Posts

Showing posts from 2011

15 ‍िसंतबर 2010 के नईदुनिया ‘युवा’ में प्रकाशित कवर स्टोरी

Image

संजा तू थारा घरे जा .....

Image
कुँवारी लड़कियों की सखी 'संजाबाई' इन दिनों अपने पीहर में आई है। कुछ दिनों के लिए अपने पीहर में आई संजाबाई सा पार्वती जी का ही एक रूप है। जिनकी श्राद्धपक्ष में सोलह दिनों तक पूजा की जाती है। भारत के कई प्रांतों में संजा अलग-अलग रूप में पूजी जाती है। महाराष्ट्र में यही संजा 'गुलाबाई' बनकर एक माह तक अपने पीहर में रहती है तो वही राजस्थान में 'संजाया'के रूप में श्राद्ध पक्ष में यह कुँवारी लड़कियों की सखी बन उनके साथ सोलह दिन बिताती है। कुँवारी लड़कियाँ संजाबाई की पूजा अच्छे वर की प्राप्ति के लिए करती है।             यदि हम मालवांचल की संजा की बात करे तो यहाँ के गाँवों में संजा का मजा ही कुछ ओर है। शाम ढलते ही गोबर से दीवारों पर संजा की आकृति सजना शुरू हो जाती है। उसके बाद गोबर से बनी संजाबाई को फूलों और रंग-बिरंगी चमक से सजाकर उनका श्रृंगार किया जाता है। संजा तैयार होने के बाद गाँव की लड़कियाँ सामूहिक रूप से संजा के गीत गाती है और बाद में उनकी आरती कर प्रसाद भी बाँटती है। आपसी मेलजोल बढाने का और अपनी संस्कृति व परंपराओं से जुड़े रहने का एक अच्छा बहाना है संजा।    

अण्णा हजारे पर केंद्रित 25 अगस्त 2011 के 'युवा' में प्रकाशित कवर स्टोरी

Image

जाग उठा है लोकतंत्र

Image
एक अण्णा ने सारे हिंदुस्तान को जगा दिया है। जन लोकपाल बिल की यह लड़ाई अकेले अण्णा की नहीं ‍बल्कि हम सभी के हक की लड़ाई है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की यह हुंकार अब जल्द ही सरकार के पतन की चित्कार में बदलना चाहिए। अब हमारी बारी है। अण्णा की आमरण अनशन ने यह तो सिद्ध कर ही दिया है कि जनता ही जर्नादन है। वह लोकतंत्र का आदि और अंत है। जो चाहे तो रातो रात सरकार का तख्ता पलट सकती है।      अण्णा का यह अभियान असरकारक इसलिए भी है क्योंकि इस अभियान को आगे बढाने का बीड़ा देश की युवा पीढी ने उठाया है। यह वही युवा है कि जिसके बारे में आज तक यह कहा जाता था कि युवा अपनी मौजमस्ती व मॉर्डन लाइफस्टाइल से बाहर निकलकर कभी देश के बारे में नहीं सोच सकता है पर आज भ्रष्टाचार के विरोध में उसी युवा ने सड़कों पर आकर विद्रोह के स्वर मुखरित कर देश के असली जागरूक युवा की तस्वीर को प्रस्तुत किया है।      यदि आपने रामलीला मैदान पर नजर डाली होगी तो आप यही पाएँगे कि आज रामलीला मैदान में आंदोलन की रूपरेखा से लेकर वहाँ सफाई,पानी,‍बिजली,जनता की सुरक्षा व शांति व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी सभी कुछ युवा स्वयंसेवक

18 अगस्त 2011 के 'युवा' में प्रकाशित कवर स्टोरी 'पका मत यार'

Image

विजयी भव अन्ना

Image
अन्ना तेरी बात है कुछ निराली, बापू की भाषा में तूने सरकार से बगावत कर डाली तेरे ही रंग में रंग गया सारा हिंदुस्तान, अंहिसा के अस्त्र ने इस दौर में भी दिखाया कमाल माथे पर सफेद टोपी और अधिकारों के लिए उठते हाथ, पहली बार सुनी है मैंने सड़कों पर आमजन की आवाज 'विजयी भव अन्ना'                  - गायत्री शर्मा

