दिपावली की फीकी है रौनक  

इस बार दीपावली महँगाई की चमक से दमक रही है। बाजार एक बार फिर से गुलजार है परंतु कहीं न कहीं बाजार को भी खरीदारों का इतंजार है। दीपावली पर घी के दिए जलाना जैसे अतीत की बात हो गई है। वर्तमान में तो सस्ते तेल और इलेक्ट्रिक दियों से ही दिपावली की रातें रोशन हो रही है। महँगाई का मार, चुनाव का इतंजार और सख्ताहाल सड़कों की तरह गठबंधन के दम पर चलती सरकार के बीच आम आदमी तो जैसे गन्ने की तरह पीस सा गया है। तभी तो हममें से कोई ज्योतिष में अपना भविष्य खोज रहा है तो कोई शेयर में। सच कहूँ तो हमारे यहाँ किस्मत, खुशियों और जिंदगी तीनों की खुलेआम बाजी लग रही है।
अब बात करते दीपावली पर पूजनीय हम सबकी आराध्य देवी लक्ष्मी की। जो अबक‍ी बार लक्ष्मी हमारे घरों के साथ-साथ जैसे इस देश से भी रूठ सी गई है तभी तो किले और खंडहर खोदकर रूठी लक्ष्मी के ठिकाने को खोजा जा रहा है। लेकिन लक्ष्मी है कि दीपावली के दिन भी स्विस बैंक के एसी में बैठ अपनी चमकती किस्मत पर इठला रही है वह तो वहाँ डॉलर और यूरो से गप्पे लड़ा रही है। वाह रे लक्ष्मी माता, तू हमें कैसे-कैसे नाच नचा रही हैं? मेरी मानें तो असल में लक्ष्मी की यह नाराजगी जायज भी है। आज जब हमारी श्रृद्धा बिजली के दियों में और भावनाएँ प्लास्टिक के पुष्पों में समाती जा रही है तो लक्ष्मी भी घर की बजाय तस्वीरों में ही नकली रूप में मुस्कुरा रही है।
मेरे इस व्यंग्य के साथ आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ ....।

'                            शुभ दीपावली


                                                                                                                            - गायत्री    

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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

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