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Showing posts from November, 2013

राइट टू प्राइवेसी या राइट टू इस्केप

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देश के सभी नागरिकों के लिए समान कहे जाने वाले कानून का हाई प्रोफाइल और लो प्रोफाइल लोगों के बीच आखिर भेदभावपूर्ण रवैया क्यों? ‘राइट टू प्राइवेसी’ की दुहाई देकर किसी मामले को जाँच हेतु सार्वजनिक होने से रोकने का अधिकार क्या केवल हाईप्रोफाइल लोगों को ही प्राप्त है? यदि हाँ, तो इस अधिकार का प्रयोग कर किसी मामले को जाँच प्रक्रिया से पहले ही दबा देने वाले कानून से क्या सही व निष्पक्ष न्याय की उम्मीद की जा सकती है?   यदि हम कुछ चर्चित मामलों की बात करें तो अब तक कई नेता फोन टेपिंग व विवादित सीडी मामलों में फँस चुके हैं परंतु सही समय पर ‘राइट टू प्राइवेसी’ के अधिकार को अपनी सुरक्षा का हथियार बनाकर वे इन मामलों से सुरक्षित बच भी निकले है। अमर सिंह, अभिषेक मनु सिंघवी, नीरा राडिया व रतन टाटा आदि ने समय-समय पर अपने इस अधिकार का प्रयोग कर कानून के शिंकजे में फँसने से स्वयं को बचा लिया था। उन्हीं की तरह अब बारी है नरेन्द्र मोदी की, जो एक लड़की के फोन टेपिंग मामले में बुरी तरह फँसते नजर आ रहे हैं। लेकिन मुझे लगता है कि यह मामला चुनावी दंगल तक ही सुर्खियों में रहेगा। वक्त बीतने के साथ-साथ

आरूषि ने किया साढ़े पाँच साल इतंजार

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माँ-बाप की लाडली लाडो जब मौत की नींद सोई तब न बाप ने सुनी उनकी चीखे और न माँ की छाती फूट-फूट कर रोई हत्यारे दंपत्ति को हँसते देख मानवता भी सिसकियाँ भर-भर रोई जब माँ-बाप ही बन गए कसाई तो बलि की बेदी पर नन्हीं आरूषि भी चूजा बन खुशी-खुशी सोई शक से हुआ संबंधों का अंत और मच गया रिश्तों में महासंग्राम जो रिश्ते कल हो गए थे लाश में तब्दील अब वही करने लगे न्याय की गुहार सर्जिकल ब्लेड की तीक्ष्ण धार और गोल्फ स्टिक के जानलेवा वार न काट पाएँ और दबा पाएँ   आरूषि हेमराज की साँसो के तार दफन होकर भी साढ़े पाँच साल तक करती रही वो कानून से न्याय की गुहार लेकिन आज कोर्ट में मिली सजा भी न दिला पाई इस बेटी को पूरा इंसाफ । - गायत्री  

प्रेम में सर्मपण ...

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करते हो कभी मेरी कामयाबी की दुआ और हो जाते हो कभी कामयाबी से ही खफा कहते हो कामयाबी की उड़ान इतनी दूर ले जाती है जहाँ मीलों तक अपनों की आवाज नहीं आती है डरते हो कामयाबी से, पर चाहते भी हो कामयाबी को अपने लिए नहीं ... बस मेरे लिए ... बस मेरे लिए डर है मन में, पर साथ है फिक्र भी दुआओं के साथ-साथ वियोग की हल्की सिसकियाँ भी प्रेम में सर्मपण का तीक्ष्ण दर्द तेरी आँखों में साफ नजर आता है पर फिर भी कामयाबी के खातिर तू खुशी-खुशी मुझसे दूर चला जाता है     - गायत्री  

है जिंदगी इस पल में ...

