अक्षय आमेरिया की रेखाओं की दुनिया

आज महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन में कदम रखते ही मेरी मुलाकात लकीरों से जिंदगी के विविध रंगों के चित्र उकेरने वाले चित्रकार श्री अक्षय आमेरिया जी से हुई। जिस प्रकार के केशों से प्रकृति ने आमेरिया जी के सिर को श्रृंगारित किया है। वह केश इस प्रतिभावान कलाकार का परिचय देने के साथ ही उनकी कल्पनाशीलता को भी अभिव्यक्त करते हैं। घुँघराले केशों की तरह इस चित्रकार की जिंदगी भी लकीरों के विविध आकारों से गुजरती हुई जीवन के विविध पक्षों व भावों को कैनवास के आईने पर प्रतिबिंबित करती है। कहते हैं कलाकार का कमरा मंदिर के समान पवित्र होता है। वहाँ पड़ी चीज़ों से उसकी कल्पनाशीलता व सृजनात्मकता का अंदाजा लगाया जा सकता है। अक्षय जी की कल्पनाओं को अभिव्यक्ति देने वाले कमरे में इस कलाकार के सपने इधर-उधर अलग-अलग आकारों में टंगे व बिखरे नज़र आते हैं, जिन्हें फुरसत में जोड़-जोड़कर अक्षय जी एक बोलता चित्र कैनवास पर बनाते हैं।
आमेरिया जी के साथ उनके निवास पर हुई मुलाकात मुझे चेहरों, भावों व विविध आकारों की उस दुनिया में ले गई। जहाँ एक सीधी सी लकीर भी अर्थपूर्ण होती है। अक्षय जी की हाथों से फिसलकर वह साधारण सी लकीर भी बोलने लगती है, चलने लगती है और कभी-कभी तो साँप सी रैंगने भी लगती है। वही लकीर जब कैनवास पर बिंदु से जा मिलती है तो इठलाती हुई यह लकीर अलग-अलग आकारों में ढ़ल कभी चेहरा बन जाती है, तो कभी चाँद, सूरज और पेड़ बन जाती है। अक्षय जी के रेखाचित्रों में अमूमन यह लकीर चेहरे पर उदासी का रंग जीवन के संघर्षों को बँया करती है तो कभी चुटकीभर खुशियाँ मिल जाने पर ही गुलाबी, हरे व लाल रंग से सजकर कैनवास पर खुशियों को बिखेरती है।
- गायत्री 

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