नेत्रहीन बच्चियों को स्वावलम्बी बनाता 'आत्मज्योति नेत्रहीन बालिका आवासीय विद्यालय'

- डॉ. गायत्री शर्मा 

अगस्त २०२४ में अपने ग्वालियर प्रवास के दौरान पारीख जी के बाड़ा की पवित्र भूमि पर मोदी परिवार से मिलना और उनके द्वारा किए जा रहे पारमार्थिक कार्यों के बारे में जानना मेरे लिए बीहड़ क्षेत्र के अजनबी शहर की धूप में किसी विशाल बरगद की छाँव में महफूज़ होने के सामान सुखद था। मोदी परिवार के आतिथ्य का वर्णन करना मेरे लिए शब्दातीत है क्योंकि इस परिवार के लिए हर वो छोटा-बड़ा व्यक्ति अपना है, जो उनका परिचित है या उनके परिचित का परिचित या रिश्तेदार है। बस यहीं पहचान है आपकी उसकी घर में दाखिल होने की।  

रामायण की एक चौपाई में कहा गया हैं कि 'जा पर कृपा राम की होई , ता पर कृपा करे सब कोई'  अक्सर यह देखा जाता है कि अभाव व्यक्ति को झुकना सिखाते है और सम्पन्नता उसे गुरुर से गर्वित होना लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते है, जो संपन्न होते हुए भी सादगी से जीवन जीना पसंद करते हैं। ऐसे लोग भगवद्कृपा से मिले धन का उपयोग गरीब और जरूरतमंद लोगों की सेवा के लिए करते हैं। एक ऐसा ही सेवाभावी परिवार है - ग्वालियर का मोदी परिवार।  

'मालगुडी डेज' धारावाहिक के पुराने घरों की तरह दिखने वाला लगभग २०० साल पुराना लकड़ियों के पाट, बल्लियों व लाल पत्थरों से बना यह सुन्दर घर और उसमें निवास करता आधुनिक युग का संपन्न परिवार पीढ़ियों की विरासत से अपनत्व के लगाव की एक अनुपम मिसाल है, जिसके पीछे बाहरी दिखावे की चकाचौंध भी गौण है। व्यस्तताओं में मस्त रहने वाले व घड़ी की सुइयों के की गति के आधार पर समय की पाबंधी से चलने वाले जस्टिस एन के मोदी तथा इसके ठीक विपरीत शांत, सौम्य व मधुर मुस्कान से सबका स्वागत करने वाली श्रीमती शीला मोदी है। इस दंपत्ति के आतिथ्य का अंदाज़ ही अलहदा है। गुजराती बोली की मिठास से रिश्तों में अपनत्व का रस घोलने वाली श्रीमती मोदी गृहकार्य व मेहमाननवाज़ी में जितनी कुशल है, उतनी की कुशलता व समर्पण से वो समाजसेवा के कार्यों में भी अग्रणी है। 

चरन-कमल बंदौ हरि राई ।।

जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे, अंधे कौ सब कुछ दरसाई॥ 

बहिरौ सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई । 

सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंद तिहिं पाई ॥ 

हे परम पिता परमात्मा, यह तेरी ही कृपा है जिससे पैर से वंचित व्यक्ति भी पहाड़ की ऊचाइयों पर चढ़ सकता है, नेत्रहीन व्यक्ति अपनी आत्मदृष्टि से दुनिया देख सकता है। श्रवणहीन व्यक्ति सुन सकता है, वाणीहीन व्यक्ति बोल सकता है और रंक भी शान से सिर पर छत्र सजाकर चल सकता है। उसी ईश्वर की कृपा से हर युग में जगत्कल्याण के लिए अनेकों पावन आत्माएं दैहिक स्वरुप में जन्म लेती है। एक ऐसी ही वात्सल्यमयी माता है - ग्वालियर की श्रीमती शीला मोदी। स्वाभाव से बेहद ही शांत, सौम्य, धार्मिक व मृदुभाषी महिला है श्रीमती शीला मोदी का जीवन ही 'आत्मज्योति नेत्रहीन आवासीय बालिका विद्यालय' के लिए समर्पित है।

