एक आस, कुछ विश्वास .... बाकी डॉक्टर के प्रयास
(1 जुलाई डॉक्टर्स डे विशेष कविता)
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उसे देख जागती है
जीने की आस
वह डॉक्टर ही है
जो जगाता है धड़कने लौटाने की आस
अक्सर लड़ जाता है वह खुदा से
दवा और अनुभवों के हथियार थामें
तो कभी वक्त से खूनी जंग कर वह
कुछ धड़कने उधार ले आता है
वह डॉक्टर ही है जो
मौत को भी मात दे जाता है
बुझते दिए में भी
उम्मीद की लौ जल जाती है
डॉक्टर के आगे हर दर्द की
जैसे छुट्टी ही हो जाती है
दर्द देकर दर्द पर विजय का हूनर
डॉक्टर को ही आता है
मानवता के इन मसीहाओं का जीवन
सतत सेवा भाव में ही गुजर जाता है
नमन है हूनर के इन बाजीगरों को
जो जगाते है जीवन के स्वप्न
विश्वास की ऑक्सीजन पर
हौंसलों की हूनरमंदी से
बस एक मुस्कुराहट में
चुटकीभर उम्मीदों पर
कर देते हैं नामुमकिन को मुमकिन
प्रयासों की पुरजोर कोशिशों से
एक चुटकी उम्मीद के बदले
ला देते हैं छप्पर फाड़ खुशियाँ
दे देते हैं नवजीवन
नव उम्मीदें और नवदुनिया
नवस्वप्नों के दीदार को
नमन है मानवता के इन फरिश्तों को
नमन है मानवता के इन फरिश्तों को ...
- गायत्री शर्मा
नोट : मेरी यह कविता उज्जैन से प्रकाशित समाचारपत्र सांध्य दैनिक अक्षरवार्ता के 1 जुलाई 2014, मंगलवार के अंक में पृष्ठ क्रमांक 9 पर भी प्रकाशित हुई है। जिसे आप www.askarwarta.com पर जाकर पढ़ सकते हैं। कृपया मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित कोई भी सामग्री मेरी अनुमति के बगैर उपयोग या प्रकाशित न करें।
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