एक सुनहरी शाम
इस धुंध में भी एक चेहरे की मधुर मुस्कान बाकी है। यादों के पुरिंदे में अब तक एक सुनहरी शाम बाकी है। बीत गया हर लम्हा खत्म हो गया ये साल लेकिन अभी भी कुछ यादें बाकी है। एक साथी सफर का अब तक याद है मुझे। उस अजनबी रिश्ते का अब तक अहसास है मुझे। खुशियाँ इतनी मिली कि झोली मेरी मुस्कुराहटों से भर गई। जिंदगी में सब कुछ मिला मुझे पर तेरी कमी खल गई। इस साथी को 'अलविदा' कहना खुशियों से जुदा होना था, अपनों से खफा होना था। परंतु वो रहेगा कायम हमेशा मेरे होठों की मुस्कान में, इन आँखों की तलाश में, मेरी लेखनी के शब्दों में ..... - गायत्री शर्मा यह कविता मेरे द्वारा अपने वेबदुनिया वाले ब्लॉग पर 2 जनवरी 2009 को प्रकाशित की गई थी।