फिल्म 'संजू' : एक देशद्रोही का महिमामंडन

- डॉ. गायत्री शर्मा
'संजू' फिल्म का जिस तरह से प्रचार-प्रसार किया गया था,उसे देखते हुए मेरे मन में भी इस फिल्म को देखने की उत्सुकता जागी लेकिन जब मैंने यह फिल्म देखी, तब मेरे सारे अरमान धराशायी हो गए। इस फिल्म की कहानी संजय दत्त नामक ऐसे नकारात्मक और गैर जिम्मेदाराना किरदार के आसपास घूमती है, जो दिन-रात नशे की धूनी में ही मदमस्त रहता है। जिसने अपनी नशे की लत को पूरा करने के लिए अपने परिवार को धोखा दिया,सबसे झूठ बोला, जिसकी वजह से मुंबई बम धमाका हुआ और कई बेगुनाह मारे गये, फिल्म के माध्यम से उस अपराधी व आतंकवादी संजय दत्त का महिमामंडन करना कैसे उचित है? मेरे मतानुसार तो बायोपिक उन महान शक्सियतों के जीवन पर बननी चाहिए, जिनके जीवन चरित्र से समाज को कुछ प्रेरणा मिल सके और देश का युवा गुमराह होने की बजाय सही राह पर आ सके। मुझे तो यह बात समझ में नहीं आती कि आखिर एक देशद्रोही व नशेड़ी व्यक्ति से हमें कौन सी अच्छी बात सीखने को मिलेगी?
      यह बात दुनिया जानती है कि संजय दत्त के जीवन में उनके पिता का किरदार अत्यधिक महत्वपूर्ण था। परेश भट्ट ने सुनील दत्त के इस किरदार को बखूबी निभाया है। फिल्म में रणबीर कपूर संजय दत्त के किरदार में जरा भी फिट नहीं बैठे। फिल्म में लेखक की भूमिका निभाने वाली अनुष्का शर्मा भी दर्शकों पर अपना कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाई। कुल मिलाकर कहा जाए तो यह फिल्म मुझे पूरी तरह से बकवास फिल्म लगी। जिसे में 5 में से 2 नंबर दूंगी और मेरे वो 2 नंबर भी परेश भट्ट जी को ही मिलेंगे। 

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