उलझे रिश्तों का मांझा सुलझातें स्वानंद

वो बहती हवा सा है, जो अपने संग मुस्कुराहटों की शीतल फुहारों को लिए बहता है। वह उस उड़ती पतंग सा है, जिसकी कल्पनाओं की ऊँची उड़ान ज़मी से ऊँचे उठकर आसमां की बुलंदियों को छूने को ललायित है। जी हाँ, मैं बात कर रही हूँ मनमौजी, मिलनसार, ऊर्जावान, हरफनमौला कलाकार स्वानंद की, जो अपनी बहुमुखी प्रतिभा के बूते पर बॉलीवुड में इंदौर का नाम रोशन कर रहे हैं। गायन, लेखन, अभिनय और फिल्म निर्देशन से जुड़ा कला का यह साधक अपनी कलम से कल्पनाओं की ऊँची उड़ानें तो भरता है पर इन उड़ानों में भी उसका जुड़ाव ज़मी से जरूर रहता है। उनके शब्द भावों से अठखेलियाँ करते हुए कभी अपने बाबरें मन की कल्पनाओं से उलझे रिश्तों का मांझा सुलझाते हैं तो कभी रात को चाँद की सहेली बनाकर उससे अपना हाल-ए-दिल बँया करते नज़र आते है। शब्दों का बेहतर तालमेल और हर शब्द की लहज़े के साथ अदायगी तथा शब्दों के अर्थ की सार्थकता का खयाल रखना ही स्वानंद की खूबी है। तभी तो मुन्नी बदनाम, बद्तमीज़ दिल, शील की जवानी, अनारकली डिस्को चली, फेविकॉल से ... जैसे गीतों के बीच भी स्वानंद के गीत सामाजिक मर्यादाओं की दीवार के भीतर रहकर प्रेमियों के प्रेम...