माँ की आराधना नवरात्रि में
माँ दुर्गा की आराधना का पर्व 'नवरात्रि' अपने अवसान के साथ-साथ जोश, ऊर्जा व भक्ति के मामले में चरम पर पहुँचता जाता है। कोई अपने पदवेश (चप्पल-जूते) छोड़कर तो कोई नौ दिन तक कठोर उपवास रख माँ की भक्ति कर माँ से अपने परिवार के शुभमंगल की कामना करते हैं। दुल्हनों की तरह सजे गरबा-मंडल दिन भर सुस्ताकर शाम को फिर से माँ की आराधना के लिए तैयार होकर जगमगाने लगते हैं और सांझ ढ़लते-ढ़लते माँ के भक्ति गीतों व चंटियों की आवाजों से गुँजने लगते हैं। छोटी-बड़ी बालिकाएँ भी चमचमाते वस्त्रों के साथ इन गरबा मंडलों में अपने सुंदर गरबा रास की प्रस्तुति देकर इन्हें जीवनदान दे देती है।
यदि मैं अपनी बात करूँ तो मुझे भी गरबा खेलने का बहुत शौक है। जिसके लिए मैं हर साल समय निकाल ही लेती हूँ। पर क्या करूँ व्यस्तताओं के चलते इस बार न तो मैं माँ के लिए उपवास रख पाई और न ही नौ दिनों तक गरबा खेलने जा पाई। इतना सब होने के बावजूद भी इसे माँ की कृपा ही कहे कि अष्टमी के दिन इंदौर के बड़ा गणपति स्थित शारदा नवदुर्गोत्सव समिति के आयोजकों ने मुझे बालिकाओं का गरबा देखने हेतु अतिथि के रूप में आमंत्रित किया व अतिथि होने के नाते मुझे माँ की तस्वीर पर माल्यापर्ण कर माँ की आराधना का एक मौका प्रदान किया।
वह अष्टमी का दिन था। उसी दिन मुझे अपने दफ्तर के साथियों के साथ दफ्तर की छत पर गरबा करने का मौका मिला। जिसका मैंने भरपूर लुत्फ उठाया और रात में घर पहुँचकर हमारे पड़ोस स्थित गरबा प्रागंण में आरती के रूप में माँ की आराधना की। आज नवमी के दिन भी मैंने अपनी कॉलोनी स्थित गरबा प्रागंण में कुछ देर तक गरबे किए। इन सभी के लिए मैं देवी माँ को धन्यवाद देती हूँ कि मैंने नौ दिनों तक इंदौर के कई गरबा-पांडालों में आरती होते हुए देखी पर आलस्य के चलते मैंने वहाँ जाकर आरती करने की जहमत कभी नहीं की लेकिन माँ की कृपा से अष्टमी व नवमी के दिन मुझे कई गरबा पांडालों में गरबा खेलने व आरती करने दोनों का मौका मिला।
यदि मैं अपनी बात करूँ तो मुझे भी गरबा खेलने का बहुत शौक है। जिसके लिए मैं हर साल समय निकाल ही लेती हूँ। पर क्या करूँ व्यस्तताओं के चलते इस बार न तो मैं माँ के लिए उपवास रख पाई और न ही नौ दिनों तक गरबा खेलने जा पाई। इतना सब होने के बावजूद भी इसे माँ की कृपा ही कहे कि अष्टमी के दिन इंदौर के बड़ा गणपति स्थित शारदा नवदुर्गोत्सव समिति के आयोजकों ने मुझे बालिकाओं का गरबा देखने हेतु अतिथि के रूप में आमंत्रित किया व अतिथि होने के नाते मुझे माँ की तस्वीर पर माल्यापर्ण कर माँ की आराधना का एक मौका प्रदान किया।
वह अष्टमी का दिन था। उसी दिन मुझे अपने दफ्तर के साथियों के साथ दफ्तर की छत पर गरबा करने का मौका मिला। जिसका मैंने भरपूर लुत्फ उठाया और रात में घर पहुँचकर हमारे पड़ोस स्थित गरबा प्रागंण में आरती के रूप में माँ की आराधना की। आज नवमी के दिन भी मैंने अपनी कॉलोनी स्थित गरबा प्रागंण में कुछ देर तक गरबे किए। इन सभी के लिए मैं देवी माँ को धन्यवाद देती हूँ कि मैंने नौ दिनों तक इंदौर के कई गरबा-पांडालों में आरती होते हुए देखी पर आलस्य के चलते मैंने वहाँ जाकर आरती करने की जहमत कभी नहीं की लेकिन माँ की कृपा से अष्टमी व नवमी के दिन मुझे कई गरबा पांडालों में गरबा खेलने व आरती करने दोनों का मौका मिला।
गायत्री दीदी आपने तो नवरात्री के बारे में बहुत सुंदर लिखा है....
ReplyDeleteआपको दशहरे की शुभकामनायें
शुक्रिया चैतन्य। आपको भी दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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