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उड़ने दो मुझे

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उड़ने दो मुझे क्षितिज के उस छोर तक जहाँ हो आलिंगन धरा-अंबर का कहते हो हीरा पर रखते हो डिबियाँ में बंद चमचमाने दो मुझे आज खोल दो अब सारे बंधन कर दो मुक्त मुझे संकुचित सोच की मुट्ठी से चहकने दो मुझे चरकली (चिडि़याँ) की तरह सजाने दो अब घर-आँगन के सपने बनने दो जुगनू मुझे करने दो रोशन अंधेरों में गुम उम्मीदों को हाथ दे दो मुझे अपना एक विश्वास के साथ सदा दूँगा जीवनपथ पर तेरा साथ।   -           -  गायत्री