'मैंने देखे है सभी रंग दुनिया के, ये दुनिया बड़ी ही रंगीली है' इस गीत के बोल की तरह हम सभी के लिए ये दुनिया बड़ी ही रंगीली है क्योकि हम अपनी दो आँखों से दुनिया के हर रंग व हर खूबसूरत चीज़ को देख सकते है, लेकिन क्या कभी हमने उस क्षण की कल्पना मात्र भी की है, जब हमारी आँखों से दृष्टि ही चली जाएं? तब शायद हममें से अधिकांश लोग अपनी दृष्टि न होने के सदमे में पागल हो जाएंगे या जीवन जीने की उम्मीदें छोड़ देंगे या एकाकी जीवन जीने लगेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि अभावग्रस्त लोगों को ये दुनिया सहजता से स्वीकार नहीं करती है। यह दुनिया की रीत है कि हमारा किसी से रिश्ता बनाने का पहला पैमाना उसका सुन्दर, धनवान और सभी खूबियों से परिपूर्ण होना है। लेकिन इस समाज में कुछ लोग ऐसे भी है, जो समाज के उन लोगों को गले लगाते है, जिन्हें दुनिया उनकी कमियों के कारण ठुकराती है। 

कमजोर  व्यक्तियों व अबला नारियों पर अत्याचार करना आसान होता है। महिलाओं की खिलाफ होने वाले अत्याचारों में प्रमुख बलात्कार, देह व्यापार, आर्थिक शोषण व भिक्षावृत्ति है। अभावग्रस्त नेत्रहीन बच्चियों को आत्मनिर्भर बनाने से बालिका यौन शोषण व अन्य अपराधों की रोकथाम में भी मदद मिलती है। समाज में उपेक्षा व तिरस्कार की शिकार नेत्रहीन बच्चियों को सबला बनाना किसी असंभव सी चुनौती से कम नहीं है लेकिन इस चुनौती को स्वीकार कर आत्मज्योति संस्था (https://aatmjyoti.org/)ने नेत्रहीन/दृष्टिबाधित बच्चियों को इस तरह सबला, सक्षम व सशक्त बनाया है, जिससे कि वो अपनी आत्मरक्षा के साथ ही आत्मनिर्भर भी बनती है।   

शीलाजी के विचारों से यह स्पष्ट तौर पर परिलक्षित होता है कि शिक्षा, संस्कार व स्वावलम्बन ही लड़कियों के जीवन का वो गहना है, जिसकी चमक कभी फीकी नहीं पड़ती है। सैकड़ों नेत्रहीन बच्चियों को अपने ममत्व की शीतल छाँव प्रदान करने वाली शीलाजी अपने जीवन के अनुभवों से बच्चियों को शिक्षा के साथ ही  पारिवारिक संस्कारों से भी इस प्रकार सिंचित करती है कि कई बच्चियाँ शादी के बाद भी उनका कन्यादान करने वाली इस परोपकारी माँ का धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए उनसे मिलने आती है। अपनी आँखों से दुनिया को न देख पाने वाली ये बच्चियाँ अपनी इस माँ की आँखों से जिन्दगी के कई अच्छे-बुरे पहलुओं के अनुभवों से अवगत होकर अपने जीवन की दहलीज़ पर सधे हुए कदमों से आगे बढ़ती है। 


अपने आराध्य श्री कृष्ण के प्रति अनन्य श्रद्धा भाव रखने वाली श्रीमती शीला मोदी कई नेत्रहीन/दृष्टिबाधित बच्चियों के जीवन के अंधियारे को स्वावलम्बन के उजियारे से रोशन कर चुकी हैं । ग्वालियर में गोले के मंदिर के रूप में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर के सामने स्थित 'आत्मज्योति नेत्रहीन कन्या आवासीय विद्यालय' हजारों नेत्रहीन/दृष्टिबाधित बच्चियों के हूनर को निखारकर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने वाला वह संस्थान है, जहां से अपनी शिक्षा पूर्ण कर जाने वाली बच्चियों की कामयाबी की चमक दुनिया को यह सोचने पर विवश कर देती है कि परिवार व समाज से तिरस्कृत की गयी ये बच्चियाँ वो खरा सोना बनकर चमकी है, जो न केवल आज अपने गृहकार्य आत्मनिर्भरता से कर रही है अपितु एक बेटे से भी अधिक आमदनी कर अपने माँ-बाप, पति व बच्चों का उदरपोषण भी कर रही है।  

