शराबियों के लिए रूकी राजस्थान परिवहन निगम की बस

लगभग हर शनिवार की तरह पिछले शनिवार यानि दिनांक 23 अक्टूबर को मेरा फिर अपने गृहनगर रतलाम को जाना हुआ। हर बार की तरह इस बार भी दफ्तर में काम की व्यस्तताओं के चलते मेरी 4 बजे वाली 'इंदौर-जोधपुर' बस छूट गई। उसके बाद अपना काम खत्म करके भागते-दौड़ते अंतत: मैं 6:30 से 6:45 के बीच गंगवाल बस स्टैंड पहुँची। जल्दी से मैंने पार्किंग में गाड़ी रखी। इतनी देर में राजस्थान परिवहन की रतलाम जाने वाली दूसरी बस ‍भी रवाना हो चुकी थी। अब मेरे पास विकल्प के तौर पर राजस्थान परिवहन निगम की 'इंदौर-नाथद्वारा-फालना'और 'इंदौर-उदयपुर' बस ही थी। ये दोनों ही बस रतलाम होकर ही राजस्थान बार्डर में प्रवेश करती है इसलिए इंदौर से चलने वाली राजस्थान परिवहन निगम की लगभग हर बस मेरे शहर रतलाम जाती है।    

मैं भी जल्दी से जल्दी रतलाम पहुँचने के चक्कर में रतलाम का टिकिट लेकर 'इंदौर-नाथद्वारा-फालना' की ओर जाने वाली बस क्रमांक RJ 22 PA 0932 बस में बैठ गई। बस में मुझे पीछे की 23 नंबर की सीट मिली थी पर आगे बैठने की जिद के चलते मैं हमेशा की तरह कंडक्टर की सीट पर बैठ ही गई। आमतौर पर राजस्थान परिवहन निगम की बसों के कंडक्टर महिलाओं को पीछे की सीट पर बैठाने के बगैर आगे की सीटों पर या अपनी सीट पर जगह दे ही देते हैं। परंतु उस बस के कंडक्टर को मेरा उनकी सीट पर बैठना यह नागवार गुजरा और उसने तुरंत मुझे कहा कि मैडम आप अपनी सीट पर बैठिए। उस वक्त बस में बैठी एकमात्र महिला सवारी होने के कारण व रात का सफर होने के कारण मैंने कंडक्टर से मेरी सीट किसी ओर से एक्सचेंज करने की जिद की और अंतत: कंडक्टर ने मेरी समस्या को समझकर मुझे तीन सवारियों वाली सीट पर दो पुरुषों के बीच में फँसाकर और कसाकर रतलाम तक बैठने की जगह दे दी।

बड़ी ही असहजता से अपने बदन को सिकोड़ते हुए मैं उन दो पुरुषों के बीच में बैठ गई। कुछ देर बाद मेरी सीट पर खिड़की की ओर बैठे युवक से जब मैंने उसकी जगह पर मुझे बैठने की इजाजत माँगी तो उसने यह कहकर कन्नी काट ली कि मैडम, बस में मेरा तो जी बड़ा घबराता है इसलिए मैं ही खिड़की की ओर बैठूँगा। उनका जवाब सुनकर मैंने भी मन ही मन सोचा - 'गायत्री, बेटा यह बचपन नहीं है। जब माँ-पापा से लड़-झगड़कर तू बस या ट्रेन में खिड़की की ओर बैठ जाती थी। अब तू बड़ी और गंभीर हो चुकी है और आजकल के लोग तो महिला को खड़ा देखकर भी आराम से सीट पर बैठे रहते हैं। ऐसे में मुझे कौन भला मानुष खिड़की पर बैठने देगा?'यह सब सोचकर तो मैं पीछे की बजाय बस में आगे की सीट पर उन दो पुरुषों के बीच बैठना ही अपना सौभाग्य मानने लगी। 

बस में बैठते से ही कंडक्टर सीट के ठीक पीछे की सीट पर बैठे दो पुरुष बार-बार कंडक्टर से शराब खरीदने के लिए गाड़ी रोकने को कह रहे थे। कंडक्टर भी बस की सवारियों व समय की परवाह किए बगैर जगह-जगह पर शराब की दुकान की तलाश में गाड़ी रूकवा रहा था। कई बार बस रूकी और कई बार उस व्यक्ति ने उतरकर शराब की दुकान तलाशी। यहाँ तक कि बदनावर गाँव में भीतर बस स्टैंड तक न जाने वाली राजस्थान परिवहन निगम की बस उस दिन बस स्टैंड तक गई। उस दिन सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो रहा था। तभी तो मेरा दिमाग बस में बैठे-बैठे कुछ-कुछ ठनक रहा था। अंतत: पहले से शराब में धुत उस व्यक्ति को सफारी सूट पहने कंडक्टर ने हम सभी सवारियों की परवाह किए बगैर बदनावर में शराब की बोतल खरीदने और पीने का मौका दिया। उस समझदार व्यक्ति ने भी जी भर के शराब पी व नशे में धुत होकर बस में बैठ गया। कंडक्टर का उन दो शराबियों को खुश रखने का कोई और भी मतलब हो सकता था।

