कैसी हठ पर अड़े हो दोस्त?

इस बार तुम कैसी हठ पर अड़े हो दोस्त?
ईगो में तो तुम मुझसे भी बड़े हो दोस्त।
मन ही रोते हो बीते दिनों को याद कर
भीड़ देख क्यों मुस्कुरा पड़े हो दोस्त?
सबकुछ है साफ-साफ, सुलझा-सुलझा
फिर किस धुँध को साफ करने में तुम लगे हो दोस्त?
झूठ ही सही 'हार' मान लो हमारे लिए
क्यों 'जीत' के इंतजार में ही तुम खड़े हो दोस्त?
क्या त्योहारों पर औपचारिकताएँ ही होगी पूरी
क्या अब कभी पहले सी सहजता से तुम हमसे मिलोगे दोस्त?
- गायत्री 

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कल 04/जून /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

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