पेशावर में पाक रोया ....
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गायत्री शर्मा
हर आँख नम है,
हर सीना छलनी है
मासूमों पर कहर बन बरपी
यह कैसी दहशतगर्दी है?
जिहाद की आग आज
मासूमों को जला गई
बुढ़ापें की लाठी अचानक
बूढ़े अब्बू के कंधों पर ताबूत चढ़ा गई
रक्तरंजित हुई मानवता
हैवानियत दहशत बरपा गई
नन्हों की किलकारियाँ आज
मातम का सन्नाटा फैला गई
कोसती है माँ, क्यों भेजा उसे स्कूल?
भेज दिया तो ये आफत आ गई
जिसके लिए की थी दुआएं पीर-फकीरों से
आज मौत उन दुआओं को पीछे छोड़ आगे आ गई
माँ-बेटे का संवाद –
अम्मी-अब्बू बुलाते हैं बेटा तुम्हें
चल उठ, हम तेरी जिद पूरी कराते हैं
जिस खिलौने के लिए रोता था तू रोज़
तुझे आज अब्बू वो खिलौना दिलाते हैं
पर ये क्या, मेरा नन्हा तो खुद ही
खूबसूरत खिलौना बन गया है?
सुनो, खामोश है क्यों लब इसके,
क्या ये फटी आँखों से कुछ बोल रहा है?
आज न जाने क्यों भारी है छाती मेरी
ममता के दूध अचानक आँचल भिगो रहा है
आ बेटा, कुछ देर गोद में आकर सो जा
मीठी थपकियों वाला पालना तेरी बाट जोह रहा है
बच्चे की लाशें देखने पर –
दहशतगर्दों ने ये क्या कर डाला?
मेरे नन्हें को जिहादी मुस्लिम बना डाला?
जो नहीं जानता था फिरकापरस्ती
उसे जिहादी जंग के रक्त से क्यों रंग डाला?
इस खौफनाक मंजर को देख
सहम गई होगी कुछ अम्मियाँ भी
जिनकी औलादें ये कहर बरपा रही थी
वो अम्मियाँ आज औलाद के होने पर आंसू बहा रही थी
बहुत हो चुका दहशतगर्दी का खेल
और इंसानी खून की होलियां
जहाँ हर आंख नम है वहाँ
कोई न बोलेगा अब जिहाद की बोलियां
बस करो अब जिहाद की इस जंग से
पकड़ लो तुम भी शांति की राह
गर अब न सुधर पाएं आतंकियों तुम तो
कर देंगे खत्म हम तुम्हारे नामो- निशा।
चित्रों हेतु साभार - गूगल
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