कहाँ गुम हो गई बिजली ?


- -          गायत्री शर्मा
घोटालों के लिए विश्व प्रसिद्ध इस देश में प्रतिवर्ष किसी न किसी नए घोटाले से पर्दाफाश होता है। भारत की राजनीति में घोटालों की सड़ांध लागाने वाले राजनेताओं ने कभी चारा खाया तो कभी स्टाम्प में घपला किया, कभी टैक्स चोरी की तो कभी ये नेता देश की 193 कोयला खदानों को ही निगल गए। सिर से पाँव तक कोयले की कालिमा से रंगे राजनेता करोड़ों रुपयों के लालच में बेसुध बन सरकार के पास रिजर्व कोयले से बिजली आपूर्ति के उस महत्वपूर्ण गणित को लगाना तो भूल ही गए, जिससे देश के करोड़ों घरों की रोशनी हमेशा के लिए छिनने की नौबत आ गई। यही वजह है कि आज 1 लाख 86 हजार करोड़ रुपए के अनुमानित नुकसान के साथ कोयला घोटाला देश के अव्वल घोटालों में शुमार हो गया है।
      सुबह का भूला भी थक हारकर शाम को घर लौट आता है पर बैरन बिजली तो आजकल बार-बार हमारे घरों का रास्ता भटकती जा रही है। कुछ पल का अँधेरा तो हम बर्दाश्त कर सकते हैं लेकिन जब अँधेरा कभी खत्म न होने की बुरी खबर लेकर आएँ तो उस अँधेरे में गुम रोशनी की कीमत हमें पता चलती है। जिस तरह प्यासा पानी की एक-एक बूँद के लिए तरसता है ठीक उसी तरह बिजली संकट से जूझते लोग पंखे और लाइट की तरफ टकटकी लगाए बिजली की मेहरबानी के इंतजार में अपनी कई रातें गुजार देते हैं। देश की राजनीति में वोट बैंक का खजाना कहा जाने वाला राज्य उत्तरप्रदेश कल तक बिजली संकट से त्राहि-त्राहि कर रहा था लेकिन अब राजनेताओं की नगरी दिल्ली भी बिजली की किल्लत से कराह रही है। आपकी जानकारी के लिए हमारे देश में लगभग 69 प्रतिशत बिजली कोयले से बनाई जाती है यानि कि बिजली निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण कारक कोयला ही है। कोयले की कीमत का अंदाजा हम इस बात से भी लगा सकते है कि महज 1 यूनिट बिजली पैदा करने ‍में लगभग 800 ग्राम कोयले की खपत होती है। जो अमूल्य कोयला देश के करोड़ों घरों को रोशन कर रहा है। वहीं कोयला आज घोटालों का शिकार बन बड़ी आसानी से सरकारी हाथों से फिसलकर निजी हाथों में जा रहा है। देश में गहराते बिजली संकट पर ऊर्जा मंत्री कोयले की अनुपलब्धता का रोना रो रहे हैं तो वहीं सस्ते में कोल ब्लॉक पाने वाले खुशनसीब उद्योगपति व राजनेता कोल ब्लॉक से जमकर नोट छाप रहे हैं। हमारे घरों की कीमती बिजली उन्हें मुफ्त मिल रही है। कोयला घोटाले में लिप्त राजनेताओं की कोल ब्लॉक आवंटन में पूंजीपतियों के प्रति उदारता को देखकर यहीं कहा जाएगा कि उर्जा मंत्री जी अपने घर में अँधेरा कर दूसरों के घरों को रोशन करने चले है।
    गरीबों की तरह कम बिजली की खपत करने वाले देश भारत का भरपूर कोल ब्लॉक होते के बावजूद भी बिजली के लिए त्राहि-त्राहि करना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। अमेरिका (13,647 यूनिट), ‍चीन (2,456 यूनिट) और कनाडा (1,237 यूनिट) के मुकाबले भारत में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत सबसे कम यानि कि मात्र 734 यूनिट है लेकिन न्यून बिजली खपत के बावजूद भी आज हमें भरपूर बिजली नहीं मिल पा रही है। संसद में बार-बार गूँजायमान कोयला घोटाला तो बहुत बड़ा हुआ पर जाँच के नाम पर मात्र औपचारिकताओं ने इस घोटाले को छोटा करार देकर दबा दिया। यह बड़े अचरज की बात है कि कोयला घोटाले की अब तक दर्ज 20 एफआईआर में केवल 2 मामलों में ही सीबीआई ने चार्जशीट दायर की अन्य 4 मामलों में सीबीआई क्लोजर रिपोर्ट दर्ज कर पाई। इसी से पता लगता है कि कोल ब्लॉक आवंटन में हुई भारी गड़बड़ी में राजनेताओं, उद्योगपतियों व प्रशासनिक अधिकारियों सबकी साठ-गाँठ है।    

कहते हैं जब सैय्या कैबिनेट मंत्री हो तो पूरा देश जैसे आपकी जागीर बन जाता है। कुछ ऐसा ही हमारे ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल के राज में भी हो रहा है। ताबड़तोड़ अँधेरी रातों में दिल्ली की सड़कों पर पावर स्टेशनों के निर्माण कार्यों का जायजा लेकर अपनी चुस्ती दिखाने वाले नेताजी आज मन ही मन बिजली किल्लत को लेकर उठते सवालों से घबरा रहे हैं। घोटालों से गले-गले तक भर चुके ये राजनेता अब बिजली संकट पर जनता के तीखे सवालों से कन्नी काटने में ही अपनी समझदारी मान रहे हैं। लेकिन मुँह छिपाने या चुप्पी साधने से कुछ नहीं होगा। मानसून की मेहरबानी बिजली संकट से त्रस्त लोगों को कुछ समय तक राहत दे सकती है पर असली राहत तो हमें तब मिलेगी, जब कोल ब्लॉक आवंटन में हुई गड़बडि़याँ सार्वजनिक रूप से स्वीकारी जाएगी। जब बिजली कटौती पूरी तरह से बंद होगी और हमें सस्ती दरों पर बिजली मिलेगी।   

सूचना : इस ब्लॉग से किसी भी सामग्री का उपयोग करते समय साभार देना व सूचनार्थ मेल करना न भूलें। मेरे इस लेख का प्रकाशन उत्तरप्रदेश के प्रमुख दैनिक 'कल्पतरू एक्सप्रेस' के दिनांक 21 अगस्त 2014 के अंक में हुआ है।
 

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