पाणी बाबा, भाटा से दई पाड़ूँगा थने ...
- गायत्री शर्मा
घणा दन वई गिया वाट जोता-जोता। पण यो
पाणी है कि अपणा गाम रो रस्तों भूली ज गियो। काले मैं वाटे-वाटे जई री थी तो गाम
रा गोयरे ठूठड़ा सा उबा झाड़का मुंडो लटकायो आसमान में देखी रिया था। मैं वासे
पूछियों – ‘कई वई गियो रे भई! ऊपरा से कोई राकेट तो नी पड़ी रियो?’ म्हारों सवाल
हुणी ने झाड़का बोल्या – ‘बेन! राकेट पड़ी जातो तो हऊ रेतो। हमी तो अठे पाणी रा
वना ज मरी गिया हा।‘ काई करो झाड़का हे भी हाची ज किदो। पाणी वगर तो मनक भी हुक्की
जावें तो ई बापड़ा झाड़का कद तक ऊबा रेगा? वाट में आगे चालता मह्ने भैं ने ऊका पाड़ा-पाड़ी
मल्या। वणा से मैं पूछ्यो – ‘कई वई गियो रे बेन! आज तू हुक्की-हुक्की क्यूँ लागी
री है? नन्दराम थने बखे खावा-पिवा रो दे कि नी?’ भैं बोली – ‘बेन! खावा रो तो ऊ
दें पण मह्ने घणी तरे लागे। असा में पाणी री कमी रा चालता ऊ मह्ने दनभर में एक ज
बाल्टी पाणी दे। अब थे ज वताओं कि पाणी बगैर यो सरीर हुकेगा कि रेगा?’ मैं किदो तू
हाची ज कई री हो भैं बेन। मैं से राम-राम करी ने वाट में मैं थोड़ी ओर आगे चाली तो
म्हारी नजर हूकी पड़ीगी नदी पे पड़ी। विके देखी ने म्हारों माथो तो चकरई गियों।
मैं नदी से कियो ‘नदी बेन, काल तक तो गाम रा लोक्का थारा में हपड़वा ने आता था। आज
तू ऊजड़ कस्तर वई गी है? थारो हगरों पाणी कठे गियो? नदी बोली कई वतऊ रे बेन, सूरज
देवता म्हारों आखों पाणी पी गया। अब तो पाणी रा वगर मैं अपणा आखरी दन गण री हूँ।
कई नगे कद मरी जाऊँ।‘ मैं किदो – ‘नी रे बेन! हांज रा टेम थमी सुभ-सुभ बोलो। पाणी
बाबा घणा चमत्कारी है। वी जद आवेगा तो सबरा हंडे थारों दुख भी कटी जावेगा, ने तू
फेर से पैला हरकी उगलम-सुगलम पाणी से भरई जाएगा।‘
हाची कूँ तो पाणी बाबा रा आवा री वात तो
मह्ने झूठी लागे पण अपणों ने लोगा रो मन हमजावा वस्ते कई तो केणो ज पड़े। कई रे
पाणी बाबा! तू हूणे की नी हुणे। थारा मनुहार करवा वस्ते कोई लोक्का तो हवन करी
रिया है ने कोई भेरू बाबा रा आगे ढ़ोल वजई रिया है। पण तू है कि बेरो ज वई गियो
है। अब गाम रा छोर-छोरी भी मैदान में जईने पाणी बाबा आयो ... गीत गाता-गाता थाकी
गिया है। झाड़का, ढांढ़ा-ढ़ोर, नदी ने मनक सब तरे मरी रिया है पण तू है कि हेकड़ी
दिखई रियो है। अब अई जा ने सबने खुस करी जा। तू अब 15 दन में नी आयो तो मैं थने
भाटा ती दई पाड़ूँगा फेर मत किजे कि मैं तो थारा गाम आई ज रियो थो। यो सब ढ़ोंग
फितूर करवा री कई जरूरत थी।
सूचना : मेरे इस लेख का प्रकाशन उज्जैन से प्रकाशित होने वाले सांध्य दैनिक समाचार-पत्र 'अक्षरवार्ता' के दिनांक 8 जुलाई 2014 के अंक में हुआ है। कृपया 'चरकली' ब्लॉग से कोई भी सामग्री प्रकाशित करते समय साभार देने के साथ ही मुझे इस संबंध में अवश्य सूचित करें।
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