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कब, कैसे और कहाँ शायद ये न तुम्हें पता है और न मुझे पर आज, अभी और इस पल में ही हम सब कुछ पाकर जिंदगी को पूर्ण मान रहे हैं। सपनों से शुरू हुई यह हकीकत ईश्वर की इबादत का परिणाम है या कर्मों का जो भी है यह तो साफ है कि इस पल में ही जिंदगी है। - गायत्री  

शब्द सम्हारे बोलिएँ, शब्द के हाथ न पाँव

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शब्द सम्हारे बोलिएँ, शब्द के हाथ न पाँव  एक शब्द औषध करे, एक शब्द करे घाव  कहते हैं कि एक बार मुँह से निकलने के बाद शब्द, शब्द नहीं रहते। वह हमारे व्यक्तित्व और सोच का परिचायक बन जाते हैं। कटु शब्दों के तीर जहाँ दिलों को छलनी कर रिश्तों को तार-तार कर देते हैं। वहीं मीठे शब्दों का शहद गहरे से गहरे कटुता के घाव को भी भर देता है। तभी तो कहते हैं कि शब्द सम्हल सम्हल कर बोलना चाहिए। शब्द ब्रह्म है। शब्द ही मेरी और आपकी पहचान है।     जब बात चली है शब्द सम्हलकर बोलने की, तो क्यों न इस चुनावी माहौल में उन महान हस्तियों की चर्चा कर ली जाएँ। जिनके शब्द उनकी जीभ से फिसलकर बेकाबू हो जाते हैं और इधर-उधर घुम-फिरकर लोगों का मनोरंजन करते हैं। चलिए मिलते हैं उन लोगों से, जो शब्दों के मामले में बच्चों की तरह थोड़े कच्चे है।   कुमार विश्वास : मशहूर कवि व आम आदमी पार्टी (आप) के नेता कुमार विश्वास के आक्रामक तेवर उनके काव्य पाठ के ढंग से ही नजर आ जाते हैं। युवाओं के बीच मशहूर यह कलम का कलाकार कवि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में जब अन्ना के साथ खड़ा हुआ। तब से कवि के साथ-साथ कुशल वक्ता के

तरूण तेजपाल के ‘तहलका’ में मचा तहलका

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उप शीर्षक : न उठाओं ऊँगली किसी पर .... ‘कहते हैं जब हम किसी की ओर एक ऊँगली उठाते हैं तो तीन ऊँगलियाँ हमारी ओर भी उठती है।‘ लगातार कई बड़े सनसनीखेज खुलासों से पत्रकारिता जगत में तहलका मचाने वाली ‘तहलका’ मैंग्जीन की संपादकीय टीम में भी अब तहलका मच गया है। स्टिंग ऑपरेशन के जरिए सुर्खियों में छाने वाले ‘तहलका’ के पत्रकार अब स्वयं सुर्खियाँ बन चुके हैं।         12, लिंक रोड पर अब सन्नाटा पसरा है। पिछले कुछ दिनों से इस घर के अंदर-बाहर पुलिस के आला अफसरों व पत्रकारों की चहलकदमी जल्द ही इस सन्नाटे को चीरकर कोई बड़ा खुलासा होने की ओर ईशारा कर रही है। देश का एक महान खोजी पत्रकार विरूद्ध तहलका की एक पत्रकार , आरोप- यौन शोषण का गंभीर आरोप, सबूत-होटल का सीसीटीवी फुटेज और तेजपाल का मेल के माध्यम से अपना जुर्म कबूलना। इस मामले पर महिला पत्रकार के गंभीर आरोप, हर तरफ से महिला के सर्मथन में उठते तेज स्वर और पुलिस का सख्त रवैया क्या तरूण तेजपाल के करियर के चमकते सितारों के अस्ताचल की ओर बढ़ने का संकेत है या फिर कोई तयशुदा साजिश?             देश में खोजी पत्रकारिता को नया आयाम, नई पहचान प्रदान

