महात्मा गाँधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ब्लॉगरों का जमावड़ा
वर्धा स्थित महात्मा गाँधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय परिसर में हिंदी ब्लॉगिंग की आचार-संहिता पर 9 व 10 अक्टूबर को आयोजित दो दिवसीय गोष्ठी में सम्मिलित होकर बहुत अच्छा लगा। पहले दिन अपरीचित व दूसरे दिन सुपरीचित ब्लॉगरों से मेल-मिलाप व बातचीत करने में दो दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला।
वर्धा में दो दिवसीय प्रवास के दौरान मुझे देश भर से वर्धा आए ब्लॉगरों से मिलने का व लगातार दो दिनों तक उनके संपर्क में रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इनमें से सुरेश चिपलूनकर और यशवंत सिंह तो मैं पहले से ही परीचित थी इसलिए गोष्ठी के पहले दिन इन दोनों के दर्शन अपरीचितों के बीच सुकून की ठंडी छाँव की तरह थे। तभी तो मुझे देखकर यशवंत जी के मुँह से अनायास निकल ही गया कि गायत्री अब हम लगातार तीसरी बार किसी कर्यक्रम में साथ मिल रहे हैं। अब तो लगता है कि यहाँ कोई न कोई धमाका होगा। सच कहूँ तो धमाका हुआ भी ...।
अब बात करते हैं इस गोष्ठी के सूत्रधार सिद्धार्थ जी के बारे में। जिनके स्नेहिल निमंत्रण पर मुझे अपने सारे कार्य छोड़कर वर्धा आना ही पड़ा। केवल सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी ही नहीं बल्कि उनकी श्रीमती रचना त्रिपाठी की मिलनसारिता भी लाजवाब थी। महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय में आयोजित इस कार्यक्रम में पधारे पामणों के आव आदर में इन दोनों ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। इनके लिए हर कोई अपरीचित होकर भी परीचित सा था। इनसे विदा लेते समय भी इनका प्यार खाने के पैकेट के रूप में सफर भर मुझे इनकी याद दिलाता रहा।
अरे ... मैं तो भूल ही गई सिद्धार्थ और रचना जी की खूबियों को समेटे इनके बेटे मतलब हमारे नन्हे ब्लॉगर सत्यार्थ के बारे में आपको कुछ बताने को। दिन-भर धमाल चौकड़ी में लगा रहने वाला सत्यार्थ जितना शरारती है। उससे कई गुना ज्यादा प्रतिभावान। तभी तो इस नन्हें ब्लॉगर ने हममें से हर किसी की गोद में बैठकर हमारा दुलार पाया। वही किसी से चॉकलेट के रूप में मिठास भरा प्यार पाया।
वर्धा में आए ब्लॉगरों के मिलन और बिछड़ने के क्षण दोनों ही भूलाएँ नहीं भूलते। मुझे तो ऐसा लग रहा था मानों सिद्धार्थ जी के घर शादी हो और हम सभी उनके निमंत्रण पर उनके घर जा पहुँचे हो। वैसा ही आव-आदर और वैसी ही बिदाई ... यह सब तो जैसे एक परिवार का आयोजन लग रहा था। जिसमें हम सभी उस परिवार के सदस्य बन शरीक होने आए थे। यही पर मेरी मुलाकात डॉ. कविता वाचक्नवि, डॉ. अजित गुप्ता, डॉ. मिश्र व डॉ. महेश सिन्हा, ... और अविनाश वाचस्पति जी से भी हुई। अब तक मैंने इन सभी के नाम सुने थे पर इनके साक्षात दर्शन का मौका मुझे यही मिला।
इनमें से कोई कवि, कोई डॉक्टर, कोई प्रोफेसर ... ऐसा लग रहा था मानों सभी चुनिंदा नगीनों को छाँट-छाँटकर सिद्धार्थ जी ने वर्धा में बुलाया था। 'फुरसतिया' ब्लॉगर अनूप शुक्ल जी का बात-बात पर ठहाके लगाना और इन ठहाकों में कविता जी व अनिता कुमार जी का शामिल हो जाना भूलाए नहीं भूलता है। इन सभी की बीते दिनों की मुलाकातों और बातों के किस्सों की महफिल जब शाम को बरामदे में जमती, तो कब घड़ी की सुईयाँ बारह बजे की सीमाएँ लाँघ जाती। पता ही नहीं चलता था। बगैर नींद के न जाने इनके शरीर की बैटरी कैसे चार्ज होती थी?
