नईदुनिया की पत्रकार सोनाली राठौर नहीं रही ...
- गायत्री शर्मा
आज सोनाली दीदी के जाते ही मेरी स्मृति में कैद उनकी यादों की पोटली अचानक खुल गई और उसमें से निकली लज़ीज लिट्टी-चौखे की महक, मंडी भाव की खबरें और उससे भी कहीं ज्यादा प्रेम विवाह से उनके जीवन में आए उस फरिश्ते के किस्से थे, जिससे उनकी जिंदगी के गुलशन में खुशियों की बहार थी।
कहते हैं हमारी जिंदगी की डोर ऊपर हाथों में होती है। वह सर्वशक्तिमान परमात्मा ही है, जो हमें धन-दौलत, ऐश-आराम, कामयाबी आदि दुनिया के सब सुख देता है। हमें अपने कर्म से किस्मत बदलने का मौका और हौंसला भी देता है पर एक महत्वपूर्ण चीज, जो वह परमात्मा हमें नहीं देता है। वह होता है – मौत पर नियंत्रण। हम लाख कोशिशें कर ले पर जब उस ऊपर वाले का बुलावा आता है तब हमें उसके आदेश पर जाना ही होता है। मृत्यु के देवता का कुछ ऐसा ही आदेश मेरी पत्रकार साथी को हुआ। पिछले दिनों इंदौर के सीएचएल अपोलो हॉस्पिटल में वेटिंलेटर पर लेटे-लेटे साँसों की टूटती-जुड़ती डोर के बीच मौत के घनघोर अँधेरे में जीवन की उम्मीदों के स्वप्न संजोती सोनाली आज हमारे बीच नहीं रही। 1 सितम्बर 2014, सोमवार की सुबह ‘नईदुनिया’ की यह वरिष्ठ पत्रकार जिंदगी और मौत की जंग में जिंदगी से जंग हार गई और सदा के लिए मौत के आगोश में जाकर सो गई। जाते-जाते अपने पीछे छोड़ गई वह उस खिलखिलाहट को, जिससे दफ्तर में उनकी मौजूदगी पुख्ता होती थी। मैं बात कर रही हूँ उस सोनाली राठौर की, जिसकी कर्मठता व दंबग व्यक्तित्व ही उनकी पहचान था। मुझे भी नईदुनिया में कुछ समय तक सोनाली दीदी के साथ काम करने का मौका मिला था। यही वह वक्त था, जब मैंने तन से चुस्त-दुरूस्त, काम के मामले में सबके छक्के छुड़ाने वाली और हर बात पर हाजिर जवाब देने वाली इस महिला पत्रकार को बड़े करीब से जाना था। हाँलाकि उनके साथ बिताया वह समय मेरे लिए कुछ माह का अल्प समय था पर उस समय की यादें आज भी बहुत मीठी है। पत्रकारिता के नए-पुराने सभी साथियों की सहायता के लिए सदैव तत्पर, काम के तनाव को मुस्कुराहट की गूँज से हटाने वाली सोनाली दीदी जितना अधिक बोलती थी। उससे कहीं अधिक उनका काम बोलता था।
हँसमुख व मिलनसार सोनाली दीदी की अक्समात मृत्यु की खबर पर आज भी मुझे यकीन नहीं हो रहा है क्योंकि उनको याद करते ही मेरी आँखों के सामने उस दबंग लड़की की छवि आती है, जिसके हिस्से में आम लड़कियों सी शरमाहट व सकुचाहट नहीं थी। अपने से पंगा लेने वालों की बोलती बंद करना व बेहतर काम से अपने प्रतिद्वंदियों का मुँह बंद करना वह बखूबी जानती थी। काम के प्रति बेहद ईमानदार सोनाली दीदी पत्रकारिता में बेदाग महिला व्यक्तित्व का उदाहरण थी। भले ही आज वह हमसे बहुत दूर चली गई है पर उनकी यादें सदैव हमारी स्मृति में उन्हें जीवित रखेगी।
मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि वह हमारी इस साथी को अपने चरण कमलों में स्थान दें और उनके परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें। अश्रुपूरित श्रृंद्धांजलि के साथ .... ॐ शांति ...
