जाग उठा है लोकतंत्र

एक अण्णा ने सारे हिंदुस्तान को जगा दिया है। जन लोकपाल बिल की यह लड़ाई अकेले अण्णा की नहीं ‍बल्कि हम सभी के हक की लड़ाई है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की यह हुंकार अब जल्द ही सरकार के पतन की चित्कार में बदलना चाहिए। अब हमारी बारी है। अण्णा की आमरण अनशन ने यह तो सिद्ध कर ही दिया है कि जनता ही जर्नादन है। वह लोकतंत्र का आदि और अंत है। जो चाहे तो रातो रात सरकार का तख्ता पलट सकती है।
     अण्णा का यह अभियान असरकारक इसलिए भी है क्योंकि इस अभियान को आगे बढाने का बीड़ा देश की युवा पीढी ने उठाया है। यह वही युवा है कि जिसके बारे में आज तक यह कहा जाता था कि युवा अपनी मौजमस्ती व मॉर्डन लाइफस्टाइल से बाहर निकलकर कभी देश के बारे में नहीं सोच सकता है पर आज भ्रष्टाचार के विरोध में उसी युवा ने सड़कों पर आकर विद्रोह के स्वर मुखरित कर देश के असली जागरूक युवा की तस्वीर को प्रस्तुत किया है।
     यदि आपने रामलीला मैदान पर नजर डाली होगी तो आप यही पाएँगे कि आज रामलीला मैदान में आंदोलन की रूपरेखा से लेकर वहाँ सफाई,पानी,‍बिजली,जनता की सुरक्षा व शांति व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी सभी कुछ युवा स्वयंसेवकों के ही हाथ में है। इन स्वयंसेवकों में से अधिकांश युवा शिक्षक,छात्र, इंजीनियर,पत्रकार,चिकित्सक व व्यवसायी है। ये वही लोग है, जो कल तक आरामपोश जिंदगी जीते थे। आज वे ही उच्च शिक्षित युवा आपको झमाझम बारिश और भीड़ के बीच रामलीला मैदान पर अपनी सेवाएँ देते हुए चहलकदमी करते नजर आएँगे। सच कहूँ तो यह सब देखकर मुझे अचरज भी होता है और खुशी भी। अचरज इस बात का कि क्या ये वही युवा है जिनके लिए उनका करियर सर्वोपरि है पर आज वे अपना कामकाज और पढाई छोड़ देश सेवा को अपना करियर मान उसे सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहे हैं। इस आंदोलन को देख मुझे खुशी इस बात की है कि आज हम सभी अनेक होते हुए भी एक है। अलग-अलग प्रांतों व विदेशों में बसे भारतीयों से अण्णा को मिल रहे सर्मथन ने यह तो सिद्ध कर ही दिया है कि हम कही भी रहे हम सभी का दिल हिंदुस्तानी है। भारत आज भी हमारी माता है और उस माँ के दामन को दागदार होने से बचाने के लिए हम अपनी जान तक देने को तैयार है।
    कुछ दिनों पहले जामा मस्जिद के शाही ईमाम सैयद अहमद बुखारी का मुसलमानों के लिए यह कहना बड़ा ही गलत है कि मुसलमान भाई अण्णा का सर्मथन इसलिए नहीं करे क्योंकि हम मुस्लिम भारत माता की जय और वन्दे मातरम कहने के सख्त खिलाफ है क्योंकि हम भारत को अपनी माँ नहीं मानते हैं। अरे, शर्म आती है मुझे उन लोगों पर जो उच्च पदों पर आसीन होकर सांप्रदायिकता को भड़काते हैं। भाई को भाई के खिलाफ खड़ा करते हैं। याद रखिए यह देश हम सभी का है। यदि हम भारत देश के के वासी है तो इस माँ की जय जयकार करने में हमे शर्म नहीं बल्कि गर्व होना चाहिए। आज मुझे यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि मुंबई के मुसलमान भाईयों ने अण्णा के सर्मथन में रैली निकालकर इस आंदोलन में अपनी सहभागिता दर्ज कराई। दोस्तों,यह लड़ाई किसी कौम ‍विशेष की लड़ाई  नहीं होकर के आम आदमी के अधिकारों की लड़ाई है। जिसमें जीत पाने के लिए हमें एकजुट होना होगा। जो लोग इस आंदोलन से दूर है। वे पहले जन लोकपाल
बिल को पढने की जहमत करे। इस बिल का पास होना लोकतंत्र की सबसे बड़ी जीत होगी।        
       यदि हम अब नहीं जागे तो फिर कब जागेंगे। हो सकता है हम सभी के लिए सड़कों पर आकर आंदोलन में शरीक होना संभव नहीं हो पर हम सोशल मीडिया,अखबार,हस्ताक्षर अभियान आदि के द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़े और कम से कम जीवन में कभी भी रिश्वत का देन-लेन नहीं करने का संकल्प लेकर हम कुछ हद तक भ्रष्टाचार कम करने में अपनी भूमिका अदा तो जरूर कर सकते है।
ईमाम बुखारी के बयान को पढने के लिए नीचे दी गई यूआरएल पर क्लिक करे -



Comments

  1. काश, इस उथल पुथल के निष्कर्ष सुखद हों।

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