युवा ऊर्जा से लबरेज सुरेश जी, प्रभात कुमार झा साहब, विवेक सिंह, यशवंत सिंह, शैलेश भारतवासी, हर्षवर्धन त्रिपाठी जी, रविंद्र प्रभात जी, प्रियंकर पालीवाल, जाकीर अली रजनीश, अशोक कुमार मिश्र, डॉ. महेश सिन्हा, संजीत त्रिपाठी, जयकुमार झा, संजय बेंगाणी ... इन सभी की तो बात ही निराली थी। बातचीत में ठेठ यूपी का अंदाज और मौका मिलते ही एक-दूसरे की टाँग खीचने वाली बात ... इनमें घनिष्ठ मित्रता का परिचय दे रही थी। जिसमें औपचारिकता की बजाय दोस्ती का अधिक पुट था। हम सभी ब्लॉगरों को एक साथ देखकर ऐसा लगता था जैसे फादर कामिल बुल्के छात्रावास (जहाँ हम ठहरे थे) में ब्याव के लिए न्यौते गए 'पामणों' का जमावड़ा लगा हो। दिन भर हँसी-मजाक-ठहाके, रात के अँधेरे में मोमबत्ती की रोशनी में कवि सम्मेलन और गीतों की महफिल ... समा को इतना खुशनुमा कर देती कि लगता बस वक्त यही थम जाएँ पर हमारी मस्ती की महफिल रातभर चलती जाए।
जहाँ हम सभी लोग छात्रावास में बच्चों की तरह मौज-मस्ती कर खूब हँसी-ठहाके लगाते थे। वही गोष्ठी के स्थल पर उतनी ही खामोशी व गंभीरता का परिचय दे अपने गंभीर व जागरूक ब्लॉगर होने का परिचय भी दे देते थे। यही नहीं मौका मिलने पर मंच से सबके सामने चुटकियाँ लेने में व अपनी बेपाक राय रखने में भी हम ब्लॉगरों का कोई जवाब नहीं था। विचारों में स्पष्टता, चिंतन में गंभीरता व कुछ कर गुजरने का जज्बा यहाँ आमंत्रित हर ब्लॉगर से चेहरे से झलक रहा था। कार्यक्रम के दूसरे दिन प्रसिद्ध ब्लॉगर प्रवीण पाण्डेय जी भी इस आयोजन में सम्मिलीत होने के लिए सपत्नीक वर्धा पधारे। ब्लॉगिंग के बारे में प्रवीण जी के विचार बहुत ही सुलझे हुए थे। उनके वक्तव्य को सुनकर मैं तो यही कहूँगी कि कम बोलों पर सटीक बोलो और ऐसा बोलो जो सीधे-सीधे दर्शकों तक आपकी बात पहुँचाए। इस मामले में प्रवीण जी मेरी अपेक्षाओं प पूर्णत: खरे उतरे।
10 अक्टूबर को दिल्ली के साइबर लॉ विशेषज्ञ श्री पवन दुग्गल जी के आने का हमने जितना इंतजार किया। हमारे सब्र का उतना ही मीठा फल उन्होंने हमें साइबर लॉ की जरूरी बाते समझाकर दिया। पवन जी का उद्बोधन सही माइने में इस आयोजन की सार्थकता सिद्ध हुआ। उन्हें सभी ब्लॉगरों ने बड़ी ही गंभीरता से सुना व उनस सीधे प्रश्नों के माध्यम से साइबर लॉ के संबंध में अपनी जिज्ञासाओं का समाधान किया। पवन दुग्गल ने एक ओर तो ब्लॉगरों के सिर पर कानून की टँगी तीखी तलवार की धार के वार से ब्लॉगरों को डराया तो वहीं दूसरी ओर कानून के शिकंजे में कसने से बचने के लिए ब्लॉगरों को महत्वपूर्ण टिप्स भी दिए।
अपनी बात को समाप्त करते-करते अब बात उन बड़ों की, जिनके बगैर इस आयोजन का मजा बगैर नमक की सब्जी की तरह होगा और वो हैं वरिष्ठ कवि आलोक धन्वा जी और साहित्यकार विषपायी जी। हर किसी से प्यार, मोहब्बत से बतियाने वाले और हर वक्त सहजता से उपलब्ध होने वाले धन्वा जी के गर्दन से कंधे को मिलाते लंबे बाल और टोपी वाला लुक माशाअल्लाह था। जिसके कारण वह भीड़ में भी अलग पहचाने जा सकते थे। अपनी ही धुन में मनमौजी व जिंदगी को अपने ढंग से जीने वाले आलोक धन्वा जी हर बात में लाजवाब और अनुभवों की खान थे। इसे इनका जादुई आकर्षण ही कहे कि जो कोई भी इनके पास पाँच मिनिट के लिए जाता वह घंटे भर पहले तो इनके पास उठ ही नहीं पाता।
