बदायूं के बाद बरेली में बलात्कार
यहाँ कराहती है मानवता दरिंदों के खौफ से। आज सहम गई है बेटियाँ अब निर्भया
और बदायूं की बेटियों की करूण चित्कार सुन। हर तरफ से आवाज़ें आ रही है कि अब बस
करो। हैवानियत का यह विभत्स दृश्य अब हमें और न दिखाओ। आप कानून में सख्ती बरतो या
इंसाफ को आमजन के हवाले कर दो। लेकिन ये क्या आज फिर अखबारों की लीड खबर बनी बरेली
गैंगरेप की घटना ने हमें चौंका दिया। कानून की धज्जियाँ उड़ाने के साथ ही बरेली की
घटना ने मानवता के नाम पर भी एक करारा तमाचा जड़ दिया। इस घटना ने हैवानियत की
सारी हदों को लांघते हुए हमारे समक्ष निर्ममता और क्रूरता एक नया उदाहरण प्रस्तुत
किया है। जिसे देखकर यहीं कहा जा सकता है कि इस देश का कानून लचर है और अपराधियों
के हौंसले बुलंद। यहाँ अपराधियों को न तो फाँसी का खौफ नहीं है और नही पुलिस के
डंडों का भय। आखिरकार अपराधियों के प्रति हमारे देश में अपनाई जाने वाली सुधारवादी
सोच आखिरकार कब बदलेगी? शायद यहीं वजह है कि इस देश में सजा भोगने के बाद भी
अपराधी तो नहीं सुधरते बल्कि इसके उलट बाहर निकलकर बहुगुणित रूप में वे नए
अपराधियों को तैयार करते हैं। क्या आज सच में कानून अपराधियों के लिए एक ऐसा खिलौना
बन गया है, जिसकी सँकरी गलियों में भी वह अपने बच निकलने का रास्ता आसानी से खोज
लेते हैं?
आज मेरा मन बड़ा विचलित है। स्तब्ध हूँ मैं बरेली की घटना के बारे में सोचकर। बदायूं
में बलात्कार के बाद पेड़ पर लटकती चचेरी बहनों की लाशें अभी इंसाफ के लिए अपनी
आवाज़ बुलंद कर ही रही थी कि बरेली में 22 वर्षीय युवती के साथ गैंगरेप की घटना ने
हैवानियत की सारी हदों को लांघ दिया और फिर से अमानवीयता का एक क्रूर उदाहरण समाज
के समाज के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। बरेली की शर्मनाक घटना में युवती के साथ गैंगरेप
तो हुआ लेकिन ऐसा करने के बाद भी जब जिस्म के भूखे हैंवानों को तृप्ति नहीं मिली
तो उसने युवती के मुँह में तेजाब डालकर उसकी सिसकियों को भी जलाकर खाँक कर दिया।
बलात्कार
पीडि़ता की साँसों के तार तेजाब की आग में धूँ-धूँ कर जलकर टूट रहे थे लेकिन
मानवता का मखौल उड़ाने वाले दरिंदों की भूख तो अभी भी अतृप्त थी। अपनी तृप्ति को
आखिरी अंजाम देने के लिए बलात्कारियों ने तेजाब पिलाने के बाद हैवानियत का शिकार
बनाई युवती को पेट्रोल से जलाया और अंत में उसे बोरी में बाँधकर फेंक दिया। वह
युवती तो जलकर मर गई लेकिन जाते-जाते वह छोड़ गई अपनी अधूरी कहानी इस समाज को
सुनाने के लिए छोड़ गई। वह छोड़ गई अपनी अंतिम साँसों की पुकार हमें बैचेन करने के
लिए और उसे इंसाफ दिलाने के लिए। आप भी मानवता को शर्मशार करने वाली इन घटनाओं की
निंदा कीजिए और माध्यम चाहें जो भी हो, इन बेटियों को इंसाफ दिलाने की मुहिम में
अपना बूँदभर योगदान देकर बेटियों के सम्मान की रक्षा कीजिए।
नारी के सम्मान और उसकी आज़ादी पर नकेल कसती ये घटनाएँ आखिरकार हमें क्या सबक
दे रही है? क्या यह हमारी बेटियों को घरों में कैद रखने का संकेत हैं या उन्हें
बचाने के लिए आवाज़ उठाने का? अब मौन बने ऐसे मंजरों को देखते रहने की बजाय हमें
भी पीडि़ता के परिवारों के साथ आगे आकर देश की इन बेटियों के इंसाफ के लिए और
कानून में बदलाव के लिए आवाज़ उठानी होगी। अब वक्त आ गया है रइतना कुछ बुरा सुनने
व बुरा देखने के बाद बुरे को बढ़ने से रोकने के लिए आगे आने का। खुलकर यह कहने का
कि बेटियाँ देश की आन, बान और शान है, परिवार का सम्मान है। इन्हें बचाओं और
बलात्कारियों को कड़ी से कड़ी से सजा दिलाओं। तभी निर्भया, बदांयू की बहनों और
बरेली की युवती के साथ ही देश की हर बेटी को इंसाफ मिलेगा और उनके चेहरे पर फिर से
स्वाभिमान की मुस्कुराहट होगी और निर्भयता का आत्मविश्वास।
- गायत्री शर्मा
ReplyDeleteकल 06/जून /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद यशवंत जी।
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