11 अगस्त 2011 के 'युवा' में राखी पर केंद्रित स्टोरी

Image

'बत्ती गुल' युवा के 21 जलाई 2011 के अंक में प्रकाशित

Image

'जिंदगी दो पल की ...' 21 जुलाई 2011 के 'युवा' में प्रकाशित कवर स्टोरी

Image

14 जुलाई 2011 के 'युवा' में प्रकाशित रघु और राजीव का साक्षात्कार

Image

फिर दहल गई मुंबई

Image
26/11 की तरह 13 जुलाई को भी जिंदादिल लोगों की मुंबई एक बार फिर धमाकों के कंपन से दहल व सहम गई है। शाम ढलते ही मुंबई की वह चहल-पहल रौंगटे खड़े कर देने वाले सन्नाटे में तब्दील हो गई है। चीख, चीत्कार और न्याय की गुहार बस मुंबई में तो अब यही सुनाई दे रहा है। अजमल कसाब अब तक जिंदा है और हर बार मर रहा है कोई बेकसूर आम आदमी। क्या हम पाकिस्तान की तरह अपने देश में भी आतंकियों व दगाबाज लोगों का शासन लाना चाहते हैं। यदि नहीं तो फिर क्यों नहीं हम एक इंसान की जान की कद्र समझते है?               मेरा प्रश्न आप सभी से है कि हर बार धमाके का शिकार आम आदमी ही क्यों बनता है, कभी कोई राजनेता क्यों नहीं? ऐसा इसलिए कि कही न कही देश की गुप्त सूचनाएँ हमारे ही वफादार राजनेता व उच्च पद पर आसीन लोगों के माध्यम से आतंकियों तक पहुँचती है। हम माने या न माने पर आज हमें सबसे बड़ा खतरा हमारे देश के भीतर बैठे गद्दार व दगाबाज लोगों से हैं। आतंकियों को भारत की जेलों में शरण देना तो हमारी फितरत ही है। यदि आप साँप को प्यार से अपने पास बैठाकर पुचकारोगे तो इसका यह अर्थ नहीं कि साँप अपने जहरीले दंश को भूल आपको प्यार का जवाब

मर्डर 2 की बदबूदार कहानी

Image
दोस्तों, आज दुर्भाग्यवश मैंने 'मर्डर 2' फिल्म देखी। इस फिल्म को देखकर मुझे इस कड़वे सच का आभास हुआ कि भारतीय संस्कृति व संस्कारों को भूल अब हमारा युवा एक अंधेरी राह की ओर बढ रहा है। बहुत से लोगों को यह फिल्म अच्छी लगी और उन्ही लोगों की वजह से बॉक्स ऑफिस पर भी यह फिल्म हाल की हिट फिल्मों में अपना नाम दर्ज कराने में काबिज रही होगी। पर मेरा व्यक्तिगत मत यही है कि यह फिल्म एक घटिया स्तर की फिल्म है।      यदि हम बात करे तो आज से 10-20 साल पहले की तो उस वक्त तक फिल्मों के हिट होने का पैमाना उनका सशक्त कथानक, कथावस्तु, पात्र और फिल्म में निहित संदेश हुआ करते थे। जो समाज को सही राह दिखाकर रिश्तों में प्रेम को काबिज रखते थे। उन फिल्मों में भी डरावने विलेन होते थे पर ऐसे नहीं, जैसे कि मर्डर 2 या दुश्मन फिल्म में दिखाया गए है। इस फिल्म को देखकर तो जहाँ एक ओर बॉलीवुड के किसिंग किंग ईमरान हाशमी के किस की बरसात हमें बारिश के मौसम में शर्म से पानी-पानी करके भिगों देती है। वहीं इस फिल्म के विलेन का लड़कियों को काटकर उन्हें कुँए में फेक देने की आदत हमारे मन में घृणा पैदा कर देती है।         म