नौकरी, खेल, योग, चिकित्सा, शिक्षा व संगीत के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का लौहा मनवा चुकी ये बच्चियाँ उन माँ-बाप के जीवन में उम्मीदों की नवज्योति लाई है , जिन्होंने इन्हें शोषण, उलाहना व तिरस्कार के दंश से महफूज कर उनकी परवरिश को शीला जी के ममत्व की शीतल छाँव में करने की अनुमति प्रदान की है।अपने जीवन को नेत्रहीन बच्चियों के जीवन को सँवारने में गुजारने का संकल्प करने वाली शीलाजी के साथ ही इस संस्थान में कई अनुभवी व्यक्तियों, समाजसेवियों, प्रशिक्षकों व युवाओं की टीम कार्य करती है, जो इन बच्चियों को संगीत की शिक्षा, ब्रेल लिपि का ज्ञान, खेल व गृह कार्य में पारंगत पर विशेष ध्यान व प्रशिक्षण प्रदान करती है।


घुंघरुओं वाली गेंद की आवाज को एकाग्रता से सुन बाल को हाथ में थामकर कैच-कैच, फुटबॉल, क्रिकेट आदि खेल खेलने के साथ ही अपना भोजन बनाने, कपड़े धोने, अपने दैनिक कार्य स्वयं करने की ट्रेनिंग प्राप्त करने के साथ ही पढ़ाई, संगीत व प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाली ये बच्चियाँ अपनी उन सीनियर्स की तरह आदर्श बनना चाहती है , जिन्होंने इसी आवासीय विद्यालय में रहकर नवोदय विद्यालय, योग प्रशिक्षक, फिजियोथेरेपिस्ट, शिक्षक, क्रिकेट टीम आदि कार्यक्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लौहा मनवाया है। दो परिवारों के साथ ही समाज को भी नव दिशा देने वाले आत्मज्योति विद्यालय की गिनती देश के उन आदर्श बालिका आवासीय विद्यालयों में की जाती है, जहां कागजों पर नहीं बल्कि हकीकत में सेवाकार्य किया जाता है। श्रीमती शीला मोदीजी को उनके इस सेवा संकल्प के लिए हजारों बार धन्यवाद। 

बेटियों को पंख दीजिए, ऊँची उड़ान भरने के लिए, उन्हें हौसला दीजिए कुछ कर गुजरने के लिए।  
एक दिन वो आसमान को छू जाएगी, धरा से लेकर गगन तक बेटियाँ अपने पालकों का नाम रोशन कर जाएगी।

मेरी यह पंक्तियाँ २१वीं सदी की बेटियों के बुलंद हौसलों की परिचायक है। मेरी तरह यदि आप भी ग्वालियर के इस स्कूल में जाकर यहाँ की बच्चियों से मिलेंगे, यहाँ की सुविधाओं व व्यवस्थाओ को देखेंगे तो आपकी आँखे भी मेरी तरह नम पर दिल आत्मविश्वास से भर जायेगा और आप भी कह उठेंगे कि हमें जो नहीं आता, वो भी इन बच्चियों को आता है। हम आँखे होते हुए भी अंधे है और ये बच्चियाँ नेत्रहीन होते हुए भी दुनिया की खूबसूरती का अनुभव कर रही है। मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण उम्मीद है कि आत्मज्योति संस्थान से शिक्षित नेत्रहीन बेटियों के सपनों की यह उड़ान उन्हें जल्द ही जमीं से कामयाबी के आसमान की ऊँची ऊचाइयों पर ले जाएगी।    

चित्र साभार - गूगल   

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