पोस्टरों से घिरा मेरा शहर
दोस्तों, जब कोई शहर महानगर की शक्ल तब्दील करता जाता है। तब कहीं न कही उसमें गंदगी के ढ़ेर, फेक्ट्रियों के बदबूदार पानी, जहरीला काला धुँआ छोड़ते वाहन और इधर-उधर जहाँ जगह मिले वहाँ पैर पसारते पोस्टर यदा-कदा देखने को मिल ही जाते हैं।
मेरा शहर इंदौर भी एक ऐसा ही शहर है, जो अब विकास, आबादी और गंदगी के मामले में मिनी मुंबई बन रहा है। रिगल ब्रिज हो या पलासिया चौराहा, कलेक्टोरेट हो या टॉवर चौराहा हर जगह बड़े बड़े पोस्टर मुँह खोलकर हमारे बौनेपन का मजाक उड़ाकर अपने विदेशी ब्रांडों पर इठलाते नजर आ जाते हैं।
पोस्टरों से लिपटे इस शहर के बारे में आज के युवा क्या सोचते हैं। इस विषय पर मैंने एक स्टोरी की थी। युवाओं के विचारों पर केंद्रित एक स्टोरी, जिसका प्रकाशन 18 नवंबर 2010 के नईदुनिया युवा के प्रथम पृष्ठ पर हुआ था। कृपया आप भी इस स्टोरी को पढ़े और मुझे अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएँ।
मेरा शहर इंदौर भी एक ऐसा ही शहर है, जो अब विकास, आबादी और गंदगी के मामले में मिनी मुंबई बन रहा है। रिगल ब्रिज हो या पलासिया चौराहा, कलेक्टोरेट हो या टॉवर चौराहा हर जगह बड़े बड़े पोस्टर मुँह खोलकर हमारे बौनेपन का मजाक उड़ाकर अपने विदेशी ब्रांडों पर इठलाते नजर आ जाते हैं।
पोस्टरों से लिपटे इस शहर के बारे में आज के युवा क्या सोचते हैं। इस विषय पर मैंने एक स्टोरी की थी। युवाओं के विचारों पर केंद्रित एक स्टोरी, जिसका प्रकाशन 18 नवंबर 2010 के नईदुनिया युवा के प्रथम पृष्ठ पर हुआ था। कृपया आप भी इस स्टोरी को पढ़े और मुझे अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएँ।
नगर को सुन्दर बनाना है तो सारे पोस्टर हटा दें।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रवीण जी, यह सही है कि अब पोस्टरों को शहर से हटाकर शहर को स्वच्छ एवं सुंदर बनाने की दिशा में हम सभी को मिलजुलकर कोई न कोई प्रयास करना होगा।
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