धनवा जी के साथ ही महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय के कुलपति श्री विभूति नारायण व प्रति कुलपति श्री .. दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा से जुड़े प्रो. ऋषभदेव शर्मा, प्रो. अनिल अंकित राय का मार्गदर्शन भी तारीफ के काबिल था। बड़े ही सहज, सरल इन वरिष्ठजनों के आशीष व उपस्थिति ही इस आयोजन की सफलता की द्योतक थी।
वर्धा में दो दिवसीय प्रवास के दौरान मुझे देश भर से वर्धा आए ब्लॉगरों से मिलने का व लगातार दो दिनों तक उनके संपर्क में रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इनमें से सुरेश चिपलूनकर और यशवंत सिंह तो मैं पहले से ही परीचित थी इसलिए गोष्ठी के पहले दिन इन दोनों के दर्शन अपरीचितों के बीच सुकून की ठंडी छाँव की तरह थे। तभी तो मुझे देखकर यशवंत जी के मुँह से अनायास निकल ही गया कि गायत्री अब हम लगातार तीसरी बार किसी कर्यक्रम में साथ मिल रहे हैं। अब तो लगता है कि यहाँ कोई न कोई धमाका होगा। सच कहूँ तो धमाका हुआ भी ...।
अब बात करते हैं इस गोष्ठी के सूत्रधार सिद्धार्थ जी के बारे में। जिनके स्नेहिल निमंत्रण पर मुझे अपने सारे कार्य छोड़कर वर्धा आना ही पड़ा। केवल सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी ही नहीं बल्कि उनकी श्रीमती रचना त्रिपाठी की मिलनसारिता भी लाजवाब थी। महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय में आयोजित इस कार्यक्रम में पधारे पामणों के आव आदर में इन दोनों ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। इनके लिए हर कोई अपरीचित होकर भी परीचित सा था। इनसे विदा लेते समय भी इनका प्यार खाने के पैकेट के रूप में सफर भर मुझे इनकी याद दिलाता रहा।
अरे ... मैं तो भूल ही गई सिद्धार्थ और रचना जी की खूबियों को समेटे इनके बेटे मतलब हमारे नन्हे ब्लॉगर सत्यार्थ के बारे में आपको कुछ बताने को। दिन-भर धमाल चौकड़ी में लगा रहने वाला सत्यार्थ जितना शरारती है। उससे कई गुना ज्यादा प्रतिभावान। तभी तो इस नन्हें ब्लॉगर ने हममें से हर किसी की गोद में बैठकर हमारा दुलार पाया। वही किसी से चॉकलेट के रूप में मिठास भरा प्यार पाया।
वर्धा में आए ब्लॉगरों के मिलन और बिछड़ने के क्षण दोनों ही भूलाएँ नहीं भूलते। मुझे तो ऐसा लग रहा था मानों सिद्धार्थ जी के घर शादी हो और हम सभी उनके निमंत्रण पर उनके घर जा पहुँचे हो। वैसा ही आव-आदर और वैसी ही बिदाई ... यह सब तो जैसे एक परिवार का आयोजन लग रहा था। जिसमें हम सभी उस परिवार के सदस्य बन शरीक होने आए थे। यही पर मेरी मुलाकात डॉ. कविता वाचक्नवि, डॉ. अजित गुप्ता, डॉ. मिश्र व डॉ. महेश सिन्हा, ... और अविनाश वाचस्पति जी से भी हुई। अब तक मैंने इन सभी के नाम सुने थे पर इनके साक्षात दर्शन का मौका मुझे यही मिला।
इनमें से कोई कवि, कोई डॉक्टर, कोई प्रोफेसर ... ऐसा लग रहा था मानों सभी चुनिंदा नगीनों को छाँट-छाँटकर सिद्धार्थ जी ने वर्धा में बुलाया था। 'फुरसतिया' ब्लॉगर अनूप शुक्ल जी का बात-बात पर ठहाके लगाना और इन ठहाकों में कविता जी व अनिता कुमार जी का शामिल हो जाना भूलाए नहीं भूलता है। इन सभी की बीते दिनों की मुलाकातों और बातों के किस्सों की महफिल जब शाम को बरामदे में जमती, तो कब घड़ी की सुईयाँ बारह बजे की सीमाएँ लाँघ जाती। पता ही नहीं चलता था। बगैर नींद के न जाने इनके शरीर की बैटरी कैसे चार्ज होती थी?
