प्रेम में सर्मपण ...
करते हो कभी मेरी
कामयाबी की दुआ
और हो जाते हो कभी कामयाबी
से ही खफा
कहते हो कामयाबी की
उड़ान इतनी दूर ले जाती है
जहाँ मीलों तक अपनों
की आवाज नहीं आती है
डरते हो कामयाबी से,
पर चाहते भी हो कामयाबी को
अपने लिए नहीं ... बस
मेरे लिए ... बस मेरे लिए
डर है मन में, पर
साथ है फिक्र भी
दुआओं के साथ-साथ
वियोग की हल्की सिसकियाँ भी
प्रेम में सर्मपण का
तीक्ष्ण दर्द तेरी आँखों में साफ नजर आता है
पर फिर भी कामयाबी
के खातिर तू खुशी-खुशी मुझसे दूर चला जाता है
- गायत्री
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