सच कहूँ तो यह सब देखकर मुझे लगा कि आजकल कैसा जमाना आ गया है। जब बस के कंडक्टर महिला सवारियों को धुत्कारकर शराबियों को आगे बैठा रहे हैं व उन्हें दिल खोल के शराब पीकर बस में सवारियों के बीच बैठने का मौका व उपद्रव मचाने के लिए आश्रय दे रहे हैं। ऐसे में खुदानखासता कभी कोई शराबी किसी महिला के साथ बदतमीजी या बलात्कार करने का प्रयास भी करें तो उस कंडक्टर जैसे गैरजिम्मेदार व्यक्ति जरूर खुली आँखों के अँधे बन यह सब तमाशा देखते रहेंगे क्योंकि गुलामी करने की उन्हें आदत है और झूठ बोलना उनका धंधा। उस दिन मुझे ठेस इसलिए भी पहुँची क्योंकि वह राजस्थान परिवहन निगम की बस थी न कि मध्यप्रदेश या बिहार परिवहन निगम की बस।

राजस्थान परिवहन निगम की बसों में अक्सर मैं रतलाम से इंदौर के बीच यात्रा करती रहती हूँ। मैंने जहाँ तक देखा है। इन बसों के ड्राइवर व कंडक्टर दोनों ही बड़े मृदुभाषी व कर्तव्यनिष्ठ होते हैं। बस में कभी कोई सवारी सिगरेट भी पिए तो वे लोग उन्हें यह कहकर रोक देते हैं कि बस में महिला सवारी है और इन बसों में सिगरेट व शराब पीना सख्त मना है। लेकिन मैंने शनिवार की रात इंदौर से शाम 7 बजे चली व रतलाम में रात्रि लगभग 10:30 बजे पहुँची जिस बस में सफर किया था। उसका कंडक्टर बेहद ही गैरजिम्मेदार था।

मैंने यह पोस्ट किसी का बुरा-भला कहने के लिए नहीं बल्कि ईंसानियत व मानवता को कुछ ओर समय तक बचाए रखने के लिए लिखी है। हम सभी अक्सर बसों में सफर किया करते है। हमारे यहाँ तो अमूमन बस के ड्रायवर या कंडक्टर को महिलाएँ 'भैया' कहकर ही बुलाती है। सामान्य तौर पर बोले जाने वाले इस 'भैया' शब्द का अर्थ बहुत गहरा है। इस शब्द से स्वत: आरोपित कर्तव्यों के लिए न सही पर मानवता के लिए ही सही मेरे भाईयों! जरा 'स्थान की गरिमा' का खयाल रखें व सार्वजनिक स्थानों पर धुम्रपान या नशा करने से गुरेज करे। कम से कम राजस्थान परिवहन निगम की बसों में सरेआम ऐसा होना कही न कही हमें शर्मसार करता है क्योंकि ये बसे अपने कुशल ड्रायवर, मृदुभाषी कंडक्टर, तेज गति व उम्दा सेवाओं के लिए पहचानी जाती है।

यदि आज हम आमजन नहीं जागे तो कल को हममें से कोई भी किसी महिला को बस या ट्रेन में अकेले यात्रा करने की इजाजत देने से पहले सौ बार सोचेगा क्योंकि आज के माहौल को देखते हुए कल को बसों में सरेआम शराब बिकना या महिलाओं के साथ छेड़खानी होना एक आम बात हो जाएगी। इसलिए अब वक्त आ गया है ‍जागने और जगाने का।  

- गायत्री शर्मा

Comments

  1. सरकारी बसों में ऐसा होना आम बात है , नियम और कानून चाहे जितने भी सख्त क्योँ न बना दिए जाएँ , जब तक व्यक्ति अपनी जिम्मेवारी को नहीं समझता तब तक किसी सुधार की अपेक्षा नहीं की जा सकती.....फिर चाहे बस हो यह प्रशासन ...
    सुंदर पोस्ट
    eord verification hata hata dijiye

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  2. परिचालक का व्वहार निन्दनीय लगा।

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