अमृत महोत्सव है आज़ादी की अमरता का उत्सव

- डाॅ. गायत्री शर्मा 


अमृत अर्थात ‘अमरत्व प्राप्ति का माध्यम‘। आजादी की अमरता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए और स्वतंत्रता की मशाल को चिरकाल तक हमारे दिलों में प्रज्जवलित रखने के लिए मनाए जा रहे आजादी के अमृत महोत्सव का शुभारंभ 12 अप्रैल 2021 को स्वतंत्र भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा किया गया। स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में 75 सप्ताह तक लगातार चलने वाले इस महोत्सव की शुरूआत महात्मा गांधीजी के कर्मस्थल अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से की गई।  

भारत के इतिहास पर नज़र डाले तो वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी सहते-सहते कभी तो हमारे देशभक्तों को भी यह अहसास होने लगा होगा कि अब अंग्रेजों के चंगुल से भारत को आजाद करना बेहद मुश्किल और नामुमकिन है लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि मरता हुआ आदमी भी एक बार प्रतिक्षण छूटती सांसों को रोकने के लिए पूरे जोश के साथ हुंकार भरता है और अपना पूरा जी-जान उस नामुमकिन सी सांस को थामे रखने में लगा देता है। ठीक उसी प्रकार देशभक्तों की मतवाली टोली ने भी भारत की आजादी को हासिल करने के लिए पूरे जोश से ‘वन्दे मातरम्‘ कहते हुए अपने प्राण तक दांव पर लगा दिए। यह आजादी के पावन होम में अपने देश की स्वतंत्रता के लिए हद से गुजर जाने और कुछ कर जाने का वह जुनूनभरा दौर था, जब इंसान तो इंसान, बल्कि बेजुबान पुष्प भी कवि की कलम से निकलते शब्द बनकर अपनी अंतिम इच्छा के रूप में देशभक्तों के पैरों तले कुचले जाने की अभिलाषा व्यक्त कर रहे थे। जो देशभक्त आजादी के इस सफर के मध्यान्ह में अपने प्राणों को न्यौछावर कर रहे थे, वे रणबाकुरे भी हसते-हसते भारत मां का जयगान करते हुए ‘अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों‘ कहकर भावी पीढ़ी के मन में वतन की रक्षा का अलख जगा रहे थे। कवि दिनकर की कलम भी हिमालय के बहाने देश के वीरों को देश की रक्षा के लिए अपनी चिरनिद्रा त्याग जागने का संदेश दे रही थी। 

        ‘तू मौन त्याग, कर सिंहनाद 

        तू तपी! आज तप का न काल;

        नवयुग शंखध्वनि जगा रही

        तू जाग, जाग मेरे विशाल!‘  

     असंख्य वीरों और वीरांगनाओं के बलिदानों की बदौलत आज हमें इस वैभवदायिनी आज़ादी का अमूल्य उपहार मिला है। आत्मा और शरीर को झुलसाने वाली गुलामी की गर्म, सख्त बेड़ियों से स्वयंप्रभा, समुज्जवला आज़ादी को प्राप्त करना जन्नत के सुख भोगने जैसा सुखद है। आजाद भारत के खुले आसामान में आजादी से सांस लेने और विचरण की जो स्वानुभूति है, वह सही माइनों में अमृत पेय के समान सुखद और परमानंद की प्राप्ति के समान संतोष प्रदान करने वाली है। महात्मा गांधी, सरदार पटेल, भगत सिंह, सरोजिनी नायडू, महारानी लक्ष्मीबाई, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल आदि अनेक क्रांतिकारियों के बलिदानों का यह देश सदैव ऋृणि रहेगा। 

अंग्रेजों की मनमानी के रूप में भारतीयों पर थोपे गए हर नए व गलत कानून का भारतीयों ने पुरजोर विरोध किया। फिर चाहे वह विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करना हो या अस्पृश्यता के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाना, नारी जागृति का अलख जगाना हो या नमक पर लगाए गए कर का विरोध करना हो। मानव जीवन की दैनिक अनिवार्य आवश्यकताओं में शुमार नमक पर अंग्रेजों द्वारा लगाए गए कर के विरोध में महात्मा गांधी के नेतृत्व में वर्ष 1930 में 78 लोगों के साथ आरंभ की गई साबरमती आश्रम से दांडी तक की 390 किलोमीटर तक की पैदल यात्रा प्रधानमंत्री मोदी जी की बदौलत आज फिर पुर्नजीवित हुई है। उस दौर और आज में अंतर यह है कि आज बापू हमारे साथ नहीं है परंतु इस दांडी यात्रा के प्रसंगवश ही सही आज भी उनकी अंहिसा, सत्याग्रह व देशभक्ति के आदर्श हमारे मन में इस महान आत्मा के जोश व युवा ऊर्जा के अंकुर प्रस्फुटित करते है।

आज़ादी का अमृत महोत्सव वर्तमान की युवा पीढ़ी को देश की आज़ादी की अहमियत और अंसख्य शहीदों की शहादत का स्मरण कराने के लिए भारत सरकार द्वारा किया जाने वाला एक प्रासंगिक आयोजन है। मातृभूमि के लाडले आज़ादी के उन अलमस्त दिवानों की बहादुरी को मेरा बारंबार प्रणाम है। मैं नम आंखों से नतमस्तक हूं उन शहीदों की, जिन्होंने अपनी संतानों की सुरक्षा के लिए एक मां के समान लाखों यातनाएं सही, एक भाई के समान मुश्किल में हमारी मजबूत ढ़ाल बने और एक पिता के समान विषम से विषम परिस्थितियों में भी देशवासियों को अभयदान प्रदान कर उन्हें खुशियोंभरा आज़ाद भारत उपहार में दिया। आइए, आज़ादी के स्वर्णिम इतिहास के पन्नों को फिर से पलटकर अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों व नैतिक जिम्मेदारियों का स्मरण कर आप और हम सभी इस अमृत महोत्सव में अपनी सहभागिता निभाए। 

चित्र साभार: गूगल


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