श्राद्ध पक्ष में दीपावली

आज हमारा 60 वर्षों का इंतजार खत्म हुआ और माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद हम सभी ने मानो राहत की सास ली है। इस निर्णय के पूर्व व पश्चात पुलिस प्रशासन की सख्त चौकसी व हर चौराहे पर बड़ी मात्रा में मौजूदगी काबिलेतारीफ व आमजन की सुरक्षा के लिहाज से बहुत ही अच्छी थी। एक लंबे इंतजार के बाद आए इस फैसले पर अफवाहों का बाजार काफी पहले से गर्म था पर फिर भी लोगों को यह विश्वास था कि न्यायालय का जो भी निर्णय होगा वह निसंदेह ही दोनों पक्षों की भावनाओं को ध्यान में रखकर ही लिया जाएगा और वैसा ही हुआ भी।

जहाँ तक एक पत्रकार होने के नाते मैंने लोगों से इस विषय पर चर्चा की तो उनका यही कहना था कि अयोध्या में मंदिर बने या मस्जिद, उससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। वे तो बस यही चाहते है कि फैसला जल्द से जल्द व दोनों समुदायों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखकर लिया जाए। सच कहूँ तो अब आम आदमी भी ऐसे मुद्दों पर कट्टरवादिता दिखाकर या तोड़-फोड़ कर अपना समय व जन या धन की क्षति करने के जरा भी मूड में नहीं है। अब वो दिन गए जब लोग लड़ाई झगड़े करने की फिरात में घुमा करते थें। कुछेक शरारती तत्वों को छोड़कर हर कोई इस मुद्दे पर शांति व अमन की गुहार करता नजर आया फिर चाहे वह हिंदु हो या मुस्लिम।

कोई भी नहीं चाहता है कि उसके दफ्तर या बच्चों के स्कूल कॉलेजों की छुट्टी हो या फिर मजदूरी करके अपने परिवार को पालने वाला आम आदमी दंगों की दहशत के कारण कुछ दिनों के लिए बेरोजगार हो जाए और दाने-पानी के लिए तरस जाएँ। हर समझदार व्यक्ति तो यही चाहता है कि देश में अमन-चैन बना रहे और जिंदगी हर दिन उसी रफ्तार से दौड़े। दोपहर में साढ़े तीन बजे ऑफिस से लौटते वक्त इंदौर की सड़कों का सूनापन और छावनी में तब्दील चौराहे मुझे ऐसे लगे जैसे हट्टा-कट्टा स्वस्थ शहर मानो बीमार होकर चुपचाप उदास बैठा हो।

अब तक के जीवन में आज पहली बार अपने मोहल्ले में रात को सैर करते समय कई घरों में श्राद्ध पक्ष में दीपावली का नजारा देखकर एक बारगी आँखों को भी अपने देखे पर यकीन नहीं हुआ। जब इसके कारण की पूछताछ की गई तो पता लगा कि यह हिंदुओं की रामलला के प्रति आस्था थी,जो घरों के आँगन में चमचमाती रोशनी के माध्यम से अभिव्यक्त हो रही थी। मैं तो यही चाहती हूँ कि हम सभी समुदायों की आस्था को कभी ठेस न पहुँचे और हम सभी सदैव मिल-जुलकर रहे।

न्यायालय के फैसले से असंतुष्ट पक्ष के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय के दरवाजे खुले हैं। वह अपनी असंतुष्टि को कानूनी तरीके से अभिव्यक्त कर सकते हैं। वैसे मेरी राय में यह फैसला बहुत अधिक सोच समझकार गहन चिंतन के पश्चात लिया गया फैसला है। जो दोनों पक्षों के हित में है। अत:हमें इस फैसले का सम्मान करना चाहिए।


- गायत्री शर्मा

Comments

Post a Comment

आपके अमूल्य सुझावों एवं विचारों का स्वागत है। कृपया अपनी प्रतिक्रियाओं से मुझे अवगत कराएँ।

Popular posts from this blog

महात्मा गाँधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ब्लॉगरों का जमावड़ा

नेत्रहीन बच्चियों को स्वावलम्बी बनाता 'आत्मज्योति नेत्रहीन बालिका आवासीय विद्यालय'

‘संजा’ के रूप में सजते हैं सपने