'संजय' से सहानुभूति क्यों ???
कहा जाता हैं कि इस देश
का कानून सबके लिए समान है फिर चाहे वह वीआईपी हो या आम आदमी। यदि हम कानून की
विशेषता की बात करें तो भारतीय कानून कठोरता के साथ लचीलेपन के गुण को भी लिए हुए
है। यानि जहाँ कानून को सख्त होना चाहिए। वहाँ उसे सभी के साथ सख्त होना चाहिए और
जहाँ कानून को लचीला होना चाहिए वहाँ सभी के लिए होना चाहिए फिर चाहे कोई वीआईपी
हो या आम आदमी। लेकिन अपराधी अभिनेता संजय दत्त के मामले में कानून का भेदभावपूर्ण
रवैया तो कानून के औचित्य पर ही सवालिया निशान लगा रहा है। 1993 में मुंबई सिरियल
ब्लॉस्ट के दोषी संजय दत्त को कम समय अंतराल में दूसरी दफा पैरोल पर छोड़ा जाना कितना
उचित है जबकि इसी मामले में सजा काट रही जेबुन्निसा की पैरोल की अर्जी को एक सिरे
से खारीज कर दिया गया? क्या जेल में भी संजय दत्त को सेलिब्रिटी होने का अच्छा-खासा
फायदा मिल रहा है?
अपराध अगर आम आदमी
करे तो वह अपराधी और अगर कोई खास आदमी (वीआईपी या सेलिब्रिटी) करे तो वह अपराधी
नहीं, यह बात सुनने में बड़ी ही अटपटी लगे परंतु यहीं सच है। आज कई आम आदमी जेल
में कैदी के रूप में अपने द्वारा किए गए अपराधों की सजा काट रहे हैं वहीं दूसरी ओर
कई छोटे-बड़े अपराधों को अंजाम दे चुके अपराधी नेताजी बन जनता के बीच वाहवाही बटोर
रहे हैं या फिल्मों में अभिनय करते नजर आ रहे हैं। आखिरकर कई सालों से देश पर दो
ही कौम का तो राज चलता आ रहा है एक तो राजनेता और दूसरे बॉलीवुड के सितारे। इन पर
जब भी कानून का शिंकजा कसने वाला होता है तब मामला उठने के बाद कुछ ही दिनों में
वह आई गई हो जाती है। आखिर हो भी क्यों न, असल में तो नेता और अभिनेता तो एक ही
थाली के चट्टे-बट्टे है। यहीं वजह है कि बापू की गाँधीगिरी के इस देश में हकीकत
में तो नेतागिरी और फिल्मगिरी ही चल रही है। बापू और बापू के सिद्धांत तो फिल्मों
की स्क्रिप्ट या किताबों के पन्नों में ही कैद होकर रह गए है।
जनता के तीखे सवाल
और जेबुन्निसा के परिजनों के विरोध के चलते इस मामले में गड़बड़झाले की आशंका को
लेकर उठते सवालों ने आखिरकार महाराष्ट्र के गृहमंत्री आरआर पाटिल को भी यह कहने पर
मजबूर कर दिया है कि हम इस मामले की जाँच करा रहे हैं और हमने इस संबंध में समस्त
दस्तावेज मंगवाएँ है। इस मामले की जाँच होना भी चाहिए क्योंकि अभिनय के साथ-साथ
संजय दत्त की पारिवारिक पृष्ठभूमि कहीं न कहीं राजनीति से भी जुड़ी रही है। जिसका
फायदा लगातार संजय दत्त को मिलता रहा है।
इस पूरे मामले को
देखते हुए मेरा यह कहना लाजिमी ही होगा कि कहीं न कहीं बॉलीवुड, अंडरवर्ड और
राजनीति त्रिभुज के वो तीन सिरे है, जो एक-दूसरे के आमने-सामने होते हुए भी किसी न
किसी बिंदु पर जाकर एक-दूसरे से मिल रहे हैं। मैं मानती हूँ भले ही संजय दत्त
सेलिब्रिटी हो, लेकिन कानून की नजरों में वह अपराधी है और ऐसी दृष्टि में उसके साथ
भी वहीं बर्ताव किया जाना चाहिए, जो उस मामले में जेल की सजा काट रहे अन्य कैदियों
के साथ किया जा रहा है।
- - गायत्री
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