युवा ऊर्जा से लबरेज सुरेश जी, प्रभात कुमार झा साहब, विवेक सिंह, यशवंत सिंह, शैलेश भारतवासी, हर्षवर्धन त्रिपाठी जी, रविंद्र प्रभात जी, प्रियंकर पालीवाल, जाकीर अली रजनीश, अशोक कुमार मिश्र, डॉ. महेश सिन्हा, संजीत त्रिपाठी, जयकुमार झा, संजय बेंगाणी ... इन सभी की तो बात ही निराली थी। बातचीत में ठेठ यूपी का अंदाज और मौका मिलते ही एक-दूसरे की टाँग खीचने वाली बात ... इनमें घनिष्ठ मित्रता का परिचय दे रही थी। जिसमें औपचारिकता की बजाय दोस्ती का अधिक पुट था। हम सभी ब्लॉगरों को एक साथ देखकर ऐसा लगता था जैसे फादर कामिल बुल्के छात्रावास (जहाँ हम ठहरे थे) में ब्याव के लिए न्यौते गए 'पामणों' का जमावड़ा लगा हो। दिन भर हँसी-मजाक-ठहाके, रात के अँधेरे में मोमबत्ती की रोशनी में कवि सम्मेलन और गीतों की महफिल ... समा को इतना खुशनुमा कर देती कि लगता बस वक्त यही थम जाएँ पर हमारी मस्ती की महफिल रातभर चलती जाए।
जहाँ हम सभी लोग छात्रावास में बच्चों की तरह मौज-मस्ती कर खूब हँसी-ठहाके लगाते थे। वही गोष्ठी के स्थल पर उतनी ही खामोशी व गंभीरता का परिचय दे अपने गंभीर व जागरूक ब्लॉगर होने का परिचय भी दे देते थे। यही नहीं मौका मिलने पर मंच से सबके सामने चुटकियाँ लेने में व अपनी बेपाक राय रखने में भी हम ब्लॉगरों का कोई जवाब नहीं था। विचारों में स्पष्टता, चिंतन में गंभीरता व कुछ कर गुजरने का जज्बा यहाँ आमंत्रित हर ब्लॉगर से चेहरे से झलक रहा था। कार्यक्रम के दूसरे दिन प्रसिद्ध ब्लॉगर प्रवीण पाण्डेय जी भी इस आयोजन में सम्मिलीत होने के लिए सपत्नीक वर्धा पधारे। ब्लॉगिंग के बारे में प्रवीण जी के विचार बहुत ही सुलझे हुए थे। उनके वक्तव्य को सुनकर मैं तो यही कहूँगी कि कम बोलों पर सटीक बोलो और ऐसा बोलो जो सीधे-सीधे दर्शकों तक आपकी बात पहुँचाए। इस मामले में प्रवीण जी मेरी अपेक्षाओं प पूर्णत: खरे उतरे।
10 अक्टूबर को दिल्ली के साइबर लॉ विशेषज्ञ श्री पवन दुग्गल जी के आने का हमने जितना इंतजार किया। हमारे सब्र का उतना ही मीठा फल उन्होंने हमें साइबर लॉ की जरूरी बाते समझाकर दिया। पवन जी का उद्बोधन सही माइने में इस आयोजन की सार्थकता सिद्ध हुआ। उन्हें सभी ब्लॉगरों ने बड़ी ही गंभीरता से सुना व उनस सीधे प्रश्नों के माध्यम से साइबर लॉ के संबंध में अपनी जिज्ञासाओं का समाधान किया। पवन दुग्गल ने एक ओर तो ब्लॉगरों के सिर पर कानून की टँगी तीखी तलवार की धार के वार से ब्लॉगरों को डराया तो वहीं दूसरी ओर कानून के शिकंजे में कसने से बचने के लिए ब्लॉगरों को महत्वपूर्ण टिप्स भी दिए।
अपनी बात को समाप्त करते-करते अब बात उन बड़ों की, जिनके बगैर इस आयोजन का मजा बगैर नमक की सब्जी की तरह होगा और वो हैं वरिष्ठ कवि आलोक धन्वा जी और साहित्यकार विषपायी जी। हर किसी से प्यार, मोहब्बत से बतियाने वाले और हर वक्त सहजता से उपलब्ध होने वाले धन्वा जी के गर्दन से कंधे को मिलाते लंबे बाल और टोपी वाला लुक माशाअल्लाह था। जिसके कारण वह भीड़ में भी अलग पहचाने जा सकते थे। अपनी ही धुन में मनमौजी व जिंदगी को अपने ढंग से जीने वाले आलोक धन्वा जी हर बात में लाजवाब और अनुभवों की खान थे। इसे इनका जादुई आकर्षण ही कहे कि जो कोई भी इनके पास पाँच मिनिट के लिए जाता वह घंटे भर पहले तो इनके पास उठ ही नहीं पाता।
