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Showing posts from March, 2011

कही शर्म न हो जाएँ शर्मसार

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विचारों में खुलापन होना समय की माँग है पर जब विचारों का खुलापन शरीर पर आ जाता है तब इसे आजादी या खुलापन नहीं बल्कि ' अश्लीलता ' कहना ही उचित होगा। कहते हैं व्यक्ति के परिवार में जब तक संस्कार जीवित रहते हैं। तब तक संस्कारों व मर्यादा का आवरण उसे हर बुराई से बचाता है। लेकिन जब अच्छाइयों पर आधुनिकता का भद्दा रंग चढ़ता है तब संस्कार , मर्यादाएँ , प्रेम , विश्वास सब ताक पर रख दिया जाता है। पश्चिम की तर्ज पर खुलेपन की कवायद करने वाले हम लोग अब ' लिव इन रिलेशनशिप ' और ' समलैंगिक संबंधों ' का पुरजोर समर्थन कर विवाह नामक संस्कार का खुलेआम मखौल उड़ा रहे हैं। आखिर क्या है यह सब ? यदि यह सब उचित है तो फिर माँ-बेटी , ससुर-जमाई , बाप-बेटा , बहन-बहन यह सब रिश्ते तो ' समलैंगिक संबंधों ' की भेट ही चढ़ जाएँगे और हमारा बचा-कुचा मान-सम्मान किसी के घर में उसके बेडरूम तक दखल कर ' लिव इन रिलेशनशिप ' के रूप में चादरों की सिलवटों में तब्दील होकर शर्मसार हो जाएगा। यदि ऐसा होता है तो भारत जल्द ही ब्रिटेन बन जाएगा। जहाँ 7 से 8 वर्

खुश रहना देश के प्यारों

'शहीदों की चिताओं पर लगेगे हर बरस मेले'  जिस किसी ने भी यह कहा था। सच कहूँ तो बहुत गलत कहा था। शहीदों की जयंतियाँ आज भी आती है पर शायद हममें से इक्के-दुक्के लोग ही उन्हें याद रख पाते है। हमें तो सेलिब्रेशन और जयंती के नाम पर केवल क्रिसमस,दिपावली और होली जैसे त्योहार और जयंतियों के नाम पर स्कूलों में रटाएँ जाने वाले निंबधों में मौजूद चाचा नेहरू और बापू ही याद रहते हैं। बाकी के सब शहीद तो वीआईपी शहीदों की गिनती में आते ही नहीं। कही दूर की बात क्यों गाँधी जयंती तो हमें याद है पर मुबंई आतंकी हमले में शहीद उन्नीकृष्णन की जयंती हमें याद नहीं है। जो हमारी आँखों के सामने घटित हुआ उसे हम नकार रहे हैं पर अतीत के मुर्दों को सीने से लगाकर हम उनके नाम के नारे लगा रहे हैं। आखिर हमसे बड़ा आँख वाला अँधा और कौन होगा भला?   पहले तो शैक्षणिक संस्थानों में भी भगत सिंह,तिलक,सरदार पटेल आदि का जिक्र कभी कभार हो ही जाता था पर अब स्कूल भी किताबों की भाषा बोलते हैं और विद्यार्थी अंग्रेजों की क्योंकि ये आजकल के किताबी ज्ञान वाले स्कूल है पहले की तरह संस्कारों सीखाने वाली पाठशाला नहीं। अब स्कूलों व क

मैं स्टेच्यू तो नहीं ...

- गायत्री शर्मा चौराहों पर खड़े नेताओं की मूर्तियाँ एक ओर जहाँ राहगीरों का ध्यान भटकाती है। वहीं दूसरी ओर दुर्घटनाओं का कारण भी बनती है। एक तो ये नेता लोग जीतेजी किसी का भला नहीं करते हैं और मरने के बाद भी ये हमारा बुरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। मंच,माइक,माया,पोस्टर और स्टेच्यू से इनका प्रेम तो जगजाहिर है। जब तक ये इस जीवित रहते हैं। तब तक ये हमें अखबारों,पोस्टरों व सार्वजनिक मंचों पर माइक से ज्ञान बाँटते नजर आते हैं और जब ये भगवान को प्यारे हो जाते हैं। तब दूसरों के स्टेच्यू पर फूल चढ़ाने वाले इन नेताओं के स्टेच्यू पर भी फूल चढ़ाने की बारी आ जाती है। इनके मरने के बाद इन्हीं की शोक सभा में 10 नए नेता उभरकर सामने आते हैं,जो टेस्टिंग के तौर पर नेता के मौत के गम में डूबी जनता को एक बढि़या सा शोक संदेश भावों के साथ पढ़कर सुनाते हैं। हमारे दिवंगत नेता की आत्मा की शांति के लिए चौराहों पर भव्य साजसज्जा वाले मंच सजते हैं। जिसमें बिजली की खुलेआम चोरी करके आकर्षक विद्युत सज्जा की जाती है,जी भर के खाया और पिया जाता है और इस तरह एक दिवंगत नेता को श्रृद्धांजलि देने के बहाने मस्त शोक सभ

नईदुनिया MP09 18 मार्च 2011 में मेरे द्वारा किया कवरेज

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नईदुनिया MP09 16 मार्च 2011 में मेरे द्वारा किया कवरेज

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नईदुनिया 'युवा' 10 मार्च 2011

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होली आई .... बचत का संदेश लाई

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दोस्तों , आप सभी को होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। आज शहर में जगह-जगह पर होलिका दहन पर बिखरे पड़ी अधजली लकडि़यों को देखा। ये वही लकडि़याँ थी , जो कल दोपहर तक हरे पत्तों से लहलहा रही थी। सुबह से चौराहे पर सीना ताने खड़ी ये लकडि़याँ शाम तक सिर झुकाकर मुरझाई हुई सी अपनी मौत से पहले अंतिम इच्छा के रूप में अपनी जिंदगी माँग रही थी पर परंपरा की आड़ में प्रदर्शन के नाम पर हर 4-6 घर छोड़कर हमने होलिका के नाम पर इनका ढ़ेर लगाकर इन्हें अग्नि के सुर्पुद कर दिया tऔर रंगों के नाम पर बेफिजूल रंगीन पानी सड़कों पर बहाकर पर्यावरण को गंदा कर दिया। सच कहूँ तो अब मुझे होली में प्रेम का रंग कम और गंदगी और विद्रोह का रंग अधिक नजर आता है। इस त्योहार का सबसे अधिक शिकार शहर के   सार्वजनिक स्थल व इमारते बनती है। जिन्हें मनचले लोग इस दिन जी भर के गंदा और रंगीन करते है। होली प्रेम और उल्लास का त्योहार है। आप चाहे तो इसे शांतिपूर्ण तरीके से मना सकते हैं। होलिका दहन यदि हमारी परंपरा है तो क्यों न हम हर गली-मोहल्ले की बजाय शहर में एक स्थान पर एकत्र होकर सार्वजनिक होली दहन कर इस परंपरा का निर्वहन करे। हम चाहे तो गीले