आज सोनाली दीदी के जाते ही मेरी स्मृति में कैद उनकी यादों की पोटली अचानक खुल गई और उसमें से निकली लज़ीज लिट्टी-चौखे की महक, मंडी भाव की खबरें और उससे भी कहीं ज्यादा प्रेम विवाह से उनके जीवन में आए उस फरिश्ते के किस्से थे, जिससे उनकी जिंदगी के गुलशन में खुशियों की बहार थी।
कहते हैं हमारी जिंदगी की डोर ऊपर हाथों में होती है। वह सर्वशक्तिमान परमात्मा ही है, जो हमें धन-दौलत, ऐश-आराम, कामयाबी आदि दुनिया के सब सुख देता है। हमें अपने कर्म से किस्मत बदलने का मौका और हौंसला भी देता है पर एक महत्वपूर्ण चीज, जो वह परमात्मा हमें नहीं देता है। वह होता है – मौत पर नियंत्रण। हम लाख कोशिशें कर ले पर जब उस ऊपर वाले का बुलावा आता है तब हमें उसके आदेश पर जाना ही होता है। मृत्यु के देवता का कुछ ऐसा ही आदेश मेरी पत्रकार साथी को हुआ। पिछले दिनों इंदौर के सीएचएल अपोलो हॉस्पिटल में वेटिंलेटर पर लेटे-लेटे साँसों की टूटती-जुड़ती डोर के बीच मौत के घनघोर अँधेरे में जीवन की उम्मीदों के स्वप्न संजोती सोनाली आज हमारे बीच नहीं रही। 1 सितम्बर 2014, सोमवार की सुबह ‘नईदुनिया’ की यह वरिष्ठ पत्रकार जिंदगी और मौत की जंग में जिंदगी से जंग हार गई और सदा के लिए मौत के आगोश में जाकर सो गई। जाते-जाते अपने पीछे छोड़ गई वह उस खिलखिलाहट को, जिससे दफ्तर में उनकी मौजूदगी पुख्ता होती थी। मैं बात कर रही हूँ उस सोनाली राठौर की, जिसकी कर्मठता व दंबग व्यक्तित्व ही उनकी पहचान था। मुझे भी नईदुनिया में कुछ समय तक सोनाली दीदी के साथ काम करने का मौका मिला था। यही वह वक्त था, जब मैंने तन से चुस्त-दुरूस्त, काम के मामले में सबके छक्के छुड़ाने वाली और हर बात पर हाजिर जवाब देने वाली इस महिला पत्रकार को बड़े करीब से जाना था। हाँलाकि उनके साथ बिताया वह समय मेरे लिए कुछ माह का अल्प समय था पर उस समय की यादें आज भी बहुत मीठी है। पत्रकारिता के नए-पुराने सभी साथियों की सहायता के लिए सदैव तत्पर, काम के तनाव को मुस्कुराहट की गूँज से हटाने वाली सोनाली दीदी जितना अधिक बोलती थी। उससे कहीं अधिक उनका काम बोलता था।
हँसमुख व मिलनसार सोनाली दीदी की अक्समात मृत्यु की खबर पर आज भी मुझे यकीन नहीं हो रहा है क्योंकि उनको याद करते ही मेरी आँखों के सामने उस दबंग लड़की की छवि आती है, जिसके हिस्से में आम लड़कियों सी शरमाहट व सकुचाहट नहीं थी। अपने से पंगा लेने वालों की बोलती बंद करना व बेहतर काम से अपने प्रतिद्वंदियों का मुँह बंद करना वह बखूबी जानती थी। काम के प्रति बेहद ईमानदार सोनाली दीदी पत्रकारिता में बेदाग महिला व्यक्तित्व का उदाहरण थी। भले ही आज वह हमसे बहुत दूर चली गई है पर उनकी यादें सदैव हमारी स्मृति में उन्हें जीवित रखेगी।
मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि वह हमारी इस साथी को अपने चरण कमलों में स्थान दें और उनके परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें। अश्रुपूरित श्रृंद्धांजलि के साथ .... ॐ शांति ...
vinamr shradhanjali...
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