मैं भारत की बेटी हूं
- डॉ. गायत्री
जिंदगी में कई ऐसे मौके आते हैै, जब हम हार मानना अधिक पसंद करते है और हार मान भी लेनी चाहिए क्योंकि तर्क-कुतर्क, ज्ञान-अज्ञान, अमीर-गरीब, ऊंच-नीच इन सबसे अधिक जरूरी है आत्मसम्मान। अपने स्वाभिमान या आत्मसम्मान को गिरवी रखकर जितने से बेहतर है हार जाना। उसे जीतने दो, जो आपको हराने में अपनी जीत समझता है।
बड़ा दुख होता है ये जानकर कि इंसान की समझ परिपक्वता की उम्र में भी बालपन से खेलती है, जिम्मेदारी की उम्र में लापरवाही को झेलती है और बुढ़ापे की उम्र में जवानी को खोजती है। हमारी घर और बाहर की सोच में ये फर्क कैसा? हर दिन देश में बढ़ती नारी शोषण और बलात्कार की घटनाओं से मन घबरा जाता है न चाहते हुए भी आंखों से आंसू बह निकलते है और दिल से हर आह के साथ यही चीख निकलती है - ’अब बस करो दरिंदों।’ हर सिसकी से निकली यह बददुआ इस गगन में गुंजायमान होकर चिरस्थायी हो जाती है। क्या यह वही देश है, जहां किसी घर में बेटियां भी पूजी जाती है?
कितनी आजाद है इस देश की बेटियां। यह आज एक ’रिसर्च’ का विषय हैै। इन मुस्कुराते खूबसूरत चेहरों के पीछे का दर्द आपकी मुस्कुराहट है। आपकी सुबह से लेकर रात तक को रंगीन बनाने वाली, आपको सपनों को सच करने में अपनी जी-जान लगाने वाली और अपने परिवार की खुशी के लिए अपनी खुशियों को कुर्बान करने वाली औरतें इस धरा पर साक्षात ईश्वर का अवतार है। इस जनम में यदि आपने उसे नहीं पहचाना और उसका सम्मान नहीं किया तो शायद आपको अगला जन्म इस धरा पर इंसान का न मिले।
चित्र साभार - गूगल
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