तुम कैसी हो ?

मुट्ठी से फिसलती रेत सी चंचल कभी शांत जल सी गहन गंभीर तपती धूप में कराती हो तुम सुकून का अहसास लबों पर खामोशी आँखों से करती हो बातें अब समझने लगा हूँ मैं भी इन ठगोरे नैनों की बानी तुम्हारी अदाएँ इतनी प्यारी है अब बता भी दो प्रिये! तुम कैसी हो? - गायत्री