अपीयरेंस और अदाकारी में लाजवाब टुन टुन
नौशाद साहब के
दरवाजे पर गायिका बनने की गुजारिश के साथ अचानक से दस्तक देने वाली 13 वर्षीय उमा
के लिए संगीत की दुनिया के इस अज़ीज फ़नकार के रहमो-करम की इनायत मिलाना खुदा की
किसी नैमत से कम नहीं था। बड़ी उम्मीदों के साथ कुछ कर दिखाने का ज़ज्बा लिए उत्तर
प्रदेश से मुबंई आई उमा देवी अपनी जिद की बड़ी पक्की थी। तभी तो पहली ही मुलाकात
में इस भारी-भरकम जिद्दी लड़की ने नौशाद
साहब को ही कह दिया कि यदि उन्होंने उसे गाने का मौका नहीं दिया तो वह समन्दर में
कूदकर अपनी जान दे देगी। भविष्य में उसी जिद ने उन्हें बॉलीवुड की चोटी की गायिका
और हास्य अभिनेत्री बना दिया। जी हाँ, मैं बात कर रही हूँ लड्डू से गोल-मटोल चेहरे
व हाथी से भारी-भरकम शरीर वाली अभिनेत्री उमा देवी उर्फ टुन टुन की।
‘अफसाना लिख रही हूँ दिले बेकरार का, आँखों में रंग भरके तेरे इंतजार का ...’ फिल्म ‘दर्द’ के इस सदाबहार गीत को अपनी सुरीली आवाज दी थी उमा देवी ने। इसे हम वक्त का फेर ही कहें कि आज भी यह गीत तो हमें यदा-कदा सुनाई दे जाता है लेकिन सीता देवी का जिक्र हमें कभी सुनाई नहीं देता। आखिर क्यों यह बेहतरीन गायिका गायकी छोड़ सदा के लिए गुमनामी के अंधेरों में खो गई ... यह सोचने की बात है? हममें से बहुत कम लोग ही यह जानते होंगे कि सीता देवी उर्फ टुन टुन न केवल हास्य कलाकार थी बल्कि हास्य कलाकार बनने से पहले वह एक सुरीली गायिका थी, जिसने उस जमाने की कई मशहूर अभिनेत्रीयों के लिए गीत गाएँ। आज मची है धूम, झूम खुशी से झूम ..., ये कौन चला मेरी आँखों में समाकर ..., काहे जिया डोले ..., दिल को लगाके हमनें कुछ भी न पाया ..., चाँदनी रात है ..., दिलवाले जल-जलकर ही मर जाना ... जैसे कई मशहूर गीतों को टुन टुन ने ही अपनी सुरीली रेशमी आवाज से सजाया था। आप मानें या न मानें परंतु उस दौर का यह एक कड़वा सच है कि लता और आशा ने उस जमाने में किसी गायिका को अपने से बेहतर कहाने व आगे आने का मौका नहीं दिया। यही कुछ वजह है कि उस दौर की बहुत सी गायिका या तो कुछ गाने गाकर सदा के लिए गुमनामी के अंधेरों में खो गई या फिर गायकी छोड़ किसी ओर काम में लग गई। हम इसे बदकिस्मती कहें या प्रतिस्पर्धा, जिसके चलते रेशमी आवाज की धनी टुन टुन ने गायकी छोड़ अभिनय की ओर अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू किया।
जॉनी वॉकर, केस्तो मुखर्जी, भगवान दादा जैसे स्थापित हास्य कलाकारों के दौर में टुन टुन ने हास्य-व्यंग्य के अपने अलहदा अंदाज से फिल्म इंडस्टी में अपनी एक खास जगह बनाई थी। नौशाद साहब की सिफारिश पर मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार ने अपनी फिल्म बाबुल (1950) के लिए टुनटुन को एक कॉमिक रोल ऑफर किया था। इस फिल्म के बाद टुनटुन ने आर-पार (1954), मिस्टर एण्ड मिसेस 55 (1955), प्यासा (1957) जैसी कई फिल्मों में अपने हास्य किरदार से दर्शकों को खूब गुदगुदाया। फिल्म इंडस्ट्री में महिला हास्य कलाकार की टुन टुन की खाली जगह को आज तक कोई हास्य कलाकार नहीं भर पाया है। सच कहें तो फिल्मों में टुन टुन के अंदाज के साथ ही उनका अपीयरेंस भी लाजवाब था। हाथी जैसा भारी-भरकम शरीर और उस पर मासूम सा गोल-मटोल चेहरे को देखते ही दर्शकों के चेहरे पर हँसी आना लाजिमी ही था। उसके बाद जब टुन टुन के मुँह से एक के बाद एक डायलॉग फूटते थे, तब हँसी के ठहाकों से दर्शक लोट-पोट हो जाते थे।
फिल्मों में कभी
टुनटुन दर्जनभर शैतान बच्चों की माँ बनी तो कभी मरीजों के देखरेख करने वाली नर्स बनी ...
फिल्म की मांग के मुताबिक हर किरदार को
टुनटुन ने अपनी तीखी मोटी आवाज और लाजवाब अदाकारी के जादू से हास्यास्पद बना दिया।
दिल ने पुकारा, अफसाना, मोम की गुडिया, कन्यादान, शराफत, तुलसी विवाह, बम्बई का
बाबू, दिल अपना और प्रीत पराई, कोहिनूर जैसी अनगिनत फिल्मों में टुन टुन ने हास्य
किरदार निभाया। 100 से अधिक फिल्मों में दर्शकों को गुदगुदाने वाली टुनटुन को आखरी
बार सक्रिय हास्य अभिनेत्री के तौर पर 1990 में बनी फिल्म ‘कसम धंधे की’ में देखा
गया था। टुन टुन के कॉमिक डायलॉग आज भी हमारे कानों में गूँजते हैं और हमें याद दिलाते
हैं लाजवाब अदाकारी के उस दौर की, जब फिल्मों में हास्य पैदा करने के लिए किसी अतिरिक्त
वस्तु या व्यक्ति की जरूरत नहीं होती थी बल्कि डायलॉग की अदायगी का बेहतरीन अंदाज
ही दर्शकों को गुदगुदाने के लिए काफी था। चलते-चलते हास्य-व्यंग्य की इस लाजवाब
अदाकारा को विनम्र श्रृद्धांजलि और प्यार भरा सलाम।
- गायत्री
- गायत्री
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