दादी की जंग जिंदगी और मौत से

Image
व्यक्ति की पल-पल अपनी गिरफ्त में लेती मौत और मौत की सुस्त चाल पर अट्टाहस करते कैंसर के बीच वार्तालाप का दृश्य बड़ा ही खौफनाक होता है। जीवन और मौत के बीच लड़ाई कुछ घंटों की हो तो ठीक है। पर जब यह लड़ाई घंटों को दिनों में तब्दील कर देती है और आवाज को मौन के सन्नाटे में। तब मौत और जीवन की जंग बड़ी कठिन हो जाती है। हम सभी जानते हैं कि अंतत: जीत मौत की ही होनी है पर फिर भी न जाने क्यों हम जिंदगी को जिताने में कोई कसर शेष नहीं रखते। इन दिनों जीवन-मृत्यु के बीच साँसों के तार की लड़ाई मेरी 75 वर्षीय दादी कमलाबाई लड़ रही है।                पिछले शुक्रवार तक तो सबकुछ थोड़ा ठीक था। शनिवार को चलते-चलते गिर पड़ने के कारण अचानक उनके सीधे हाथ की कलाई की हड्डी टूटती है और रविवार को उस हाँथ में प्लास्टर लगाया जाता है। जिस दौरान वह बार-बार कभी अस्पताल की टेबल पर तो कभी कार में बैठे-बैठे मुझसे सोने की जिद करती है, हाथ पकड़कर चलने से इंकार कर गोद में उठाने की जिद करती है और मैं बार-बार उन्हें यही कहती हूँ कि प्लीज दादी, अब तो अपने पैरों पर चलो। क्यों बच्चों की तरह नाटक करते हो? मेरी इस बात पर झल्लाकर वह

30 जून 2011 को 'युवा' में प्रकाशित कवर स्टोरी

Image

नईदुनिया 'युवा' के 16 जून 2011 के अंक में प्रकाशित कवर स्टोरी

Image

26 मई 2011 के नईदुनिया 'युवा' में 'बचा लो इस धरती को' शीर्षक से प्रकाशित कवर स्टोरी

Image

चल कही दूर निकल जाएँ .... शीर्षक से 12 मई 2011 को 'युवा' में प्रकाशित कवर स्टोरी

Image

नईदुनिया 'युवा' 21 अप्रेल 2011 'वर्ल्ड अर्थ डे0' विशेष

Image

नईदुनिया युवा 21 अप्रेल 2011 में थॉट बबल, युवा पेज नं. 2, 3 और 4

Image

खामोशी की खामोशी से बातें

Image
आओ करे खामोशी से बातें खो जाएँ उस शून्य में जिसका विस्तार है अनंत आओं करे खामोशी से बातें शब्द का शोर भूलकर अँधेरे की खूबसूरती में खोकर खोले दिल के राज कह दो आज तुम भी मन की पोटली में छुपी प्यारी सी बात आओ करे खामोशी से बातें समझे आँखों के ईशारे जो ले चले हमें रिवाजों से परे चलो सनम हम चले वहाँ  जहाँ न हो कोई तीसरी आँख दो आँखे ही कहे और समझे दिल से दिल की कही बात आओ करे खामोशी से बातें बैठे उस आम के पेड़ की गोद में जिसकी पत्तियों की सरसराहट में छुपी है मधुर संगीत की धुन जिसके फलों से टकराकर पत्तियाँ बजती हो ऐसे जैसे जलतरंग सी‍खे उस आम से प्रेम की ठंडक का अहसास आओ करे खामोशी से बातें मेरे आँचल में छुप जाओं तुम इस तरह जैसे छुपा हो चाँद बादलों की ओट में शरमाई सी अलसाई सी हवा भी हमसे ऐसे लिपट जाएँ जैसे हो रहा हो धरा और गगन का मिलन आओ करे खामोशी से बातें            - गायत्री शर्मा  

