विजयादशमी और रावण
पहले गणेश जी फिर माताजी, फिर रावण और उसके बाद लक्ष्मी जी ... ऐसा लगता है जैसे सभी भगवान में इस बात की ट्यूनिंग चल रही हो कि कैसे वे एक के बाद एक आकर भक्तों को अपनी आव-भगत करने का मौका देंगे। बेचारे भक्त भी अपने शुभमंगल की कामना के लिए कभी लड्डू,कभी पेड़ा,कभी चूरमा तो कभी पकोड़े खिला-खिलाकर आए दिन भगवानों को प्रसन्न करने में लगे हुए हैं। घर में पधारों गजानन जी के बाद, अम्बे तू है जगदंबे काली और अब रामचंद्र कह गए सिया से ... के गीत गली-गली में यक ब यक सुनाई पड़ रहे हैं।
चलिए अब बात करते हैं असत्य पर सत्य की विजय के पर्व 'विजयादशमी'की। इंदौर में विजयादशमी पर केवल आयुधों की ही पूजा नहीं होती है बल्कि यहाँ हर गली-मोहल्ले में रावण के प्रतीक पुतले बनाए जाते हैं,जिन्हें आतिशबाजियों के साथ जलता देखकर लोग खुशियाँ मनाते हैं और एक-दूसरे को दशहरे की बधाईयाँ देते हैं। दशहरे के दूसरे दिन लोगों के घर दशहरा मिलने जाने का चलन मुझे केवल इंदौर में ही देखने को मिला क्योंकि मेरे शहर रतलाम में केवल 'पड़वा'पर ऐसा होता है। लेकिन कुछ भी कहो इंदौर की विजयादशमी का आनंद ही कुछ और है।
दूसरे भगवानों की बजाय रावण ही क्यों ... इसके पीछे भी एक फनी लॉजिक है और वह यह कि रावण को स्थापित करने व बिदा करने में दोनों में बड़ी आसानी होती है। रावण जैसे महाज्ञानी शिव भक्त को दूसरे देवताओं की तरह किसी विशेष आव-भगत की जरूरत ही नहीं होती है। इसे तो आप सेम डे बनाकर गली-चौराहा,घर का आँगन,बगीचा चाहे जहाँ खड़ा कर दो आखिरकार ऐसे या वैसे उसे तो जलना ही है।
रावण बनाने का सबसे ज्यादा क्रेज बच्चों में देखने को मिलता है,जो कागज,कपड़े,स्केज पेन,घास-पूस आदि के साथ अपनी पसंद,आकार-प्रकार और कद-काठी के रावण को बनाकर उसमें खूब सारे पटाखे लगाकर उसका दहन करते हैं और दोस्तों के सात खूब मौजमस्ती करते हैं। कुछ इस तरह बहुत कम लागत में बनने वाला रावण केवल बच्चों का ही नहीं बल्कि हम सभी का फेवरेट बन जाता है। इस रावण को हँसते-हँसते बनाया जाता है और हँसते-हँसते ही विदा किया जाता है।
- गायत्री शर्मा
चलिए अब बात करते हैं असत्य पर सत्य की विजय के पर्व 'विजयादशमी'की। इंदौर में विजयादशमी पर केवल आयुधों की ही पूजा नहीं होती है बल्कि यहाँ हर गली-मोहल्ले में रावण के प्रतीक पुतले बनाए जाते हैं,जिन्हें आतिशबाजियों के साथ जलता देखकर लोग खुशियाँ मनाते हैं और एक-दूसरे को दशहरे की बधाईयाँ देते हैं। दशहरे के दूसरे दिन लोगों के घर दशहरा मिलने जाने का चलन मुझे केवल इंदौर में ही देखने को मिला क्योंकि मेरे शहर रतलाम में केवल 'पड़वा'पर ऐसा होता है। लेकिन कुछ भी कहो इंदौर की विजयादशमी का आनंद ही कुछ और है।
दूसरे भगवानों की बजाय रावण ही क्यों ... इसके पीछे भी एक फनी लॉजिक है और वह यह कि रावण को स्थापित करने व बिदा करने में दोनों में बड़ी आसानी होती है। रावण जैसे महाज्ञानी शिव भक्त को दूसरे देवताओं की तरह किसी विशेष आव-भगत की जरूरत ही नहीं होती है। इसे तो आप सेम डे बनाकर गली-चौराहा,घर का आँगन,बगीचा चाहे जहाँ खड़ा कर दो आखिरकार ऐसे या वैसे उसे तो जलना ही है।
रावण बनाने का सबसे ज्यादा क्रेज बच्चों में देखने को मिलता है,जो कागज,कपड़े,स्केज पेन,घास-पूस आदि के साथ अपनी पसंद,आकार-प्रकार और कद-काठी के रावण को बनाकर उसमें खूब सारे पटाखे लगाकर उसका दहन करते हैं और दोस्तों के सात खूब मौजमस्ती करते हैं। कुछ इस तरह बहुत कम लागत में बनने वाला रावण केवल बच्चों का ही नहीं बल्कि हम सभी का फेवरेट बन जाता है। इस रावण को हँसते-हँसते बनाया जाता है और हँसते-हँसते ही विदा किया जाता है।
- गायत्री शर्मा
असत्य पर सत्य की विजय के इस त्यौहार का इंदौरी जायका मैं भी ले चुका हूँ.
ReplyDeleteविजयादशमीं की बहुत शुभकामनाएँ.