जय हो झाडू माता की ...

बच्चों के पसंदीदा हैरी पॉर्टर की तरह केजरीवाल ने भी अपनी झाड़ू का जादू दिखाकर सबको चौंका दिया है। इस बार दिल्ली की सड़कों पर उनकी झाड़ू ऐसी चली कि कमल के साथ-साथ पंजा भी उनके डस्टबिन में चला गया। किस्मत के धनी केजरीवाल पहली बार में ही शीला के सुहाने सपनों को तोड़कर और हर्षवर्धन को मायूस छोड़कर ‘आप’ के साथ बस अपनी ही बल्ले-बल्ले कर रहे हैं। सच कहें तो यह झाड़ू का कमाल है। जिसकी झाड़-फूँक ने राजनीति के सालों पुराने धुंरधरों को भी हकीकत का आईना दिखा दिया। जय हो झाडू माता की ...।  

जिस तरह खेल-खेल में कुछ जिद्दी बच्चे यह कहते हैं कि मुझे भी खिला लो, नहीं तो मैं तुम्हारा खेल बिगाड़ दूँगा। दिल्ली की राजनीति के खेल में बच्चों सी वहीं जिद व अडि़यलपना केजरीवाल ने भी दिखाया और उसी जिद के बूते पर आज वह कांग्रेस को पछाड़ते हुए 28 सीटों पर पैर पसारकर बैठ गए है। सच कहे तो मोदी की तरह केजरीवाल की भी किस्मत लाजवाब है। जिसने हर किसी को उनकी ही लहर में झूमने पर मजबूर कर दिया है। दिल्ली में ‘आप(आम आदमी पार्टी)’ को स्पष्ट जनादेश न मिलने के बावजूद भी उनके साथ सीटों का गणित इतना लाजवाब बैठा कि कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा भी उम्मीद भरी नज़रों से ‘आप’ की ओर निहार रही है और ‘आप’ है कि मन ही मन भाव खाए जा रही है।    

कहते हैं जब आपकी किस्मत के सितारे बुलंद हो। तब गधा भी आपको सलाम ठोकता है। ठीक उसी तरह अच्छे वक्त और बेहतर मुद्दों के साथ परिवर्तन के विश्वास के साथ केजरीवाल ने दिल्ली में धमाकेदार प्रदर्शन किया और शीला के साथ-साथ हर्षवर्धन को भी परेशानी में डाल दिया। कभी जन लोकपाल बिल के लिए अण्णा के साथ खड़े केजरीवाल को दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम के रूप में अचानक कामयाबी का ऐसा स्वाद चखने को मिला कि अपने बयानों में राजनेताओं की खिचाई करने वाले गाँधीवादी अण्णा के ये सर्मथक अण्णा से किनारा कर आज खुद ही राजनेता बन गए है। राजनेता क्या बने, ‘आप’ के केजरीवाल तो कहने को विपक्ष में बैठने का और मन ही मन दिल्ली की कुर्सी पर राज करने का ख्वाब भी संजोने लगे है।  

‘जनता जनार्दन है। उसका फैसला एक ही रात में शहनशाहों के तख्ते पलटकर रखने की ताकत रखता है।‘ इस बार के विधानसभा चुनावों के परिणामों में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की हैट्रिक, राजस्थान में खिलखिलाता कमल बस इसी ओर ईशारा करता है कि वक्त आ गया है बदलाव का। परिवर्तन के इस दौर में न घिसे-पिटे वादें चलेंगे और न परिवारवाद की राजनीति। यहाँ तो हकीकत की बातें होगी और उन्हीं मुद्दों पर चुनाव में हार-जीत का फैसला भी होगा।‘

-          गायत्री 

Comments

Popular posts from this blog

महात्मा गाँधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ब्लॉगरों का जमावड़ा

नेत्रहीन बच्चियों को स्वावलम्बी बनाता 'आत्मज्योति नेत्रहीन बालिका आवासीय विद्यालय'

‘संजा’ के रूप में सजते हैं सपने