संजा तू थारा घरे जा .....


कुँवारी लड़कियों की सखी 'संजाबाई' इन दिनों अपने पीहर में आई है। कुछ दिनों के लिए अपने पीहर में आई संजाबाई सा पार्वती जी का ही एक रूप है। जिनकी श्राद्धपक्ष में सोलह दिनों तक पूजा की जाती है। भारत के कई प्रांतों में संजा अलग-अलग रूप में पूजी जाती है। महाराष्ट्र में यही संजा 'गुलाबाई' बनकर एक माह तक अपने पीहर में रहती है तो वही राजस्थान में 'संजाया'के रूप में श्राद्ध पक्ष में यह कुँवारी लड़कियों की सखी बन उनके साथ सोलह दिन बिताती है। कुँवारी लड़कियाँ संजाबाई की पूजा अच्छे वर की प्राप्ति के लिए करती है।
            यदि हम मालवांचल की संजा की बात करे तो यहाँ के गाँवों में संजा का मजा ही कुछ ओर है। शाम ढलते ही गोबर से दीवारों पर संजा की आकृति सजना शुरू हो जाती है। उसके बाद गोबर से बनी संजाबाई को फूलों और रंग-बिरंगी चमक से सजाकर उनका श्रृंगार किया जाता है। संजा तैयार होने के बाद गाँव की लड़कियाँ सामूहिक रूप से संजा के गीत गाती है और बाद में उनकी आरती कर प्रसाद भी बाँटती है। आपसी मेलजोल बढाने का और अपनी संस्कृति व परंपराओं से जुड़े रहने का एक अच्छा बहाना है संजा।
           मुझे तो आज भी संजा के वो गीत याद आते है। जिसमें संजाबाई के रूप के वर्णन के साथ ही उनके ससुराल वालों को दी जाने वाली मीठी उलाहना भी होती थ‍ी। मालवी बोली की मिठास पाकर संजा ये गीत बड़े ही कर्णप्रिय बन जाते थे। यदि आप भी संजाबाई के दर्शन के साथ ही पारंपरिक मालवी गीतों का आनंद लेना चाहते है तो श्राद्ध के दिनों में मालवा के किसी भी गाँव में एक शाम बिताइए। गाँव ‍की किसी न किसी गली में आपको ये गीत जरूर सुनने को मिल जाएँगे -
1) संजा तू तो बड़ा बाप री बेटी, तू तो खावे खाजा रोटी।
2) छोटी सी गाड़ी लुढकती जाए। जामे बैठ्या संजा बाई, घाघरो घमकाता जावे, चूड़लो चमकाता जावे, बाईजी की नथनी झोला खाय, झोला खाय।
3) संजा तू थारा घरे जा नी तो थारी बाई मारेगा कि कूटेगा कि डेली में डकोचेगा, रेल गई गुजरात कि हिरनी का बड़ा-बड़ा दाँत कि छोरा-छोरी डरपेगा।

Comments

त्योहारों व परम्पराओं का देश।
मेरा पीहर इंदौर ( MP ) में होने के कारण हम बचपन में सारी सखियाँ मिलकर संझा बनाते और गाते थे ...सबके घरो में जा- जाकर संझा के गीत गाते थे --आखरी दिन उसे बिदा भी करते थे ---आज इतने साल बाद आपने वो बचपन याद दिला दिया --धन्यवाद ! यह गीत तो मुझे आज भी याद हें --

"संजा तू थारा घरे जा नी तो थारी बाई मारेगा कि कूटेगा कि डेली में डकोचेगा, रेल गई गुजरात कि हिरनी का बड़ा-बड़ा दाँत कि छोरा-छोरी डरपेगा।"
Sadhana Vaid said…
आपके इस छोटे से आलेख ने मुझे मेरे बचपन में पहुँचा दिया ! मालवा के छोटे से कसबे 'आगर' में तब पिताजी की पोस्टिंग थी और तब मैं अपनी सहेलियों के साथ उनके घर जा दीवार पर संजा के चित्र बना कर गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों से उन्हें खूब सजाती थी ! और सब सहेलियां कोरस में संजा के गीत भी खूब गाया करती थीं ! बचपन की वे स्मृतियाँ आज भी आल्हादित कर जाती हैं ! आपका बहुत बहुत आभार !

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