मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर करना
'मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर करना, हिंदी है हम वतन है, हिंदोस्ता हमारा' यह गीत केवल गुनगुनाने मात्र का नहीं है। इस गीत के बोल भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को दर्शाते है। लेकिन आतंक है कि भारत की एकता को खंडित करने के नापाक़ इरादों से अपने कदम बढ़ाते ही जा रहा है। आतंक का घिनौना रूप, जो कल पहलगाम के पास आतंकी हमले के रूप में देखने को मिला, कहीं ना कहीं यह आतंकियों की उन घटिया और निम्न स्तर की सोच को दर्शाता है, जो जाति व धर्म के नाम पर राम और रहीम को दोस्त से दुश्मन बनाना चाह रहे है। ये वो लोग है, जिन्हें विकास के पथ पर बढ़ते भारत को देख चिढ़ हो रही है। जिस तरह से खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचती है, वैसे ही देश के भीतर पलने वाले आतंकी रूपी जोक आतंक को प्रायोजित कर ख़ुश हो रहे है। याद रखिए भारत, भूमि का टुकड़ा मात्र नहीं है, यह वो जाग्रत माँ है, जो सिंहनी के समान झपटकर अपने बच्चे की तरफ आँख उठाने वाले के प्राण हरना जानती है। आप भी इस माँ के चंडी रूप धरने से पहले अपनी हरकतों से बाज आ जाओ और वतन के गद्दार से वफादार बन जाओ। वतन के गद्दार...