कही जाता ही नहीं। घुम-फिरकर एक नेता से दूसरे नेता में यह अपने अपग्रेटेड लेटेस्ट वर्जन के साथ बॉय डिफाल्ट इंस्टाल हो जाता है।

मेरी सलाह माने तो अब नेताजी को याद करने की बजाय यदि कलियुग रूपी सागर से हमारा बीड़ा पार लगाने वाले भगवान को याद किया जाएँ और उनके स्टेच्यू चौराहों पर लगाएँ जाऐँ तो बेहतर होगा। ऐसा करने से प्रात: स्मरणीय भगवान के दर्शन कर जहाँ हमारा दिन अच्छा निकलेगा। वहीं हमें चौराहों से आते-जाते जगत के तारणहार भगवान की आराधना करने का एक मौका भी मिल जाएगा।

Comments

आज ही 100 किमी दूर से वापस आ रहा हूँ, 20 मूर्तियाँ मिली रास्ते में।
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
प्रवीण जी, क्या बात है आज आपकी धरती पर भार बनी 20 महान आत्माओं से मुलाकात हुई पर उनसे आपका कुछ संवाद हुआ कि नहीं?
मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी करने के लिए आप दोनों महानुभावों का धन्यवाद। कृपया अपने अमूल्य सुझावों व विचारों से मुझे अवगत कराते रहिएगा।
क्या गायत्री जी,
बेचारे जीवन भर देश की जनता की सेवा करते हैं( और खुद मेवा खाते हैं) के बदले में अपनी एकाद मूर्ति लगवाने का अधिकार भी आप इन्हें नहीं देना चाहती!
:)

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