रतलाम में हल्ला गुल्ला साहित्य मंच हे मालवी बोली व जल संरक्षण विषय पर संगोष्ठी दि सफायर स्कूल परिसर में राखी. अणी आयोजन में गीनिया-चुनिया पण हउ-हउ कवि, विचारक और मालवीप्रेमी लोक्का भेरा विया. कार्यक्रम संचालन रो काम संजय जोशी जी ए मने दिदो थो. अणी वस्ते मैं म्हारे नीचे बई गी ने एक-एक करी ने सबने बुलायो. सबसे पेला मैं बुलायो अपणा मंच रा कुमार विश्वास अलक्षेन्द्र व्यास जी ने. व्यास जी ए पेला तो सरस्वती माताजी पे अपणी कविता 'शत-शत वंदन, माँ अभिनंदन हुनई'. विका बाद वरिष्ठ कवि आज़ाद भारती जी ए मालवी में अपणी बढ़िया दो- तीन कविता हुनई. वणा ए 'कहाँ खो गया गांव ये मेरा, उसको ढूँढू गली-गली' हुनई. गहन-गंभीर आज़ाद जी रा दमदार परिचय रा बाद में आई गी बारी आई जे.सी.गौर साहब री. हसमुख स्वभावी गौर सा ए 'ओ पनिहारिन देखो, पनघट सगळा सुखी गया है' कविता हुनई ने पानी री कमी रा हंडे -हंडे विलुप्त होती मालवी बोली पर भी अपणा विचार राखिया.
  अब बारी आई तृप्ति सिंह बेन री. आज री अणि कार्यक्रम री मेज़बानी करवा वारी तृप्ति जी हे घणा कम पण सारगर्भित शब्दा में पाणी वचावा री वात कई दी. 'वर्षा का जल रोककर भर लीजो भंडार, कूप और नलकूप फिर कभी न हो बेकार' यो कई ने तृप्ति जी ए आज अणी कार्यक्रम में अपणी उपस्तिथि दर्ज करइ दी. घणो कम बोलवा वारी शांत स्वभावी मृदुभाषी तृप्ति बेन रा बाद साहित्य लेखन और काव्य पाठन में सक्रिय डॉक्टर शोभना तिवारी जी ए मालवी में अपणी सुंदर रचना रो काव्यपाठ कियो. 'जग, जीवन में राखो पानी, जल बिन जीवन सून है' अणि कविता से जल संवर्धन और मालवी बोली पे शोभना जी ए अपनी वात रखी. अब बारी आई वणी कवि री जो व्यवहार में भी सरल है ने उनको नाम भी संजय परसाई 'सरल' है. हमेशा री तरह वनाए 'चालो,चालो, चालो सगळा तिरबेनी रा मेला में' का हुनई ने मजो लाई दिदो. उका बाद वनाए अपणी एक और हउ कविता 'परिंदे' से खूब तालियां ने तारीफ बटोरी. 
           डॉक्टर कविता सूर्यवंशी री जद बारी आई. अणि बेन ए भी मोको देखी ने चोक्को मारियो ने अपणी दो सुंदर कविता 'जल है तो जीवन है' ने 'मीठी-मीठी लागे कतरी मालवा री बोली' हुनई. अपणा संजय जोशी जी कई वात करुँ. याकि तो मुस्कराहट ही सब बोली जावे. शर्मिला स्वभाव वाला संजय जी ए तो वना लाग लपेट के अपणी वात कई दी. ' जल से ही है हरियाली, बिन जल होगी बदहाली' यो कई ने अपणी ऊर्जा वचावा रा साथ ही याए जल संकट पे अपना विचार भी रखी दिया. अपणा युवा गीतकार अलक्षेन्द्र व्यास जी किसी परिचय रा मोहताज नी है. उनका गीत ही उनकी पहचान है. अपना चित परिचित गीत का साथ ही आज वनाए माँ पे बड़ो ही प्यारो मार्मिक गीत हुनायो. वणी गीत ने सुनी ने बिन बोे ही उनकी माँ की बीमारी को दद उनका आँसू में झलकी पड़ियो. हाची केउ तो व्यास जी रो किता हुनावा रो अंदाज़ तो लाजवाब है.
      आखिर में बारी अपणी भी आई. व्यास जी ए माँ पे वात ख़तम की थी तो मैं भी माँ पे लिखी अपणी कविता ' माँ से रंगीन है हर नज़ारा, माँ के बगैर अधूरा संसार है हमारा' से शुरुआत की. उका बाद मैं अपनो पुरानो व्यंग्य लेख 'पाणी बाबा आई जा नी तो भाटा से दई पाडूंगा थने'. इका बाद मैं अपणी मालवी कविता 'काल जो अपणी थी, आज वा पराई क्यों? अपणा गाम री बोली री, या जगहसाई क्यों?' और अपणी हिंदी कविता 'कल आई थी बूँदे' सुनाई.
  मोटा तौर पे का तो आज रा कार्यक्रम री सार्थकता अणि वस्ते सिद्ध वई गी क्योंकि आज अणि मंच से संगोष्ठी रा विषय मालवी बोली और जल है तो कल है विषय पे हउ विचार रखिया गया. ईका साथ ही आज इस मंच पे दो नई प्रतिभाएँ सामने आई. एक तृप्ति सिंह जी ने दूसरी डॉक्टर शोभना तिवारी. आप दोइ ए आज इ कार्यक्रम री शोभा बढ़ाई. इका साथ ही धन्यवाद संजय जोशी जी ने, जिनकी मेहनत और लगन से आज भी हल्ला-गुल्ला पे हसी का ठहाका ने साहित्यिक विचार गोष्ठिया जारी है.
                                - डॉ. गायत्री
दैनिक भास्कर समाचार-पत्र के रतलाम संस्करण में दिनांक 9 अप्रैल 2018 के अंक में प्रकाशित इस कार्यक्रम की न्यूज़.

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