जन्नतनशीं हुए अपने
आका मौला की पार्थिव देह की एक झलक पाने मात्र को बोहराजनों में उत्साह देखते ही
बनता था, दुनियाभर से डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब के अनुयायी उन्हें
अंतिम विदाई देने मुबंई पहुँचे। बोहरा समाज के धर्मगुरू के इंतकाल की खबर वाकई में
एक दुखद खबर थी, जिसे सुनने मात्र से ही बोहरा समाज के हर परिवार में शोक की लहर
छा गई। दुनियाभर के बोहरा समाज के लोग ताबड़तोड़ सैयदना साहब की आखिरी झलक पाने को
मुबंई पहुँच गए। लेकिन इसे उनके अनुयायियों का अति उत्साह कहें या आतुरता भरी अति
श्रृद्धा कहें, जिसके बहाव ने मुबंई में भगदड़ का ऐसा तांडव रचा कि अपने आका-मौला
के निधन पर शोक व्यक्त करने गए कई बोहराबंधु स्वयं मौत की नींद सो गए। करीब 17 लोग
इस भगदड़ में मारे गए और लगभग 60 लोग घायल हो गए। सच में यह घटना बेहद ही दुखद व चिंताजनक
है। क्या भावनाओं का इतना अतिरेक और इस तरह से भीड़ के जनसैलाब के रूप में उसकी
अभिव्यक्ति उचित है? क्या भीड़ का बेकाबू होना अति भीड़ व सुरक्षा के पुख्ता
इंतजाम न होने की वजह थी?
सामाजिक एकजुटता व अपने
धर्मगुरू के प्रति बोहरा समाज के लोगों की अगाध श्रृद्धा वाकई में काबिले तारीफ
है। अपने धर्मगुरू के आदेश पर बोहरालोग कुछ भी कर सकते हैं। यह किसी जोर जबरदस्ती
से नहीं होता बल्कि सैयदना साहब के प्रति उनके अनुयायियों की श्रृद्धा व सम्मान का
परिचायक है। यहीं वजह है कि बोहरा समाज आज भी एकजुट है। जब भी कभी जहाँ भी डॉ. सैयदना
साहब का आगमन होता, उस क्षेत्र का समूचा बोहरा समाज वहाँ एकत्रित हो जाता। अपने
धर्मगुरू की दीदार मात्र के लिए बोहराजनों में उत्साह व इंतजार देखते ही बनता था।
17 जनवरी 2014, शुक्रवार शाम को जब बोहरा समाज के 52 वें धर्मगुरू डॉ. सैयदना मोहम्मद
बुहरूद्दीन साहब के इंतकाल की खबर जैसे-जैसे देश में आग की तरह फैली। वैसे-वैसे
बोहरा समाजजनों का मुंबई की ओर ताबड़तोड़ प्रस्थान होने लगा। मुबंई जाने वाली ट्रेनों
में अतिरिक्त कोच बढ़ाएँ गए, फ्लाइटों में टिकिटों की ताबड़तोड़ बुकिंग शुरू हो गई
और जैसे-तैसे धक्का-मुक्की खाकर बोहरा जन मुबंई पहुँचे। वाकई में अपने धर्मगुरू या
यूँ कहें अपने भगवान को अंतिम विदाई देना किसी भी बोहराजन के लिए सौभाग्य से कम
नहीं था। सैयदना साहब की इस अंतिम यात्रा के हर पड़ाव पर पुष्प वर्षा के साथ सड़क
पर अश्रुवर्षा भी हो रही थी। यह दृश्य वाकई में भावनाओं के अतिरेक का परिचायक था।
कभी लगता है डॉ. सैयदना हमारे बीच से चले गए और कभी लगता है वह यहीं कही है, हमारे
आसपास है। आज भी और कल भी वह हमारे मार्गदर्शक व प्रेरक बनकर वे सदैव हमारे बीच
में रहेंगे।
- गायत्री
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