नईदुनिया 'युवा' इंटरव्यू टिप्स 07 अप्रेल 2011

Image

नईदुनिया 'युवा' इंटरव्यू टिप्स 31 मार्च 2011

Image

नईदुनिया 'युवा' इंटरव्यू टिप्स 24 मार्च 2011

Image

नईदुनिया 'युवा' थॉट बबल में मेरे द्वारा युवाओं से पूछे गए प्रश्न 07 अप्रेल 2011

Image

नईदुनिया 'युवा' थॉट बबल में मेरे द्वारा युवाओं से पूछे गए प्रश्न 31 मार्च 2011

Image

नईदुनिया 'युवा' थॉट बबल में मेरे द्वारा युवाओं से पूछे गए प्रश्न 24 मार्च 2011

Image

नईदुनिया MP09 06 अप्रेल 2011 में मेरे द्वारा किया कवरेज

Image

क्रिकेट को 'हाँ' .... हॉकी को 'ना'

Image
- गायत्री शर्मा सड़कों पर कर्फ्यू सा सन्नाटा,घरों और मुख्य चौराहों पर रौनक ... यह नजारा था आज देश के हर शहर का। जहाँ टीवी वहाँ लोग,जैसे कि एक अनार और सौ बीमार । कुछ लोगों ने तो जनसेवा करने के लिए अपनी दुकानों के बाहर बड़ी सी टीवी लगाकर ट्रॉफिक जाम करने की भरपूर व्यवस्था कर दी थी। कुछ भी कहो लेकिन यह बात तो अच्छी हुई कि वर्ल्ड कप में जीत हासिल करने से आज हम ‍फिर से विश्व विजेता बन गए। आज फिर से ‍क्रिकेट के मैदान में तिरंगे की जय-जयकार हुई। भारत का लाडला क्रिकेट जीतकर आया तो ऐसा लगा जैसे पटाखों के रूप में तारे जमीन पर आकर धोनी के धुरंधरों को सलाम कर रहे हैं। सचमुच यह भारतीयों की क्रिकेट के प्रति अँधी दीवानगी का ही असर है कि वर्ल्ड कप के शुरू होते ही बाजार खामोश हो गया। यह सब देखकर मुझे तो ऐसा लगा जैसे किसी राजनेता का देवलोकगमन हो गया हो और राजकीय शोक के साथ शासकीय अवकाश घोषित कर दिया गया हो। आने वाले 10 सालों में कुछ हो न हो पर हमारे कैलेंडर में क्रिकेट हे का अवकाश जरूर घोषित कर दिया जाएगा।   बढ गई टीवी से नजदीकियाँ : हाल ही में वर्ल्ड कप में भारत-पाकिस्तान के मैच के दिन तो जैसे सड़

क्रिकेट को 'हाँ' .... हॉकी को 'ना'

- गायत्री शर्मा सड़कों पर कर्फ्यू सा सन्नाटा,घरों और मुख्य चौराहों पर रौनक ... यह नजारा था आज देश के हर शहर का। जहाँ टीवी वहाँ लोग,जैसे कि एक अनार और सौ बीमार । कुछ लोगों ने तो जनसेवा करने के लिए अपनी दुकानों के बाहर बड़ी सी टीवी लगाकर ट्रॉफिक जाम करने की भरपूर व्यवस्था कर दी थी। कुछ भी कहो लेकिन यह बात तो अच्छी हुई कि वर्ल्ड कप में जीत हासिल करने से आज हम ‍फिर से विश्व विजेता बन गए। आज फिर से ‍क्रिकेट के मैदान में तिरंगे की जय-जयकार हुई। भारत का लाडला क्रिकेट जीतकर आया तो ऐसा लगा जैसे पटाखों के रूप में तारे जमीन पर आकर धोनी के धुरंधरों को सलाम कर रहे हैं। सचमुच यह भारतीयों की क्रिकेट के प्रति अँधी दीवानगी का ही असर है कि वर्ल्ड कप के शुरू होते ही बाजार खामोश हो गया। यह सब देखकर मुझे तो ऐसा लगा जैसे किसी राजनेता का देवलोकगमन हो गया हो और राजकीय शोक के साथ शासकीय अवकाश घोषित कर दिया गया हो। आने वाले 10 सालों में कुछ हो न हो पर हमारे कैलेंडर में क्रिकेट हे का अवकाश जरूर घोषित कर दिया जाएगा।   बढ गई टीवी से नजदीकियाँ : हाल ही में वर्ल्ड कप में भारत-पाकिस्तान के मैच के दिन तो जैसे सड

