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वृक्षदेवी का मीराश्रय

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- डाॅ. गायत्री शर्मा   जिंदगी में मानव के अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद वर्षों से बदस्तूर जारी है परंतु मानव हर प्रयास करते-करते यह विस्मृत कर देता है कि उसके विनाश का एकमात्र बड़ा कारण वह स्वयं ही है। मानव प्रजाति के अस्तित्व से लेकर अंत तक, जीवन के हर छोटे-बड़े अवसरों से लेकर उसकी हर आवश्यकता की पूर्ति के लिए प्रकृति ही उसके लिए वरदायिनी बनी है। अभाव में ही व्यक्ति को किसी वस्तु की अहमियत का सही पता चलता है। प्रकृति के कण-कण में और उसकी हर नैमतों में ईश्वर बसता है। आइए जानते है इस कहानी के माध्यम से ।     राजस्थान के जोधपुर जिले का एक छोटा गांव धौलका, जहां रहता था सोहन का गरीब परिवार। ऊंटगाड़ी चलाकर दो-जून की रोटी का बंदोबस्त करने वाले इस परिवार के लिए रोजमर्रा के पानी का बंदोबस्त करना किसी चुनौती से कम नहीं था। मुन्ना ठाकुर के दबदबे वाले इस गांव में गरीबी और छुआछूत से निपटना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती था। मुन्ना ठाकुर के आदेश पर गांव के आसपास पेड़ों की अंधाधुध कटाई हो रही थी। वनविभाग के अधिकारी भी ठाकुर साहब की जी-हुजूरी कर धड़ल्ले से अपनी जेबे भर रहे थे। गांव का एकमात्र निजी व दूसरा सरकार