शब्द सम्हारे बोलिएँ, शब्द के हाथ न पाँव
शब्द सम्हारे बोलिएँ, शब्द के हाथ न पाँव
एक शब्द औषध करे, एक शब्द करे घाव
कहते हैं कि एक बार मुँह
से निकलने के बाद शब्द, शब्द नहीं रहते। वह हमारे व्यक्तित्व और सोच का परिचायक बन
जाते हैं। कटु शब्दों के तीर जहाँ दिलों को छलनी कर रिश्तों को तार-तार कर देते
हैं। वहीं मीठे शब्दों का शहद गहरे से गहरे कटुता के घाव को भी भर देता है। तभी तो
कहते हैं कि शब्द सम्हल सम्हल कर बोलना चाहिए। शब्द ब्रह्म है। शब्द ही मेरी और
आपकी पहचान है।
जब बात चली है शब्द
सम्हलकर बोलने की, तो क्यों न इस चुनावी माहौल में उन महान हस्तियों की चर्चा कर
ली जाएँ। जिनके शब्द उनकी जीभ से फिसलकर बेकाबू हो जाते हैं और इधर-उधर घुम-फिरकर
लोगों का मनोरंजन करते हैं। चलिए मिलते हैं उन लोगों से, जो शब्दों के मामले में बच्चों
की तरह थोड़े कच्चे है।
कुमार विश्वास : मशहूर कवि व आम आदमी पार्टी (आप) के नेता कुमार विश्वास के आक्रामक तेवर उनके
काव्य पाठ के ढंग से ही नजर आ जाते हैं। युवाओं के बीच मशहूर यह कलम का कलाकार कवि
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में जब अन्ना के साथ खड़ा हुआ। तब से कवि के साथ-साथ कुशल वक्ता के रूप में इनकी पूछ-परख पहले
से बहुत अधिक बढ़ गई। एक कवि का राजनीति में आगमन कोई नया तो नहीं है परंतु
नेता बनने के लिए शब्दों पर नियंत्रण होना बेहद जरूरी है। कवि सम्मेलन के मंच पर
इस तरह की मर्यादा नहीं होती। पर राजनीति के मंच पर शब्द बहुत माइने रखते हैं।
स्टिंग ऑपरेशन के
बाद क्रोध से तिलमिलाएँ ‘आम आदमी पार्टी’ के नेता कुमार विश्वास ने ‘आप’ के जंतर-मंतर
पर हुए म्यूजिक कंर्सट में कहा कि इस स्टिंग के पीछे कौन है। यह वक्त आने पर पता
लग जाएगा। हमें पुरस्कारों के लिए चापलूसी करने की जरूरत नहीं है। साहित्य अकादमी और
पद्म पुरस्कारों को हम अपने जूते की नोक पर रखते हैं। हम अहिंसक जरूर है, लेकिन
नपुंसक नहीं। हमें अन्ना ने टोपी पहना दी, अरविंद ने ईमानदारी से काम करने की
जिम्मेदारी दे दी वरना सह़क के दूसरी तरफ हम देख लेते कि तुममे कितना दम है।
नरेन्द्र मोदी : गुजरात के विकास का रोल मॉडल प्रस्तुत कर प्रधानमंत्री पद
के लिए अपनी दावेदारी मजबूत करने वाले नरेन्द्र मोदी भी बयानबाजियों व हाजिरजवाबी के मामले में
किसी भी तरह से कम नहीं है। भाजपा के सर्मथन में मध्यप्रदेश का दौरा करने वाले मोदी ने
मंदसौर की चुनावी सभा में कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि जैसे हम शेर को
देखने जू जाते हैं। उसी तरह कांग्रेसी नेता चुनाव में मीडिया को लेकर गरीब की झोपड़ी
में जाते हैं। मजाक उड़ाते हैं। घाव पर नमक छिड़कते हैं। ये लोग गरीब पैरों पर
खड़ा हो, ये कभी नहीं चाहेंगे।
सोनिया गाँधी : र्स्वगीय राजीव गाँधी की पत्नी व कांग्रेस की आलाकमान सोनिया जी से अपनी
हिंदी स्क्रिप्ट को बोलने में कई बार ऐसी गलतियाँ हो जाती है। जिसे सुनकर हमें
कहना पड़ता है कि मैडम, आप तो अंग्रेजी में ही बोल दीजिए क्योंकि आपकी अंग्रेजी व
हिंदी दोनों ही देश के ठेठ ग्रामीण लोगों के पल्ले नहीं पड़ने वाली। अपने तीखे
तेवर व भाजपा पर किए जाने वाले कटाक्षों के कारण राजनीति के क्षेत्र में सोनिया जी
की अपनी एक अलग ही पहचान है। हाल ही में सोनिया जी ने भाजपा को जहरीले लोगों की
पार्टी कहकर फिर से नए विवाद को जन्म दे दिया है।
राजीव शुक्ला : मोदी पर कटाक्ष करते हुए केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला ने कहा कि मोदी की भाषा
पान की दुकान पर खड़े होने वाले मसखरों के समान है। भाजपा ने उन्हें प्रधानमंत्री
पद का दावेदार तो बना दिया है। लेकिन उनके भाषण का स्तर अभी भी वार्ड स्तर के नेता
और पार्षदों के समान है।
राज बब्बर : कांग्रेस सासंद राज बब्बर अपने अभिनय का कमाल चुनावी
मैदान के सार्वजनिक मंचों पर भी दिखा रहे हैं। म.प्र. विधानसभा चुनाव के पूर्व
कांग्रेस की ओर से चुनाव प्रचार हेतु मंदसौर में पधारे राज बब्बर साहब ने उदाहरणों
व उलाहनाओं का सहारा लेकर शिवराज को बहुत कोसा। उन्होंने कहा कि शिवराज बार-बार
मंदसौर क्यों आते हैं? कूदते-गिरते उन्हें यहीं देखा। अब मालूम हुआ। दरअसल जो
घोषणाएँ कीं, वे साकार नहीं हो पाईं और सालों से जनता को छलावे में रखा। सत्ता
जाने के डर से यहाँ बार-बार आना पड़ा। इस मदारी को पाँव की जमीन खिसकती नजर आई तो
माहौल बनाने गुजरात को विकास का मॉडल बताने वाले जमूरे को भी बुला लिया।
शिवराज सिंह चौहान : कांग्रेस के निशाने पर और खासकर दिग्विजय सिंह के निशाने पर
रहने वाले शिवराज सिंह चौहान ने भी इस बार चुनावी प्रचार में कांग्रेस के आरोपों
का जवाब नेहले पर देहले की तरह दिया और यह सिद्ध कर दिया कि बयानबाजी के मामले में
वे नरेन्द्र मोदी के ही शिष्य है। शिवराज ने अपनी चुनावी सभा में कहा कि केंद्र
में भ्रष्ट और चोरों की सरकार बैठी है। जो जनता को छलने-ठगने का काम करती है।
- गायत्री
शब्द बाण खतरनाक होते ,.....एक बार निकलने के बाद ..वापिस नही आता ........सिर्फ ..खेद......खेद
ReplyDeleteसंजय जी, आपकी टिप्पणी से मैं सहमत हूँ। मेरी राय में जब हम शब्दों का संभालकर प्रयोग करने की बजाय उनसे खेलने लगते हैं अर्थात बगैर सोचे-समझे उनका उल्टा-सीधा प्रयोग करने लगते हैं। तब बदले में शब्द हमें भी अपना खेल दिखाने लगते हैं यानि की हमारी छवि को ही खराब करने लगते हैं।
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