गणेश के पाँच वचन है खास
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गायत्री शर्मा
गणेश विर्सजन, भावुकता का वह क्षण। जब हर भक्त अपने आराध्य शुभकर्ता,
विघ्नहर्ता प्रभु श्री गणेश को भावभिनी बिदाई देता है व साथ ही उनसे वादा लेता
है शरीर से विसर्जित होने पर भी मन से सदा अपने भक्तों से जुड़े रहने का। विर्सजन
के विरोधाभासी रूप में यह न्यौता होता है गणेश को इस वर्ष प्रतीकात्मक विदाई देकर
अगले वर्ष फिर नई खुशखबरी के साथ अपने घर-परिवार में विराजित करने का। गणेश को दिए
वादे के साथ ही यह स्वयं से वादा होता है अपने परिवार तथा देश में प्यार व सद्भाव
को कायम रखने में भागीदारी निभाने का। कल अनंत चर्तुदर्शी पर हमारे प्रतीकात्मक
गणेश तो विसर्जित हो गए पर हमारी आस्था के गणेश अब भी हमारी भावनाओं में जीवित है।
आस्था के प्रदर्शन के अंतिम पड़ाव पर जलमग्न होते हुए गणेश पानी की बूँदों की
गुड़गुड़ाहट के साथ हमें अपने पाँच वचनों के संग छोड़े जा रहे हैं। ये पाँच वचन है
– जल प्रदूषण से तौबा करने का, पीओपी की प्रतिमाओं व पॉलीथिन से परहेज करने का,
सांप्रदायिक सौहार्द बनाएं रखने का, आपदा प्रबंधन हेतु अंशदान करने का व
भ्रष्टाचार से गुरेज करने का। अब फैसला हमारा है कि हम श्रीगणेश के इन पाँच वचनों
पर अमल कर अपने देश की रक्षा के संकल्प को कितनी शिद्दत से पूरा करते है?
सड़कों पर हो-हल्ला या शोर मचाने से कभी भक्ति का प्रदर्शन नहीं होता। सच्ची
भक्ति व आस्था का प्रदर्शन तो अपने आराध्य के सिद्धांतों पर अमल करने से होता है।
श्री गणेश बुद्धि के देवता है, जो हमें अपनी बुद्धि, कौशल व प्रतिभा का सही अवसर
पर प्रयोग करने की सीख देते हैं। कल गणेशोत्सव के समापन के साथ हमारी आस्था की
अविरत धारा के प्रवाह में कुछ क्षण का विराम आ गया है। यह विराम है बुद्धि के
देवता गणेश को विसर्जित कर कुछ दिनों बाद शक्ति की प्रतीक माता को अपने घर लाने
का। आपने गौर किया होगा कल जब गणेश हमसे विदा ले रहे थे। उस समय क्या क्षणिक भी
आपको ऐसा नहीं लगा कि झाँकियों की चकाचौंध में शान से सज-धजकर जा रहे गणेश का मन
कुछ उदास था? वह गणेश मन ही मन पर्यावरण प्रदूषण का जिम्मेदार स्वयं को मान रहे
थे। कहीं ऐसा न हो जैसे कल गणेश दुखी मन से हमसे विदा लेकर गए वैसे ही माता भी दुख
के अश्रुओं के साथ हमसे विदा ले?
याद कीजिए, अब तक हम गणेश के कानों में फुसफुसाकर अपनी मिन्नत कहते आए हैं पर
कल गणेश भी जाते-जाते हमारे कानों में कुछ कहकर गए है। क्या हम गणेश की उस मिन्नत
को पूरा नहीं करेंगे, जिसमें एक इशारा छुपा था गणेश की तरह माता को भी पर्यावरण
प्रदूषण का जिम्मेदार बनने से रोकने का तथा ईको फ्रेंडली प्रतीकात्मक प्रतिमाओं के
प्रयोग का। यदि आप अपने आराध्य गणेश के पाँच वचनों पर अमल करेंगे तो गणेश की तरह
उनकी माता भी खुशी-खुशी आपके घर-आँगन में पधारेगी।
हिंदुओं के जीवन में भगवान को आमंत्रित करने व विसर्जित करने का यह सिलसिला
लगातार चलता रहता है। कभी लीलाधारी कृष्ण हमारे घर पधारते हैं तो कभी विघ्नहर्ता
गणेश, कभी ममतामयी माता भक्तों को अपना स्नेह देने आती है तो कभी समृद्धि के शुभ
कदमों के साथ माता लक्ष्मी हमारे घरों में पधारती है। देवताओं के आने-जाने के इस
बदस्तूर सिलसिले में बस एक चीज ही हमारे पास सदैव रहती है और वह है आस्था और
श्रृद्धा, जिसके जीवित रहने तक इस संसार में धर्म का अस्तित्व कायम है।
आपकी जानकारी के लिए लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने देश में गणेश स्थापना की
शुरूआत ही एक शसक्त भारत के स्वप्न के साथ की थी। जिसमें समाज के सभी वर्गों के
लोग एकजुट होकर धार्मिक आयोजनों में भाग ले व सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम
करें। आज जरूरत है तिलक के उस स्वप्न को साकार बनाने की।
आज हमारा देश कामयाबी के लक्ष्य से कुछ ही दूरी पर है। भारत की कामयाबी के इस
लक्ष्य को पूरा होने में बस जरूरत है तो सामाजिक संकीर्णताओं की दीवारों को लाँघने
की। अपने भीतर छुपी प्रतिभा और शक्ति को पहचानकर देश की कामयाबी में अपना बूँदभर
योगदान देने की। फिर देखिए विघ्नहर्ता श्री गणेश की कृपा से कैसे कामयाबी अपने शुभ
कदमों से हमारे देश में पधारेगी और सदा के लिए यही ठहर जाएगी। साप्रंदायिक सद्माव
की झाँकियों में जब हमारी आस्था के गणेश विराजित होंगे तो घोटालों के अवरोध इस
झाँकी के हौंसलों के पहियों के नीचे बौने होकर खत्म हो जाएँगे और यह रथ सदैव
कामयाबी की ओर अग्रसर होगा। यदि आप सच्चे गणेश भक्त है तो अपनी भक्ति का परिचय
तन-मन-धन से दीजिए और तन से कर्मठ बनिए, मन से ईमानदार बनिए तथा धन से देश में मची
जल त्रासदी के लिए अपना आर्थिक सहयोग दीजिए। जब देश में हम सभी स्वस्थ, खुश और
संपन्न होंगे तो निश्चित तौर पर ‘बप्पा मोरिया’ के रूप में गणेश की हर जय-जयकार
हमें सही माइने में आत्मिक सुकून व राहत की खिलखिलाहट का अहसास कराएगी।
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