बैरन भई बरखा ...
सैय्या बिना बरखा बैरन भई, गाजत रही विरह बिजुरी।
प्रेम मगन सारा जग भया, मैं बिरहन ताकूँ पी की गली।
उलाहना देत रही टपटप बूँदे, जब पड़त रही प्यासे मन पर।
प्यास मिलन की और बढ़ी, जाके वर्षा जल बुझा न पाय।
देखत है सब कुछ पिया मोरे, मंद-मंद वह रहे मुसकाएँ।
बोले प्यार से - 'बैरी कहत रहे मोहे, अब बैरी को क्यों पास बुलाएँ'?
- गायत्री
प्रेम मगन सारा जग भया, मैं बिरहन ताकूँ पी की गली।
उलाहना देत रही टपटप बूँदे, जब पड़त रही प्यासे मन पर।
प्यास मिलन की और बढ़ी, जाके वर्षा जल बुझा न पाय।
देखत है सब कुछ पिया मोरे, मंद-मंद वह रहे मुसकाएँ।
बोले प्यार से - 'बैरी कहत रहे मोहे, अब बैरी को क्यों पास बुलाएँ'?
- गायत्री
सुंदर रचना के लिए आपको बधाई
ReplyDeleteसंजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
धन्यवाद संजय जी।
ReplyDeletenice one..
ReplyDeleteThanks for your comment Armaan...
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