म.प्र. विधानसभा सचनाव 2013 – मुद्दे, वादें और हकीकत भाग -3

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उपशीर्षक : चेतना से पूर्ण चेतन्य की चर्चा        धक-धक, धक-धक, धक-धक .... 2013 के विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने वाले उम्मीद्वारों के साथ ही शहर के आमजन के दिलों की धड़कने भी अब तेज होने लगी है। जहाँ चुनावी मैदान में उतरे उम्मीद्वार अपनी जीत की जुगाड़ में लगे हुए है तो वहीं हम अपने व अपने शहर के भविष्य का अहम फैसला लेने के लिए सोच-विचार में लगे हैं। हर कोई अपने-अपने काम में व्यस्त है। नेताजी अपने वादों से जनता को लुभाने में और जनता कभी सामने न आने वाले नेताजी पर भाव खाने में लगी है। सच कहें तो पिछले कई दिनों से शहर के हर गली-मुहल्ले में लगातार सुनाई देने वाले चुनावी प्रचार के गीतों को सुनकर हमारे कान और चुनाव की खबरें पढ़कर हमारी आँखे ऊब चुकी है। बस अब हम सभी को बेसब्री से इंतजार है 25 नवंबर का। जब हम अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।            मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में चुनाव प्रचार समाप्ति की घोषणा होने में अब कुछ ही घंटे शेष है ये कुछ घंटे ही प्रत्यक्ष रूप से हमारे शहर के विकास व परोक्ष रूप से हमारे देश के भविष्य को निर्धारित करने में अपनी एक अहम भूमिका निभाएँग

म.प्र. विधानसभा चुनाव 2013 – मुद्दे, वादें और हकीकत (भाग – 2)

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उपशीर्षक : रतलाम शहरी क्षेत्र त्रिकोणीय मुकाबला इस बार मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों के चुनावी दंगल में कई खिलाड़ी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। प्रदेश की 230 सीटों के लिए लगभग 2,383 नए-पुराने उम्मीद्वार अपने किस्मत के सितारे के चमकने की आस लगाएँ चुनावी मैदान में उतरे हैं। इनमें से कई खिलाड़ी तो अगूँठाछाप होते हुए भी राजनीति में अनुभवियों की गिनती में आते हैं। वहीं कई नए उच्च शिक्षित चेहरे भी युवाओं को लुभाने के लिए परिवर्तन के नारे के साथ जनता की सहानुभूति और वोट दोनों की जुगाड़ करने में लगे है। ‘वोट की राजनीति’ और ‘वोट पर राजनीति’ सालों से इस देश में होती आई रही है और आगे भी बदस्तूर जारी रहेगी। वोट पाने के लिए हमारे नेताजी कई बार तो ऐसे काम भी कर लेते हैं। जिनकी अपेक्षा करना उनसे नामुमकिन होता है। खैर छोडि़ए इन बातों को और जानिए अपने क्षेत्र के नेताजी के बारे में कुछ जरूरी बातें – हम बात करते हैं रतलाम विधानसभा क्षेत्र की, जिसके अंर्तगत रतलाम ग्रामीण, रतलाम शहरी, सैलाना, जावरा व आलोट क्षेत्र आते हैं। जिनमें लगभग 43 उम्मीद्वार विधायक की कुर्सी पाने के लिए मैदान में उतरे हैं

जागो रे, जागो रे, जागो रे ...

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कितनी अजीब बात है न कि जब हम नया टीवी, मोबाईल या रेफ्रिजरेटर खरीदते है तो हम कई बार उनके फीचर्स, ग्यारन्टी, वारन्टी आदि के बारे में बारीकी से जाँच पड़ताल करते हैं, वह भी केवल इसलिए कि हमारे धन का सदुपयोग हो और जिस चीज को  हम   चुने, वह अच्छी हो। कुछ यही बात शादी-ब्याह के रिश्तों के समय भी लागू होती है। उस समय भी हम अपने स्तर पर सारी जानकारियाँ निकालकर सोच-समझकर हाँ या ना के निर्णय पर अपनी मुहर लगाते हैं। लेकिन वोट डालकर अपने नेता को चुनते समय सब कुछ जानते हुए भी हम   न जाने क्यों  अपनी आँखे मूँद लेते हैं? आँखे क्या हम तो अपना कान और मुँह भी बंद करके भेड़चाल में मतदान करने चले जाते हैं।             कुछ समझदार लोग तो ऐसे भी होते है, जो मतदान वाले दिन वोट न डालकर अपने परिवार के साथ सैर-सपाटे पर निकल जाते हैं। आखिर हम क्यों भूल जाते हैं कि वोट डालना न केवल हमारा अधिकार है बल्कि भारत का नागरिक होने के नाते हमारी एक अहम जिम्मेदारी भी है पर हम है कि अपनी इस जिम्मेदारी को औपचारिकता समझकर बिना सोचे-समझे अनमने मन से वोट डालकर अपनी जिम्मेदारी से इति श्री कर लेते हैं।           कहते हैं

