जम्मू- कश्मीर के ￰कठुआ में 8 वर्षीय आसिफा के साथ हवस के भूखे जानवरों ने जो दरिंदगी की, उसे बयां करने के लिए मेरे पास उच्चस्तरीय गंदे, अश्लील और घटिया शब्द नहीं है. माफ़ कीजिएगा पर इन बलात्कारियों को मैं तो जानवर कहकर ही सम्बोधित करुँगी. सच कहा जाए तो देवस्थान जैसी पवित्र जगह को अपनी हवस का अड्डा बनाने वाले बलात्कारियों को हिंदू या मुस्लिम तो दूर इंसान कहलाने का भी अधिकार नहीं है. ये लोग किसी भी धर्म विशेष के साथ ही मानवता को भी शर्मसार करने वाले दरिंदे है.
        महज 8 साल की नन्ही मासूम बच्ची को अगुवा कर उसे नशीली दवा पिलाकर उसके जिस्म को नोचना, लगातार 4-5  दिन तक कई दरिंदों द्वारा भूख से व्याकुल और दर्द से सिहरती बच्ची के जिस्म का बर्बरतापूर्वक भक्षण करना और फिर उसके गले में दुपट्टा कसकर उसकी सांसे उखाड़ देना ....इतना ही नहीं इसके बाद सिर पर पत्थर पटक- पटककर उसकी लाश के साथ भी अमानवीयतापूर्ण कृत्य करना....सच कहू तो ये सब सोचकर ही मेरा मन सिहर उठता है.... आखिर ये कैसी भूख है, जो एक वयस्क और बच्ची में विभेद नहीं करती? क्या जिस्म की ये भूख इंसानी दरिंदों को इतना कामुक कर देती है कि वो उस बच्ची की जगह अपनी बच्ची या बहन के होने की कल्पना कर अपने आपको नहीं रोक पाते? आज क्या गुजर रही होगी उस बच्ची के माँ-बाप पर, जो गरीब, बेबस, लाचार और शोषण का शिकार है...यह सब हमारी कल्पनाओं से परे है.
               आज मेरा मन बड़ा व्याकुल है. चाहती हूँ कि कुछ ऐसा लिख दू जिसके लिए मुझ पर शब्दों की सामाजिक मर्यादा का बंधन ना हो. लेकिन चाहकर भी मैं किसी सार्वजानिक मंच पर अपने शब्दों को बेलगाम नहीं छोड़ सकती. मेरा आप सभी से अनुरोध है कि अपनी बेटियों और बहनों के साथ ही समूची नारी शक्ति की सुरक्षा के लिए कुछ करो, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए. आओ हम सब मिलकर इस घटना का विरोध करें.
      मन तो करता है कि इंसान की खाल ओढ़े इन दरिंदों को सामूहिक रूप से नग्न कर पेड़ों से बांधकर इतने पत्थर मारे कि कई दिनों तक तड़फते हुए ये स्वतः ही अपनी मौत की दुआ मांगने लगे. लेकिन यहाँ हमारा कानून अपनी लाचारी पर रोता है. कानून मौन है लेकिन हम तो मुखर हो सकते है. आइए और दिखा दीजिए अपनी आवाज़ और एकता का दम और कीजिए इस मंच से नारी शोषण के विरुद्ध नव क्रांति का आगाज़.
                           -  डॉ.गायत्री
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