खुश रहना देश के प्यारों


'शहीदों की चिताओं पर लगेगे हर बरस मेले' जिस किसी ने भी यह कहा था। सच कहूँ तो बहुत गलत कहा था। शहीदों की जयंतियाँ आज भी आती है पर शायद हममें से इक्के-दुक्के लोग ही उन्हें याद रख पाते है। हमें तो सेलिब्रेशन और जयंती के नाम पर केवल क्रिसमस,दिपावली और होली जैसे त्योहार और जयंतियों के नाम पर स्कूलों में रटाएँ जाने वाले निंबधों में मौजूद चाचा नेहरू और बापू ही याद रहते हैं। बाकी के सब शहीद तो वीआईपी शहीदों की गिनती में आते ही नहीं।

कही दूर की बात क्यों गाँधी जयंती तो हमें याद है पर मुबंई आतंकी हमले में शहीद उन्नीकृष्णन की जयंती हमें याद नहीं है। जो हमारी आँखों के सामने घटित हुआ उसे हम नकार रहे हैं पर अतीत के मुर्दों को सीने से लगाकर हम उनके नाम के नारे लगा रहे हैं। आखिर हमसे बड़ा आँख वाला अँधा और कौन होगा भला?  

पहले तो शैक्षणिक संस्थानों में भी भगत सिंह,तिलक,सरदार पटेल आदि का जिक्र कभी कभार हो ही जाता था पर अब स्कूल भी किताबों की भाषा बोलते हैं और विद्यार्थी अंग्रेजों की क्योंकि ये आजकल के किताबी ज्ञान वाले स्कूल है पहले की तरह संस्कारों सीखाने वाली पाठशाला नहीं। अब स्कूलों व कॉलेजों में भी शहीदों की जयंतियों पर भाषणबाजी कर या उनका जिक्र कर अपना वक्त खराब नहीं किया जाता है।

आप आज ही की बात लीजिए। आज के ही दिन सुखदेव और भगतसिंह को फाँसी दी गई थी पर यह दिन हमें याद नहीं रहा क्योंकि हम तो रंगपंचमी पर हुड़दंग की तैयारियों में व्यस्त है। रंगों के त्योहार पर केमिकल के रंगों से रंगे रंगीन चेहरे तो हमें बड़े लुभाते हैं पर खून के रंग से रंगे माँ भारती के सपूत हमें बड़े खटकते हैं। हमें शर्म आनी चाहिए अपने भारतीय होने पर। जिन्हें आजादी का दुरूपयोग करना तो आता है पर आजादी के लिए बलिदान देने वाले शहीदों को सलाम करना नहीं।

- गायत्री शर्मा 

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अब तो कुछ निशां ही बाकी नहीं रह गया।

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