म.प्र. विधानसभा चुनाव 2013 – मुद्दे, वादें और हकीकत (भाग – 1)

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वादा तेरा वादा ... भारत के हृदय प्रदेश कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में 25 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू होने के साथ ही छोटे-बड़े राजनेताओं की प्रदेश में चहलकदमी की हलचलें भी तेज होने लगी है। भाजपाशासित इस प्रदेश में शिवराज के कार्यकाल में प्रदेश के विकास की बात छेड़कर जहाँ भाजपा आमजन को ‘फिर शिवराज’ का नारा देकर प्रलोभित कर रही है। वहीं दूसरी ओर भाजपा की वादाखिलाफी का राग अलापते हुए कांग्रेस भी तख्तापलट की आशा में ‘सत्ता परिवर्तन रैली’ निकालकर जनता को सत्ता परिवर्तन हेतु उकसा रही है। यह तो हुई प्रदेश में सत्ता की कुर्सी के दो बड़े दावेदार दलों की बात। कमल के फूल व पंजे की इस लड़ाई के बीच अन्य दलों के नेता व निर्दलीय उम्मीद्वार भी विकास की बयार लाने के वादों के साथ अपना एक अलग राग अलाप रहे हैं। इस प्रकार चुनावी दंगल में अपनी किस्मत आजमाने वाले सभी उम्मीदार नए वादों व पुराने मुद्दों के साथ प्रदेश के वोटरों का दिल जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। यही वजह है कि कभी-कभार जनता के बीच नजर आने वाले नेताजी अब वोट की जुगाड़ में जनता के पैर पकड़ते व उन्हें प्रण
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दिपावली की फीकी है रौनक   इस बार दीपावली महँगाई की चमक से दमक रही है। बाजार एक बार फिर से गुलजार है परंतु कहीं न कहीं बाजार को भी खरीदारों का इतंजार है। दीपावली पर घी के दिए जलाना जैसे अतीत की बात हो गई है। वर्तमान में तो सस्ते तेल और इलेक्ट्रिक दियों से ही दिपावली की रातें रोशन हो रही है। महँगाई का मार , चुनाव का इतंजार और सख्ताहाल सड़कों की तरह गठबंधन के दम पर चलती सरकार के बीच आम आदमी तो जैसे गन्ने की तरह पीस सा गया है। तभी तो हममें से कोई ज्योतिष में अपना भविष्य खोज रहा है तो कोई शेयर में। सच कहूँ तो हमारे यहाँ किस्मत , खुशियों और जिंदगी तीनों की खुलेआम बाजी लग रही है। अब बात करते दीपावली पर पूजनीय हम सबकी आराध्य देवी लक्ष्मी की। जो अबक‍ी बार लक्ष्मी हमारे घरों के साथ-साथ जैसे इस देश से भी रूठ सी गई है तभी तो किले और खंडहर खोदकर रूठी लक्ष्मी के ठिकाने को खोजा जा रहा है। लेकिन लक्ष्मी है कि दीपावली के दिन भी स्विस बैंक के एसी में बैठ अपनी चमकती किस्मत पर इठला रही है वह तो वहाँ डॉलर और यूरो से गप्पे लड़ा रही है। वाह रे लक्ष्मी माता , तू हमें कैसे-कैसे नाच नचा रही हैं ? मेरी