कही शर्म न हो जाएँ शर्मसार

Image
विचारों में खुलापन होना समय की माँग है पर जब विचारों का खुलापन शरीर पर आ जाता है तब इसे आजादी या खुलापन नहीं बल्कि ' अश्लीलता ' कहना ही उचित होगा। कहते हैं व्यक्ति के परिवार में जब तक संस्कार जीवित रहते हैं। तब तक संस्कारों व मर्यादा का आवरण उसे हर बुराई से बचाता है। लेकिन जब अच्छाइयों पर आधुनिकता का भद्दा रंग चढ़ता है तब संस्कार , मर्यादाएँ , प्रेम , विश्वास सब ताक पर रख दिया जाता है। पश्चिम की तर्ज पर खुलेपन की कवायद करने वाले हम लोग अब ' लिव इन रिलेशनशिप ' और ' समलैंगिक संबंधों ' का पुरजोर समर्थन कर विवाह नामक संस्कार का खुलेआम मखौल उड़ा रहे हैं। आखिर क्या है यह सब ? यदि यह सब उचित है तो फिर माँ-बेटी , ससुर-जमाई , बाप-बेटा , बहन-बहन यह सब रिश्ते तो ' समलैंगिक संबंधों ' की भेट ही चढ़ जाएँगे और हमारा बचा-कुचा मान-सम्मान किसी के घर में उसके बेडरूम तक दखल कर ' लिव इन रिलेशनशिप ' के रूप में चादरों की सिलवटों में तब्दील होकर शर्मसार हो जाएगा। यदि ऐसा होता है तो भारत जल्द ही ब्रिटेन बन जाएगा। जहाँ 7 से 8 वर्

खुश रहना देश के प्यारों

'शहीदों की चिताओं पर लगेगे हर बरस मेले'  जिस किसी ने भी यह कहा था। सच कहूँ तो बहुत गलत कहा था। शहीदों की जयंतियाँ आज भी आती है पर शायद हममें से इक्के-दुक्के लोग ही उन्हें याद रख पाते है। हमें तो सेलिब्रेशन और जयंती के नाम पर केवल क्रिसमस,दिपावली और होली जैसे त्योहार और जयंतियों के नाम पर स्कूलों में रटाएँ जाने वाले निंबधों में मौजूद चाचा नेहरू और बापू ही याद रहते हैं। बाकी के सब शहीद तो वीआईपी शहीदों की गिनती में आते ही नहीं। कही दूर की बात क्यों गाँधी जयंती तो हमें याद है पर मुबंई आतंकी हमले में शहीद उन्नीकृष्णन की जयंती हमें याद नहीं है। जो हमारी आँखों के सामने घटित हुआ उसे हम नकार रहे हैं पर अतीत के मुर्दों को सीने से लगाकर हम उनके नाम के नारे लगा रहे हैं। आखिर हमसे बड़ा आँख वाला अँधा और कौन होगा भला?   पहले तो शैक्षणिक संस्थानों में भी भगत सिंह,तिलक,सरदार पटेल आदि का जिक्र कभी कभार हो ही जाता था पर अब स्कूल भी किताबों की भाषा बोलते हैं और विद्यार्थी अंग्रेजों की क्योंकि ये आजकल के किताबी ज्ञान वाले स्कूल है पहले की तरह संस्कारों सीखाने वाली पाठशाला नहीं। अब स्कूलों व क

मैं स्टेच्यू तो नहीं ...

