मर्डर 2 की बदबूदार कहानी

दोस्तों, आज दुर्भाग्यवश मैंने 'मर्डर 2' फिल्म देखी। इस फिल्म को देखकर मुझे इस कड़वे सच का आभास हुआ कि भारतीय संस्कृति व संस्कारों को भूल अब हमारा युवा एक अंधेरी राह की ओर बढ रहा है। बहुत से लोगों को यह फिल्म अच्छी लगी और उन्ही लोगों की वजह से बॉक्स ऑफिस पर भी यह फिल्म हाल की हिट फिल्मों में अपना नाम दर्ज कराने में काबिज रही होगी। पर मेरा व्यक्तिगत मत यही है कि यह फिल्म एक घटिया स्तर की फिल्म है।
     यदि हम बात करे तो आज से 10-20 साल पहले की तो उस वक्त तक फिल्मों के हिट होने का पैमाना उनका सशक्त कथानक, कथावस्तु, पात्र और फिल्म में निहित संदेश हुआ करते थे। जो समाज को सही राह दिखाकर रिश्तों में प्रेम को काबिज रखते थे। उन फिल्मों में भी डरावने विलेन होते थे पर ऐसे नहीं, जैसे कि मर्डर 2 या दुश्मन फिल्म में दिखाया गए है। इस फिल्म को देखकर तो जहाँ एक ओर बॉलीवुड के किसिंग किंग ईमरान हाशमी के किस की बरसात हमें बारिश के मौसम में शर्म से पानी-पानी करके भिगों देती है। वहीं इस फिल्म के विलेन का लड़कियों को काटकर उन्हें कुँए में फेक देने की आदत हमारे मन में घृणा पैदा कर देती है।
        मुझे तो उस व्यक्ति की सोच पर बड़ा अचरज होता है। जिसने इस फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी होगी या फिर जिसने इस फिल्म का निर्माण किया होगा। क्या वाकई में उन लोगों की सोच वैसी ही है। जैसी की फिल्म के रूप में उन्होंने दर्शकों तक पहुँचाई है या फिर वे समाज को इतनी गंदी सोच देकर उन्हें अमानवीय बनाना चाहते हैं। सच कहूँ तो कम उम्र की लड़कियों का इस कदर शोषण दिखाया जाना किसी भी दृष्टि में मुझे उचित नहीं लगता। किस तरह से फिल्म निर्माण करने वाले कथित बुद्धिजीवी कहलाने वाले वे लोग जिस्म के आदतन भक्षक बन चुके फिल्म के अभिनेता को बेदाग बनाकर बेडरूम से पुलिस थाने में इस काम के लिए बुलाते हैं कि वह लड़कियों को गायब करने वाले उस व्यक्ति को ढूँढे, जो कॉलगर्ल को एक रात के लिए बुक कर उन्हें गायब करा देता है।
     फिल्म में वही व्यक्ति उन लड़कियों की जान बचाने को आगे आता है, जो हर रोज जिस्म की भूख का प्यासा बन खूबसूरती के पीछे भटकता है। यह तो सौ-सौ चूँहे खाकर बिल्ली हज को चली वाला हिसाब होता है। यदि बगैर किसी लाग लपेट के कहूँ तो इस फिल्म में अश्लीलता व विभत्स दृश्यों की भरमार है। जिसमें कहानी के माध्यम से समाज को संदेश देने की बजाय समाज में अश्लीलता व फूहड़ता के एक सड़े-गले तथा गंदे ट्रेंड को शुरू करने का प्रयास किया जा रहा है।

Comments

Popular posts from this blog

महात्मा गाँधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ब्लॉगरों का जमावड़ा

नेत्रहीन बच्चियों को स्वावलम्बी बनाता 'आत्मज्योति नेत्रहीन बालिका आवासीय विद्यालय'

‘संजा’ के रूप में सजते हैं सपने