मैजिकल मलाला ...
12 जुलाई – मलाला के जन्मदिन
‘मलाला डे’ पर विशेष
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गायत्री शर्मा
कलम की ताकत के आगे तख्त़ की ताकत भी गौण
है। जब कलम क्रांति पर आमदा होती है। तब रातों-रात तानाशाहों के तख्तों-ताज़ पलट
जाते हैं और र्स्वणिम इतिहास रचा जाता है। मिस्त्र की क्रांति इसका ताज़ा उदाहरण
है। पाकिस्तान की स्वात घाटी में तालिबानी आंतकियों की तानाशाही के खौफ की तीव्र
आँधी ने जब आज़ादी की उम्मीदों के सारे दिए बुझा दिए थे। तब दूर कहीं गोलियों की गड़गड़ाहट
के बीच उम्मीद का एक नन्हा दिया मलाला युसूफज़ई के रूप में टिमटिमा रहा था। मलाला
रूपी इस एक दिए ने ही आज स्वात घाटी में आज़ादी की उम्मीदों के हजारों दिए रोशन कर
दिए है। नारी अधिकारों की मशाल थामें मलाला ने पूरी दुनिया में बालिका शिक्षा का
अलख जगाया और यह साबित कर दिया कि तालिबानियों की कट्टरता के गढ़ को ध्वस्त करने
के लिए वह अकेली ही काफी है। मलाला वह जुगनू है, जिसने स्वात घाटी में कबिलाई
कानून और जातिय रिवाजों की कट्टरता के काले कायदों को आज़ादी की उम्मीदों की रोशनी
से जगमगा दिया है।
आतंकियों के कट्टर फरमानों से मलाला की
कलम अकेली लड़ती गई। मलाला की कलम ने दुनियाभर में नारी मुक्ति की नई क्रांति का
जयघोष किया। बीबीसी ऊर्दू में छद्म नाम ‘गुल मकई’ से जब मलाला की डायरी सार्वजनिक
हुई। उस दिन पहली बार मलाला के दर्द को दुनिया ने जाना और मलाला की यही कोशिश उनके
लिए मुश्किलों का सबब बन गई। स्वात घाटी में बालिका शिक्षा की अलख जगाने वाली इस
बच्ची को अक्टूबर 2012 में तालिबानी आतंकियों ने अपनी गोलियों का शिकार बनाया।
लेकिन यह मलाला का जीने का ज़ज्बा ही था जिसने उसे मौत के मुँह से बाहर खींच लिया
और मौत को मात देने के बाद पहले से अधिक ताकत के साथ मलाला ने तालिबानी कट्टरता के
खिलाफ अपने स्वर मुखरित किए। उसके बाद वह न हारी और न भागी और बस चलती रही, लगातार
चलती रही। स्वात से शुरू हुई मलाला की यह यात्रा ब्रिटेन से आज भी जारी है।
कहते हैं नदी जब उफान पर होती हैं तब वह
विशालकाय चट्टानों को भी फोड़ अपना रास्ता बना लेती है। जब मलाला के स्वर भी तीव्र
वेग से बुलंद ईरादों के साथ प्रस्फुटित हुए, तब कट्टर तालिबानी फरमानों की
धज्जियाँ उड़ गई और समूची दुनिया साक्षी बनी नारी की आज़ादी की जिजिविषा की। डायरी
लेखन के साथ ही सोशल नेटवर्किंग साइट्स और सार्वजनिक मंचों से भी मलाला ने तालिबानी
आतंकियों की कट्टरता, कबिलाई कायदें-कानून व खौफ का खुलासा किया। मलाला की लंबी
लड़ाई की बदौलत ही उनकी हमउम्र हजारों लड़कियों को शिक्षा के साथ ही आजादी की
रोशनी भी नसीब हुई है। घरों में कैद रहने वाली घाटी की लड़कियाँ अब फिर से स्कूल
जाने लगी है, गुलामी से आज़ादी के बड़े-बड़े स्वप्न अब उनकी भी आँखों में सजने लगे
हैं। मलाला को आदर्श मान उनका अनुसरण करते हुए दुनियाभर की लाखों लड़कियाँ आज अपने
बूते पर अपने अधिकारों की लड़ाई रह रही है। शोषण की शिकार लड़कियों की मसीहा कहाने
वाली मलाला ने लड़कियों को न केवल आजादी के स्वप्न दिखाएँ बल्कि अपने अधिकारों को
पाने की व स्वप्न को पूरा करने की एक राह भी दिखाई। लड़कियों की शिक्षा के प्रति
समाज की संकीर्ण सोच पर यह मलाला की जीत ही है, जिसके चलते मलाला को अंतरराष्ट्रीय
बाल शांति पुरस्कार, पाकिस्तान का राष्ट्रीय युवा शांति पुरस्कार, वर्ष 2013 में
संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार सम्मान, मैक्सिको का समानता पुरस्कार, साख़ारफ़
पुरस्कार आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। 12 जुलाई को मलाला का
जन्मदिन है, जन्मदिन की शुभकामनाओं के साथ अंहिसा से हिंसा पर विजय पाने के उनके
ज़ज्बे को मेरा सलाम है।
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सूचना : मेरा यह लेख 'दैनिक जनवाणी' समाचारपत्र के 12 जुलाई 2014 के अंक में संपादकीय पृष्ठ पर 'न्यूज फॉर ऑल' पोर्टल के आज के अंक में प्रकाशित हुआ है। पोर्टल पर प्रकाशित लेख को आप इस लिंक http://www.newsforall.in/2014/ 07/mala-birthday-article.html पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं। कृपया इस ब्लॉग से किसी भी सामग्री के प्रकाशन की स्थिति में साभार दें व सूचनार्थ मेल अवश्य करें।
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