मानवता के मुँह पर तमाचा है बलात्कार
- डॉ. गायत्री शर्मा हम क्या थे और किस ओर जा रहे हैं, इसका विचार किए बगैर ही आज का मानव दैहिक और भौतिक सुख की अति पराकाष्ठा के उस चरम शिखर पर पहुंच गया है, जहाँ से दोबारा लौटकर उसका पशु से इंसान बनना अब नामुमकिन सा लगता है। कहते हैं इंसान के शरीर से ज्यादा उसकी आत्मा का शुद्ध होना जरुरी हैं पर 'मुँह में राम, बगल में छुरी' के इस बनावटी युग में इंसान के लिए सारा आकर्षण व दैहिक भूख का केंद्र बिंदु स्त्री देह ही है, फिर चाहे वह देह किसी दुधमुँही या नन्हीं बच्ची की हो या फिर किसी किशोरी या प्रौढ़ महिला की हो। मानवता को शर्मसार कर रिश्तों को कलंकित करने वाला बलात्कार रूपी जघन्य अपराध सभ्य समाज के मुँह पर मारा गया वो करारा तमाचा है, जिसकी गूंज सदियों तक न्याय के गलियारों में गुंजायमान रहेगी क्योंकि न्याय के मंदिर कहे जाने वाले भारतीय न्यायालयों में 'सुधारात्मक न्याय प्रणाली' के चलते प्राथमिक तौर पर अपराधी के सुधरने व सभ्य नागरिक बनने की उम्मीद की जाती है लेकिन ये उम्मीद आदतन अपराधियों की आपराधिक प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लगा पाती है। ऐसे प्रकरणों में कानून की तंग गलियों से आ