मैं कहती, तू कर देता
तेरा कहना और मेरा सुनना कभी एक सा नहीं होता
गर होता एक सा, तो न मैं हँसती, न तू रोता
पढ़ पाते मन के भाव जब
तो इधर-उधर की बातों का बहाना न होता
'कहने को करना' सच बना पाता तू
तो न तू बेवफा कहाता, न मैं पत्थरदिल होती
दिल में खिल जाते प्रेम के मोगरे जब
तब इत्र से बदन महकाने का कोई मतलब न होता
मेरे इंतजार से पहले ही आ जाता गर तू
तो मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहता
तेरा कहना और मेरा सुनना कभी एक सा नहीं होता
गर होता एक सा, तो न मैं हँसती, न तू रोता
- गायत्री
गर होता एक सा, तो न मैं हँसती, न तू रोता
पढ़ पाते मन के भाव जब
तो इधर-उधर की बातों का बहाना न होता
'कहने को करना' सच बना पाता तू
तो न तू बेवफा कहाता, न मैं पत्थरदिल होती
दिल में खिल जाते प्रेम के मोगरे जब
तब इत्र से बदन महकाने का कोई मतलब न होता
मेरे इंतजार से पहले ही आ जाता गर तू
तो मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहता
तेरा कहना और मेरा सुनना कभी एक सा नहीं होता
गर होता एक सा, तो न मैं हँसती, न तू रोता
- गायत्री
Comments
आपको मेरा ब्लॉग - कविताओ के मन से तो याद होंगा . अब मैंने फिर ब्लॉग्गिंग पर ध्यान दिया है . और सृजन कर रहा हूँ . आप कैसी है . अब भी इंदौर में ही है क्या .
आपका ये नज़्म अच्छी लगी .
अब फिर से निरंतरता रहेंगी . हो सके तो कॉल करे
विजय कुमार
हैदराबाद
09849746500