बचपन मिल गया बारिश में

आज तन के साथ मन भी भीगा,
कल्पनाएँ भी भीग गई बारिश में।
मन का मयूर नाचने लगा,
बचपन मिल गया मुझे बारिश में।
     
     सुप्त स्वप्न अब जाग उठे ,
     झूम उठी स्मृतियाँ भी बारिश में।  
     प्रकृति की चंचलता ने छेड़े प्रेम के तराने
     बूँदों के स्पर्श से सिहम गई हवा बारिश में।

- गायत्री शर्मा 

Comments

ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
प्रतिक्रिया हेतु आपका बहुत-बहुत आभार संजय जी।

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