- गायत्री शर्मा चौराहों पर खड़े नेताओं की मूर्तियाँ एक ओर जहाँ राहगीरों का ध्यान भटकाती है। वहीं दूसरी ओर दुर्घटनाओं का कारण भी बनती है। एक तो ये नेता लोग जीतेजी किसी का भला नहीं करते हैं और मरने के बाद भी ये हमारा बुरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। मंच,माइक,माया,पोस्टर और स्टेच्यू से इनका प्रेम तो जगजाहिर है। जब तक ये इस जीवित रहते हैं। तब तक ये हमें अखबारों,पोस्टरों व सार्वजनिक मंचों पर माइक से ज्ञान बाँटते नजर आते हैं और जब ये भगवान को प्यारे हो जाते हैं। तब दूसरों के स्टेच्यू पर फूल चढ़ाने वाले इन नेताओं के स्टेच्यू पर भी फूल चढ़ाने की बारी आ जाती है। इनके मरने के बाद इन्हीं की शोक सभा में 10 नए नेता उभरकर सामने आते हैं,जो टेस्टिंग के तौर पर नेता के मौत के गम में डूबी जनता को एक बढि़या सा शोक संदेश भावों के साथ पढ़कर सुनाते हैं। हमारे दिवंगत नेता की आत्मा की शांति के लिए चौराहों पर भव्य साजसज्जा वाले मंच सजते हैं। जिसमें बिजली की खुलेआम चोरी करके आकर्षक विद्युत सज्जा की जाती है,जी भर के खाया और पिया जाता है और इस तरह एक दिवंगत नेता को श्रृद्धांजलि देने के बहाने मस्त शोक सभ

नईदुनिया MP09 18 मार्च 2011 में मेरे द्वारा किया कवरेज

Image

नईदुनिया MP09 16 मार्च 2011 में मेरे द्वारा किया कवरेज

Image

नईदुनिया 'युवा' 10 मार्च 2011

Image

होली आई .... बचत का संदेश लाई

Image
दोस्तों , आप सभी को होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। आज शहर में जगह-जगह पर होलिका दहन पर बिखरे पड़ी अधजली लकडि़यों को देखा। ये वही लकडि़याँ थी , जो कल दोपहर तक हरे पत्तों से लहलहा रही थी। सुबह से चौराहे पर सीना ताने खड़ी ये लकडि़याँ शाम तक सिर झुकाकर मुरझाई हुई सी अपनी मौत से पहले अंतिम इच्छा के रूप में अपनी जिंदगी माँग रही थी पर परंपरा की आड़ में प्रदर्शन के नाम पर हर 4-6 घर छोड़कर हमने होलिका के नाम पर इनका ढ़ेर लगाकर इन्हें अग्नि के सुर्पुद कर दिया tऔर रंगों के नाम पर बेफिजूल रंगीन पानी सड़कों पर बहाकर पर्यावरण को गंदा कर दिया। सच कहूँ तो अब मुझे होली में प्रेम का रंग कम और गंदगी और विद्रोह का रंग अधिक नजर आता है। इस त्योहार का सबसे अधिक शिकार शहर के   सार्वजनिक स्थल व इमारते बनती है। जिन्हें मनचले लोग इस दिन जी भर के गंदा और रंगीन करते है। होली प्रेम और उल्लास का त्योहार है। आप चाहे तो इसे शांतिपूर्ण तरीके से मना सकते हैं। होलिका दहन यदि हमारी परंपरा है तो क्यों न हम हर गली-मोहल्ले की बजाय शहर में एक स्थान पर एकत्र होकर सार्वजनिक होली दहन कर इस परंपरा का निर्वहन करे। हम चाहे तो गीले

एक्शन रिप्ले, नईदुनिया 'युवा' उज्जैन, 13 जनवरी 2011

Image

नईदुनिया 'युवा' 13 जनवरी 2011 (प्रथम पृष्ठ)

Image

नईदुनिया 'युवा' 6 जनवरी 2011 में मेरा आलेख

Image

नईदुनिया 'युवा' 6 जनवरी 2011 (लक्ष्य से भटकते न्यूज चैनल)

Image