जागो रे, जागो रे, जागो रे ...
कितनी अजीब बात है न
कि जब हम नया टीवी, मोबाईल या रेफ्रिजरेटर खरीदते है तो हम कई बार उनके फीचर्स, ग्यारन्टी,
वारन्टी आदि के बारे में बारीकी से जाँच पड़ताल करते हैं, वह भी केवल इसलिए कि हमारे धन का
सदुपयोग हो और जिस चीज को हम चुने, वह अच्छी हो। कुछ यही बात शादी-ब्याह के
रिश्तों के समय भी लागू होती है। उस समय भी हम अपने स्तर पर सारी जानकारियाँ निकालकर
सोच-समझकर हाँ या ना के निर्णय पर अपनी मुहर लगाते हैं। लेकिन वोट डालकर अपने नेता को चुनते समय सब कुछ जानते हुए भी हम न जाने क्यों अपनी आँखे मूँद लेते हैं? आँखे क्या हम तो अपना कान और मुँह भी बंद करके भेड़चाल
में मतदान करने चले जाते हैं।
कुछ समझदार लोग तो ऐसे भी होते है, जो मतदान वाले दिन वोट न डालकर अपने
परिवार के साथ सैर-सपाटे पर निकल जाते हैं। आखिर हम क्यों भूल जाते हैं कि वोट डालना न
केवल हमारा अधिकार है बल्कि भारत का नागरिक होने के नाते हमारी एक अहम जिम्मेदारी भी है
पर हम है कि अपनी इस जिम्मेदारी को औपचारिकता समझकर बिना सोचे-समझे अनमने मन से वोट
डालकर अपनी जिम्मेदारी से इति श्री कर लेते हैं।
कहते हैं कि शिक्षा
हमें किताबी ज्ञान के साथ ही नैतिक व व्यवहारिक ज्ञान का सबक भी सिखाती है परंतु वोट
डालने के मामले में शिक्षित लोग भी अगूँठाछाप लोगों की भीड़ में शामिल हो जाते
हैं। सब कुछ जानते और देखते हुए भी भेड़चाल चलकर हम बार-बार वहीं गलती करते
हैं, जो हमें नहीं करनी चाहिए। हमारा एक वोट भी अमूल्य है, जो सत्ता का तख्ता पलटने के लिए और भ्रष्ट नेताओं को सबक सिखाने के लिए पर्याप्त है। जिस तरह बूँद-बूँद से घड़ा भरता है। ठीक उसी तरह एक-एक वोट करके
चुनाव में वोटों की संख्या के आधार पर नेताओं की हार-जीत का फैसला भी होता है।
अपने नेता की
प्रोफाईल व राजनीतिक अनुभवों पर गौर किए बगैर ही उनके नाम की हवा, दल का ब्रांड
नेम और अफवाहों के आधार पर ही हम सबसे अधिक सुर्खियों व खबरों में रहने वाले नेता
के नाम पर अपने अमूल्य वोट की मुहर लगा देते हैं, जो कि गलत है। यदि हम अपने नेताजी
के चरित्र, अनुभव, कार्यक्षेत्र में उपलब्धियाँ व थाने में उनके नाम दर्ज प्रकरणों
पर गौर करेंगे तो शायद हमारी आँखे फटी की फटी और कान सुन्न रह जाएँगे। ऐसा करने पर हम पाऐँगे कि हर बार हम किसी अपराधी या दागी व्यक्ति को ही अपना नेता
चुनते आ रहे हैं।
जागो, जागो, जागो रे
... अब तो जागो क्योंकि हम अब नहीं जागे तो शायद पाँच सालो के लिए हमें सोना ही पड़ेगा
और अपराध, भ्रष्टाचार और महँगाई का कड़वा घुँट पीना पड़ेगा। अब मेरी बातों पर गौर
कर खुले दिमाग से सोचिए कि जब हमारा एक अमूल्य वोट किसी नेता की किस्मत के साथ ही
हमारी और देश की किस्मत को भी बदल सकता है तो क्यों न हम जागरूक मतदाता होने का
परिचय दे व वोट माँगने वाले नेताओं से उनके वादों, दावों व स्थानीय मुद्दों पर
खुली बहस करे। नेताओं को अपनी समस्याएँ व उनके द्वारा किए गए जनकल्याण के कार्यों की असल हकीकत से अवगत कराएँ।
नेताओं के झूठे वादों व आश्वासनों पर यकीन करने की बजाय अपना बहुमूल्य वोट देने से पहले ही अपनी आँख, मुँह व
कान खुले रखें व उसी नेता को चुने, जो वाकई में हमारे लिए, हमारे क्षेत्र के
विकास के लिए काम करने का माद्दा रखता है। यदि हमारी इस कसौटी पर कोई नेता खरा
नहीं उतरता है तो शान से मुस्कुराकर ‘इनमें से कोई नहीं' विकल्प का चयन करे व अपने एक वोट की कीमत नेताओं को बताएँ।
- गायत्री
जागरुक तो है पर जागकर रुक जाते है ......यही विडंबना.....gaytri जी एक विचारिय आलेख .....जोरदार और शानदार
ReplyDeleteसही कहा आपने, जागकर रूकना और अन्याय के आगे झुकना यही हमारी आदत है। लेकिन अब ये नहीं चलेगा। अब जरूरत है, जागने की, आगे आने की और सोच-समझकर अपने मताधिकार का प्रयोग करने की। आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
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