संसद में नतमस्तक हुए मोदी

कार्य जब पूजा बन जाएँ तो कार्यस्थल स्वत: ही मंदिर बन जाता है। लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले संसद भवन में नरेंद्र मोदी का नतमस्तक होना विनम्रता के साथ ही कार्य के प्रति उनके समर्पण को भी व्यक्त करता है। यह वहीं संसद है, जिसकी गरिमा कभी जूतों से उछाली जाती हैं तो कभी कागज़ के टुकड़ों में जलाई जाती है। फिर भी लोकतंत्र का यह मंदिर अडिग खड़ा रहता है उस पुजारी की तलाश में, जो इसकी गरिमा का आदर करें और इसे सब्जीमंडी या कुश्ती का अखाड़ा बनाने से रौके।
यह वहीं संसद है जहाँ मानवता, शिष्टता और विनम्रता का आए दिन मखौल उड़ाया जाता है। उसी संसद की सीढि़यों पर मोदी नतमस्तक हुआ जाता है। वाह रे मोदी! आपका साहस, सर्मपण और सेवा भाव वाकई में काबिलेतारीफ है।
- गायत्री 

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