धनवा जी के साथ ही महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय के कुलपति श्री विभूति नारायण व प्रति कुलपति श्री .. दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा से जुड़े प्रो. ऋषभदेव शर्मा, प्रो. अनिल अंकित राय का मार्गदर्शन भी तारीफ के काबिल था। बड़े ही सहज, सरल इन वरिष्ठजनों के आशीष व उपस्थिति ही इस आयोजन की सफलता की द्योतक थी।
गायत्री जी, बहुत ही सुंदर चर्चा की है आपने। इस शानदार चर्चा के लिए बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete---------
वर्धा सम्मेलन : कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
समग्र रिपोर्ट -माफ़ करियेगा फादर कामिल फुलके नहीं बुल्के ....सुधार लें ....
ReplyDeleteसार्थक और सटीक अभिव्यक्ति को प्रस्तुत करती पोस्ट साथ में शानदार चित्र भी ..आभार आपका इस पोस्ट के लिए आपसे मिलना भी सुखद रहा हमसब के लिए ...
ReplyDeleteआपसे मिलकर हमें भी अच्छा लगा ।
ReplyDeleteआभार आपका इस संगोष्ठी में भाग लेने तथा हमसब से अपनापन भरा स्नेह बाँटने के लिए .......
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति…
ReplyDeleteमैंने भी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है… समय मिले तो देखियेगा… :)
GOOD !
ReplyDeleteगायत्री तुमसे मिलकर भी बहुत अच्छा लगा। अभी 23 और 24 अक्तूबर को भोपाल में लेखिका सम्मेलन है। मैं वहाँ रहूंगी। तुमसे मिलकर अच्छा लगेगा। अच्छी पोस्ट दी है तुमने।
ReplyDeleteआखिर ढूंढ ही लिया आपका ब्लॉग,
ReplyDeleteबढ़िया तस्वीरों के साथ संस्मरण लिखा है आपने.
मैंने एक रिपोर्ट डाली है अपने ब्लॉग पर
http://sanjeettripathi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
वर्धा मीत में शामिल होने की खुशी आपकी पोस्ट में हर जगह से छलक रही है ....वैसे हिन्दी ब्लॉग्गिंग की दशा और दिशा के तौर पर आपसे एक और पोस्ट की उम्मीद मुझे है !
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति, तुम्हारे साथ गुजारा समय आनंददायी था। आशा है कि जल्द ही फ़िर मिलेगें।
ReplyDeleteमीत=मीट
ReplyDeleteआप सभी ने अपना अमूल्य समय निकालकर मेरे ब्लॉग पर टिप्पणियों के रूप में अपने विचार रखें। इसके लिए मैं आप सभी की शुक्रगुजार हूँ।
ReplyDeleteअरे छोटी चिड़िया :) यही मतबल है न तुम्हारे ब्लॉग का ।तुम्हारे जैसी नन्ही कलियों पर ही इस देश का भविष्य अवलंबित है । सुखमय भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDelete''पवन जी का उद्बोधन सही माइने में इस आयोजन की सार्थकता सिद्ध हुआ।''
ReplyDelete- मुझे तो लगता है कि पूरी कार्यशाला का केंद्रक वह उद्बोधन ही था.
रोचक अवलोकन .
बधाई.
देर से आ पाया। ढेरो खुशियाँ बटोरकर जा रहा हूँ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद।
सार्थक सतीक टिप्पणी, बधाई।
ReplyDeleteआप की रिपोर्ट अब जाकर पढ़ पाया हूँ, बड़ा सटीक लिखा है। ब्लॉगिंग में आपका आगमन एक नया उत्साह लेकर आयेगा।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आना और रिपोर्ट पढ़कर बहुत ही सुखद रहा
ReplyDeleteजमावड़े में शामिल हुए हथियार
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉगिंग के एक सेमिनार में शामिल ब्लॉगरों के हथियारों की झलक